II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म : अंग्रेज़ी मीडियम
निर्देशक : होमी अदजानिया
निर्माता : दिनेश विजन
कलाकार : इरफान खान, दीपक डोब्रियाल,राधिका मदान, करीना कपूर, डिंपल कपाड़िया, मनु ऋषि, पंकज त्रिपाठी और अन्य
रेटिंग : साढ़े तीन
साल 2018 में रिलीज हुई फ़िल्म ‘कारवां’ के डेढ़ साल बाद अभिनेता इरफान खान को इस फ़िल्म से रुपहले पर्दे पर देखना किसी तोहफे से कम नहीं है. परदे पर सहज अभिनय से अपना खास प्रभाव दर्शाने वाले इरफान की इस फ़िल्म की कहानी भी बेहद सहजता से बहुत गहरी बात कह देती है. मौजूदा युवा पीढ़ी को आज़ादी चाहिए. वह 18 साल के बाद अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद लेना चाहते है, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जिन माता पिता ने उन्हें 18 साल तक अपना खून पसीना देकर सींचा उनके प्रति उनकी कोई जिम्मेदारी या जवाबदेही नहीं है.
फ़िल्म की कहानी उदयपुर के चंपक लाल बंसल (इरफान खान) की है. वे प्रसिद्ध मिठाई वाले घसीटाराम के वंशज हैं और अपनी मिठाई की दुकान चलाते हैं. इस नाम के चक्कर में उनके भाई गोपी (दीपक) के साथ उनके अदालत में कई मुकदमे हैं. लेकिन यह कहानी इन मुकदमों की नहीं बल्कि चंपकलाल की बेटी तारीका (राधिका) के सपनों को पूरा करने के लिए चंपक लाल के जद्दोजहद की कहानी है.
तारिका का सपना लंदन की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ने का है. अपनी बेटी का सपना पूरा करने के लिए चंपक और गोपी बेटी तारिका के साथ लंदन चल पड़ते हैं लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है. इसके लिए चंपक और गोपी को अपना नाम, पहचान,जमीन और मिठाई की दुकान सब दांव पर लगाना पड़ जाता है. कहानी क्या-क्या मोड़ लेती है यही आगे की कहानी है.
फ़िल्म अपने शीर्षक को इरफान और दीपक के चरित्रों से छूती है जिन्हें अंग्रेज़ी नहीं आती है. गूगल में देखकर अंग्रेज़ी बोलने से क्या अर्थ का अनर्थ बनता है, फ़िल्म में हल्के फुल्के अंदाज़ में इस बात को कहा गया है. हालांकि एयरपोर्ट वाले दृश्यों में ज़्यादा लॉजिक ना ढूंढा जाए तो उसका मैजिक असर करता है. युवा पीढ़ी में अंग्रेज़ी सभ्यता को लेकर आकर्षण को भी बयां किया है. फ़िल्म बहुत खूबसूरती से यह संदेश बयां करती हैं कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपनों को मत पीछे छोड़ो, अपनी जड़ों को मत भूलों.
ये कहानी बाप बेटी की सिर्फ नहीं है बल्कि भाइयों की भी है. यह फ़िल्म रिश्तों की अहमियत समझाती है. फ़िल्म के कमजोर पहलुओं की बात करें तो फ़िल्म की एडिटिंग पर थोड़ा काम करने की ज़रूरत थी. फ़िल्म थोड़ी खिंच गयी है जिससे कहानी का फ्लो टूटता है लेकिन फ़िल्म का कॉमिक ट्रीटमेंट फ़िल्म को शुरुआत से अंत तक बांधे रखता है.
अभिनय की बात करें तो इरफान खान ने एक बार फिर साबित किया है कि वह मौजूदा दौर के बेमिसाल अभिनेता हैं. वह परदे पर पिता और भाई के तौर पर कई बार हंसाते हैं तो कई बार आंखों को नम कर जाते हैं. दीपक डोब्रियाल भी परदे पर अपने जबरदस्त अभिनय की छाप छोड़ते हैं. उनकी और इरफान की जुगलबंदी फ़िल्म की यूएसपी है जो परदे पर मनोरंजन का जबरदस्त रंग भरता है. राधिका मदान अच्छी रही हैं लेकिन उन्हें अपने संवाद अदायगी पर थोड़ी और मेहनत करने की ज़रूरत है. करीना कपूर खान, कीकू शारदा, डिंपल कपाड़िया, रणवीर शौरी, मेघना मलिक सभी ने अपना किरदार मज़ेदार तरीके से निभाया है.
गीत संगीत की बात करें तो सचिन जिगर ने फ़िल्म के विषय के पूरी तरह से न्याय किया है. फ़िल्म के संवाद बहुत अच्छे बने हैं जो कहानी और किरदारों को प्रभावी बनाते हैं. कुलमिलाकर इरफान खान और दीपक डोब्रियाल के उम्दा अभिनय से सजी यह फ़िल्म रिश्तों की अहमियत को समझाती है जो सभी को देखनी चाहिए.