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IAS Preliminary Exam 2023: फास्टफूड नहीं है यूपीएससी, एक्सपर्ट की राय तैयारी का लेवल बढ़ाएं अभ्यर्थी

यूपीएससी परीक्षा में शामिल होनेवालों की संख्या 10 लाख तक हो गयी है, जबकि रिक्तियों की संख्या हजार के आसपास होती है. इसलिए सिविल सेवा परीक्षा का लेवल कठिन हुआ है. अब समय आ गया है कि बढ़ती प्रतिस्पर्धा, बदलते ट्रेंड और सिविल सेवा की नयी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अभ्यर्थी अपनी तैयारी का लेवल बढ़ाएं.

-अजय अनुराग-

IAS Preliminary Exam 2023: यूपीएससी का उद्देश्य ऐसे उम्मीदवारों का चयन करना है, जिनके पास विभिन्न विषयों की अच्छी समझ हो और जो प्रशासनिक सेवाओं के लिए आवश्यक कौशल और योग्यता रखते हों. इस परीक्षा में शामिल होनेवालों की संख्या दस लाख तक पहुंच गयी है, जबकि रिक्तियों की संख्या प्रतिवर्ष कमोबेश हजार के आस-पास होती है. इसलिए सिविल सेवा परीक्षा का लेवल कठिन हुआ है. अतः अब समय आ गया है कि बढ़ती प्रतिस्पर्धा, बदलते ट्रेंड और सिविल सेवा की नयी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अभ्यर्थी यूपीएससी को कठघरे में खड़ा करने के बजाय परिवर्तनों को स्वीकार करें और अपनी तैयारी का लेवल बढ़ाएं.

परीक्षा को लेकर यूपीएससी पर ज्यादती का आरोप

पिछले 28 मई को यूपीएससी द्वारा आयोजित सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा समाप्त हो गयी. लेकिन परीक्षा को लेकर चर्चा-परिचर्चा और बहस का दौर अभी तक नहीं थमा है. कहा जा रहा कि इस वर्ष परीक्षा में पूछे गये प्रश्नों का स्तर इतना कठिन था कि अभ्यर्थी तो परेशान हुए ही, प्रश्नों को हल करनेवाले शिक्षक और कोचिंग के मार्गदर्शकों की स्थिति भी बेहद तनावपूर्ण रही. दोनों पेपर्स सामान्य अध्ययन और सीसैट की कमोबेश एक ही स्थिति रही और बहुत से अभ्यर्थियों के लिए पेपर-II, जो क्वालीफाइंग प्रकृति का है, उसमें ही पास करना कठिन रहा. सवाल है कि आखिर प्रश्नों में ऐसा क्या परिवर्तन हुआ है, जिसे लेकर सभी परेशान हैं और यूपीएससी पर ज्यादती का आरोप तक लगाया जा रहा है?

परीक्षा का लेवल हुआ और कठिन  

सबसे पहली बात यह है कि सिविल सेवा परीक्षा अपनी कठिन प्रतिस्पर्धी और चुनौतीपूर्ण प्रकृति के लिए जानी जाती है. कई बार तो मजाक में यह तक कह दिया जाता है कि भारत में सरकारी नौकरी एक ही है-सिविल सेवा, बाकी सब नौकरियां हैं. यही कारण है कि सरकारी अथवा गैर-सरकारी क्षेत्रो में इतनी नौकरियों के बावजूद सिविल सेवा को लेकर युवाओं में क्रेज बढ़ता ही रहा है और इस परीक्षा में शामिल होनेवालों की संख्या दस लाख तक पहुंच गयी है, जबकि रिक्तियों की संख्या प्रतिवर्ष कमोबेश हजार के आस-पास होती है. जाहिर-सी बात है कि सिविल सेवा परीक्षा का लेवल तो कठिन होगा ही.

अभ्यर्थियों की संख्या में इजाफा  

असल में, प्रारंभिक परीक्षा में अभ्यर्थियों की संख्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है, अतः यह यूपीएससी के लिए भी मुश्किल हो गया है कि वह मुख्य परीक्षा के लिए योग्य उम्मीदवारों का चयन कैसे करे? जहां तक प्रश्नों के कठिन होने का सवाल है, तो कठिनाई का स्तर प्रायः हर साल बदलता रहा है. मसलन, कभी तथ्यात्मक जानकारी पर अधिक बल दिया जाता है, तो कभी अवधारणात्मक समझ पर. इसी तरह, सामान्य अध्ययन के विभिन्न खंडों को अलग-अलग वर्षों में अलग-अलग तरीके से अधिक वरीयता दे दी जाती है, जो कई बार अनपेक्षित हो जाता है. यूपीएससी का उद्देश्य उन उम्मीदवारों का चयन करना है, जिनके पास विभिन्न विषयों की एक अच्छी समझ हो और जो प्रशासनिक सेवाओं के लिए आवश्यक कौशल और योग्यता रखते हों.

समय के साथ बढ़ी है प्रतिस्पर्धा

चूंकि इस परीक्षा का दायरा काफी विस्तृत व व्यापक है और इसके लिए सिलेबस के विषय वस्तु के प्रति अभ्यर्थियों में अवधारणात्मक समझ के साथ-साथ तथ्यात्मक जानकारी भी जरूरी है, अतः इसकी तैयारी के लिए कुछ निश्चित और पर्याप्त समय देना अनिवार्य है. कोई अभ्यर्थी चाहे कितना भी बुद्धिमान और तेज दिमाग वाला हो, उसे सिलेबस को पूरी तरह से तैयार करने के लिए निरंतर प्रैक्टिस की जरूरत पड़ेगी ही. पहले जब इस परीक्षा को लेकर उतनी जागरूकता अथवा कोचिंग या अध्ययन सामग्री का अभाव था, तब सिविल सेवा परीक्षा का अभ्यर्थी सभी विषयों के मूल संदर्भ पुस्तकों को पढ़ता और खुद के नोट्स बनाता था, जिससे उसकी व्यापक समझ बनती थी. लेकिन आज के बदले परिदृश्य में जहां एक ओर परीक्षा का सिलेबस अपडेट व एडवांस हुआ है, वहीं दूसरी ओर यूट्यूब व गूगल जैसे नये साधनों ने ज्ञान के क्षेत्र को सबके लिए खोलकर प्रतिस्पर्धा को बढ़ा दिया है.

परीक्षा के ट्रेंड और एनालिसिस पर जोर

परीक्षा की तैयारी को लेकर यूट्यूब पर पढ़ाने वाले डिजिटल गुरुओं अथवा कोचिंग सेंटर्स के मार्गदर्शकों ने विषयवस्तु की गंभीरता को समझने के बजाय परीक्षा के ट्रेंड एनालिसिस और उसे डिकोड करने पर अधिक बल दिया है. वैसे, कुछ मामलों में यह उपयोगी भी रहा है, लेकिन यूपीएससी ऐसे किसी भी शॉर्टकट को समाप्त करना चाहता है और उसके लिए वह प्रत्येक वर्ष कुछ-न-कुछ नवीन प्रयोग करता रहता है. गंभीर अभ्यर्थियों की छंटनी करने के लिए यूपीएससी के पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है. यह ठीक उसी तरह है, जैसे आइआइटी और आइआइएम की प्रवेश परीक्षाओं में देखने को मिलता है.

अपनी तैयारी का लेवल बढ़ाएं    

अब समय आ गया है कि बढ़ती प्रतिस्पर्धा, बदलते ट्रेंड और सिविल सेवा की नयी जरूरतों की अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए अभ्यर्थी यूपीएससी को कठघरे में खड़ा करने के बजाय अपनी तैयारी का लेवल बढ़ाएं और परिवर्तनों को स्वीकार करें. आज जब प्रत्येक स्तर पर एक नये भारत की परिकल्पना की जा रही है, तब हमें भी उसके अनुकूल बदलने की जरूरत होगी. आज फास्टफूड वाले दौर में जो लोग यूपीएससी को भी फास्टफूड या फैशन के रूप में देखते हैं या फिर किसी प्रवेश परीक्षा की तैयारी की तरह मात्र पांच-छह महीने देकर इसमें सफलता पाना चाहते हैं, उन्हें अपनी रणनीति पर एक बार पुनर्विचार करने की जरूरत है.

एक्सपर्ट : अजय अनुराग, डायरेक्टर, विजडम आईएएस, दिल्ली

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