सोमवार को चिंतित भारतीयों, विशेषकर कतर में बंदी पूर्व भारतीय नौसेना के अधिकारियों के परिजनों, ने उनकी रिहाई और देश वापसी से राहत की सांस ली. ये पूर्व सैन्य अधिकारी एक कंपनी के लिए काम करते थे, जो कतर में इतालवी पनडुब्बियों के स्थापित करने की एक परियोजना से जुड़ी हुई थी. इन पर जासूसी करने और इस्राइल को जानकारी देने का आरोप लगाया गया था, पर इस संबंध में कोई ठोस सबूत मुहैया नहीं कराया गया था. दूसरे देशों की कानूनी भाषा और सजा देने की प्रक्रिया की अपनी चुनौतियां होती हैं. भारत ने बहुत अच्छी तरह से कूटनीतिक कोशिश की और कतर की कानूनी प्रक्रिया को पूरा सम्मान दिया. साथ ही, पूर्व नौसैनिकों की रिहाई के लिए भारत उस क्षेत्र के मित्र देशों के संपर्क में भी बना रहा. निचली अदालत द्वारा पूर्व सैनिकों को मौत की सजा देना एक चिंताजनक मोड़ था, जिसके बाद भारतीय जनमानस की ओर से सरकार से पुरजोर कोशिश करने की मांग उठने लगी. ऐसी स्थितियों में बेसिर-पैर की अफवाहों को फैलने का मौका मिल जाता है. कतर के मामले में भी ऐसा ही हुआ. लेकिन जो हुआ, सो अच्छा हुआ, जैसा कि कहा जाता है- अंत भला, तो सब भला. भारत सरकार ने 18 महीने बाद अपने नागरिकों को रिहा करने और वापस भेजने के कतर के अमीर के फैसले के प्रति आभार जताया है. यह प्रकरण भारत सरकार की उस नीति के अनुरूप है, जिसके तहत शांति की स्थिति में विदेशों में भारतीयों को हर संभव सहायता मुहैया कराने या युद्ध क्षेत्रों से उन्हें सकुशल निकालने का संकल्प है.
खाड़ी और पश्चिम एशिया के अन्य देशों की तरह भारत और कतर के द्विपक्षीय संबंध भी बहुआयामी हैं. करीब साढ़े आठ लाख भारतीय कतर में कार्यरत हैं और उस क्षेत्र में कतर उन शुरुआती देशों में हैं, जिनके साथ रक्षा क्षेत्र में सहयोग का समझौता है. भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में कतर से प्राकृतिक गैस आपूर्ति की अहम भूमिका रही है. हाल ही में दोनों देशों ने गैस खरीद से जुड़े एक दीर्घकालिक समझौते पर हस्ताक्षर किया है. दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 20 अरब डॉलर के स्तर के करीब है. विभिन्न क्षेत्रों में कतरी निवेश भी बढ़ा है तथा कतर में लगभग 15 हजार भारतीय कंपनियां काम कर रही हैं. कतर में दूसरे देशों के लोगों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की है और कतर के विकास में उनके योगदान की सराहना वहां के नेतृत्व और लोगों द्वारा हमेशा की जाती रही है. कतर में हाल में आयोजित फुटबॉल विश्व कप, जो कतर के लिए एक उल्लेखनीय उपलब्धि है, को सफल बनाने में भारतीय कामगारों और कंपनियों ने कोई कसर नहीं उठा रखी थी. कतर के नेतृत्व को इसका पूरा अहसास है. ऊर्जा, अर्थव्यवस्था और कार्यरत लोग किसी भी संबंध में महत्वपूर्ण तत्व हो सकते हैं और भारत एवं कतर का संबंध कोई अपवाद नहीं है, पर इस संबंध में एक प्रभावशाली कारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कतर के अमीर तमीम बिन हमाद अल थानी के बीच परस्पर सम्मान और निकटता है. प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता में आने के बाद शेख तमीम भारत दौरा (मार्च 2015) करने वाले पहले अरब नेता थे. उसके अगले साल प्रधानमंत्री मोदी ने कतर की यात्रा की थी. उसके बाद उनकी कई मुलाकातें और बातचीत हुई हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर वहां चार बार जा चुके हैं. कतर और अरब लीग के बीच तनातनी (2017-2021) के दौरान भारत के समर्थन में वृद्धि ही हुई थी. युसुफ अली के लूलू चेन के जरिये चीजों की आपूर्ति को बहुत सराहा गया था. खैर, पूर्व नौसैनिकों की रिहाई से इस संबंध में और मजबूती आयेगी.
पिछले साल एक दिसंबर को दुबई जलवायु सम्मेलन के आयोजन के मौके पर प्रधानमंत्री और अमीर की मुलाकात हुई थी और ऐसा कहा गया था कि प्रधानमंत्री मोदी ने बंदी पूर्व सैनिकों को लेकर चिंता जाहिर की थी. माना जाता है कि वहां एक समझ बनी थी और उम्मीद बंधी थी कि कोई रास्ता निकलेगा. कुछ ही हफ्तों में ऊपरी अदालत ने मौत की सजा को निरस्त कर दिया. हाल में मैं प्रतिष्ठित ‘दोहा फोरम’ की बैठक के लिए कतर गया था. वहां के कुछ अधिकारियों से बातचीत से मुझे लगा कि देर-सबेर पूर्व नौसैनिक रिहा कर दिये जायेंगे, खासकर रमजान के महीने में, जब आम तौर पर अमीर कई लोगों को माफी देते हैं. लेकिन ऐसा पहले हो जाने से इंगित होता है कि कतरी नेतृत्व प्रधानमंत्री मोदी और अमीर तमीम की 14 फरवरी की भेंट से पहले इस मसले को हल कर लेना चाहता था. यह परस्पर सम्मान, हित और संवेदनशीलता के सिद्धांत का सूचक है. लागत व लाभ का विश्लेषण कूटनीति एवं रणनीति का निचोड़ है. बिना किसी शोर-शराबे या धार्मिक पृष्ठभूमि के हुई रिहाई कतर के विवेकपूर्ण कूटनीति का एक और परिचायक है, जिसने उसे हाल के कई संकटों के समाधान के केंद्र के रूप में स्थापित किया है. अंतरराष्ट्रीय विमर्श में उसका हस्तक्षेप उसके वजन से कहीं अधिक है. कतर के प्रयासों से तालिबान से पांच अमेरिकी बंधक छुड़ाये गये, वहीं अमेरिका और तालिबान के बीच ‘दोहा समझौता’ हुआ तथा अफगानिस्तान में फंसे बड़ी संख्या में विदेशियों को निकालने का ठीहा भी कतर रहा. कतर ने इस्राइल और हमास के नेतृत्व वाले गाजा के बीच संपर्क और राहत मुहैया कराने में बड़ी भूमिका निभायी है. इस्राइली राष्ट्रपति तक लंबे समय से कतर के प्रति आभार व्यक्त करते रहे हैं. इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के तीखे बयानों के बावजूद इस्राइल और हमास के बीच जारी मौजूदा लड़ाई में भी मिस्र के साथ कतर बंधकों की रिहाई, गाजा में मानवीय राहत भेजने और दोनों पक्षों के बीच लंबा युद्धविराम कराने के लिए भी मध्यस्थता कर रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी पूर्व भारतीय नौसैनिक अधिकारियों की रिहाई के प्रयास में व्यक्तिगत रूप से लगे हुए थे और रिहा अधिकारियों ने भी उनके प्रति अपनी आजादी के लिए आभार जताया है. प्रधानमंत्री मोदी 13 और 14 फरवरी को उस क्षेत्र में सबसे बड़े हिंदू मंदिर के उद्घाटन के लिए अबू धाबी में हैं और वे अपने मित्र शेख तमीम को व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद देने तथा द्विपक्षीय संबंधों को विस्तार देने के लिए कतर की राजधानी दोहा भी जा रहे हैं. वे संयुक्त अरब अमीरात और कतर के नेताओं से उस क्षेत्र की स्थिति, खासकर गाजा और लाल सागर, के बारे में भी चर्चा करेंगे, जो भारत के लिए बड़ी चिंता के विषय हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)