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प्रगाढ़ होते भारत-अमेरिका संबंध

विचारधारा और नीतियों को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में चाहे जितनी भी जोर-आजमाइश हो, मगर दुनिया का कोई नेता विभाजन की बात करे, तो उसका एक स्वर में प्रतिकार किया जाना चाहिए. कोई हमें लोकतंत्र का पाठ पढ़ाए, यह कैसे स्वीकार्य हो सकता है. लोकतंत्र में लोक महत्वपूर्ण है और वह जिसको चुनेगा.

इस बारे में कोई दो राय नहीं हो सकती है कि अमेरिका की राजकीय यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुर्खियों में छाये रहे. वह अमेरिका के दौरे पर पहले भी चार बार जा चुके हैं, लेकिन इस बार वह राजकीय यात्रा पर गये, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने उनकी मेजबानी की. अमेरिका का राजकीय अतिथि बनना दुनिया के किसी भी नेता के लिए सम्मान की बात है. पीएम मोदी ने अमेरिकी संसद- कांग्रेस- के संयुक्त सत्र को संबोधित किया. इसके पहले उन्होंने 2016 में भी अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित किया था. अमेरिकी संसद को दो बार संबोधित करने वाले वह भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं. राजकीय दौरे में आम तौर पर कई औपचारिक समारोह होते हैं. अमेरिका में इन समारोहों के दौरान लाल कालीन बिछा कर खास मेहमान का स्वागत किया जाता है, उसे 21 तोपों की सलामी दी जाती है.

अमेरिका रक्षा उपकरणों का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है और दुनिया के कुल रक्षा निर्यात में उसकी हिस्सेदारी 40 फीसदी से अधिक है. दूसरी ओर भारत हथियारों के सबसे बड़े आयातकों में से एक है, लेकिन रणनीतिक कारणों से अमेरिका अभी तक भारत को हथियार नहीं बेचता था. यह दबी-छुपी बात नहीं है कि उसका झुकाव पाकिस्तान की ओर था, लेकिन इस दौरे में नयी शुरुआत हुई है और कई महत्वपूर्ण रक्षा समझौते हुए हैं. अमेरिकी कंपनी जीई एयरोस्पेस ने भारतीय वायुसेना के हल्के लड़ाकू तेजस विमानों के जेट इंजनों का संयुक्त रूप से उत्पादन करने के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ समझौता किया है. साथ ही, अमेरिकी कंपनी जनरल एटॉमिक्स के हथियारबंद ड्रोन-रीपर की खरीद पर महत्वपूर्ण समझौता हुआ है. इनकी मदद से भारत हिंद महासागर क्षेत्र के साथ-साथ चीन से सटी भारतीय सीमा की भी सुरक्षा व निगरानी कर सकेगा.

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के बीच 2024 में एक संयुक्त अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष मिशन पर भी सहमति हुई है. प्रधानमंत्री ने भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण को बढ़ावा देने के लिए अमेरिकी चिप-निर्माता माइक्रोन टेक्नोलॉजी और जनरल इलेक्ट्रिक को भारत में विमानन और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के लिए आमंत्रित किया है और दोनों कंपनियों ने इस पर सहमति जतायी है. अमेरिका दोनों देशों के आम जन के बीच संबंधों को बढ़ावा देने के लिए बेंगलुरु और अहमदाबाद में दो नये वाणिज्य दूतावास खोलेगा, जबकि भारत सिएटल में एक मिशन स्थापित करेगा.

अमेरिका की ओर से घोषणा की गयी है कि अब एच-1बी वीसा नवीनीकरण अमेरिका में रहकर किया जा सकेगा. यह एक अहम फैसला है, जो अमेरिका में रह रहे हजारों भारतीय आइटी पेशेवरों को वर्क वीसा के नवीनीकरण में मदद करेगा. सबसे अहम बात यह है कि अमेरिका के साथ रिश्ते में प्रगाढ़ता भारत की अपनी शर्तों पर हुई है. भारत ने अमेरिका के साथ यह साझेदारी यूक्रेन युद्ध पर अपनी तटस्थता से समझौता किये बिना हासिल की है. यह सही है कि भारत 140 करोड़ लोगों का देश है और अमेरिका की बहुत सारी कंपनियां भारत में पांव पसारना चाहती हैं. अमेरिका को भी समझ आ गया है कि अगर उसे चीन के विस्तारवाद के मुकाबले खड़ा होना है, तो उसे भारत के सहयोग की आवश्यकता होगी.

लेकिन, प्रधानमंत्री की इस यात्रा के दौरान कुछ विरोधी स्वर भी उठे. राष्ट्रपति बाइडन और प्रधानमंत्री मोदी की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल की पत्रकार सबरीना सिद्दीकी ने पीएम मोदी से भारत के लोकतंत्र को लेकर सवाल उठाया और मुसलमानों के साथ कथित भेदभाव और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार को लेकर सवाल पूछा. जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘आप कह रही हैं कि लोग कहते हैं कि भारत लोकतंत्र है…लोग कहते हैं नहीं, भारत एक लोकतंत्र है. लोकतंत्र हमारी आत्मा है. लोकतंत्र हमारी रगों में है. लोकतंत्र को हम जीते हैं. हमारे पूर्वजों ने संविधान के रूप में उसे शब्दों में ढाला है. हमारी सरकार लोकतंत्र के मूलभूत मूल्यों को आधार बना कर बने हुए संविधान के आधार पर चलती है…और जब हम लोकतंत्र को लेकर जीते हैं, तब भेदभाव का कोई सवाल ही नहीं उठता.

भारत में हम सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के मूलभूत सिद्धांतों को लेकर चलते हैं.’ इसी दौरान अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा का एक इंटरव्यू प्रसारित हुआ. जानी-मानी पत्रकार क्रिस्टियन अमनपोर को दिये इस इंटरव्यू में ओबामा ने कहा कि अगर उनकी बात भारतीय प्रधानमंत्री से होती, तो वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का उल्लेख करते. इसके बाद उन्होंने एक विवादास्पद बात कही कि अगर भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा नहीं की जाती है, तो संभावना है कि भारत विभाजन की ओर बढ़ सकता है. दुखद यह है कि हमारे देश में राजनीतिक पाले इतने गहरे खिंचे हुए हैं कि अमेरिका का एक पूर्व राष्ट्रपति भारत के एक और विभाजन की बात कह कर निकल जाता है और हम एक स्वर में उसकी भर्त्सना तक नहीं करते हैं.

विचारधारा और नीतियों को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में चाहे जितनी भी जोर-आजमाइश हो, मगर दुनिया का कोई नेता विभाजन की बात करे, तो उसका एक स्वर में प्रतिकार किया जाना चाहिए. कोई हमें लोकतंत्र का पाठ पढ़ाए, यह कैसे स्वीकार्य हो सकता है. लोकतंत्र में लोक महत्वपूर्ण है और वह जिसको चुनेगा, सत्ता की चाभी जिसे सौंपेगा, वह सरकार चलायेगा. केंद्र में भाजपा की सरकार है, लेकिन मैं देश के जिस पूर्वी हिस्से में रहता हूं, वहां एक छोर से दूसरे छोर तक विपक्षी सरकारें हैं. वह चाहे पश्चिम बंगाल हो या उड़ीसा, बिहार या झारखंड या छत्तीसगढ़. यही भारतीय लोकतंत्र की खूबी है, लेकिन मैं असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा की टिप्पणी से भी सहमत नहीं हूं, जिसमें उन्होंने बराक ओबामा को हुसैन ओबामा कहा था.

आप तार्किक तरीके से प्रतिकार करिए, हल्के शब्दों के इस्तेमाल से मुद्दा ही हल्का होता है. यह हम सबको याद रखना चाहिए कि 75 साल पहले हम देश के विभाजन की विभीषिका को झेल चुके हैं. जिन लोगों ने विभाजन को झेला है, उनसे पूछिए, उसका दर्द आज भी गहरा है. आजादी के बाद की पीढ़ी को मैं बता दूं कि विभाजन के दौरान हुई हिंसा में लगभग पांच लाख लोग मारे गये थे और करीब डेढ़ करोड़ लोगों को अपना घर-बार छोड़ कर शरणार्थी बनना पड़ा था. आजादी की इतनी बड़ी कीमत दुनिया के किसी भी हिस्से में लोगों ने अदा नहीं की है. राजनीतिक दृष्टिकोण भले ही कुछ भी हो, हमारे जख्म कुरेदने वाले की एक स्वर में निंदा की जानी चाहिए. चाहे वह चाहे बराक ओबामा हों या फिर कोई और.

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