खूंटी, चंदन कुमार: ओलंपिक में भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाले मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की बुधवार (तीन जनवरी 2024 ) को उनके पैतृक गांव टकरा में जयंती मनायी जाएगी. इस अवसर पर गांव में उनके समाधि स्थल पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी. मंगलवार को मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के समाधि स्थल की साफ-सफाई की गयी. गांव में सांस्कृतिक कार्यक्रम और खेलकूद का आयोजन किया जाएगा. कार्यक्रम में मुख्य रूप से केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, खूंटी विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा सहित एवं जिला प्रशासन की टीम उपस्थित रहेगी. कार्यक्रम की तैयारी को लेकर मंगलवार को प्रमुख छोटराय मुंडा, बीडीओ ज्योति कुमारी, जिला सांसद प्रतिनिधि मनोज कुमार सहित अन्य अधिकारी गांव पहुंचे. ग्रामीणों के सहयोग से जयंती पर आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रम की तैयारी की गयी. कार्यक्रम की रूपरेखा तय की गयी.
बदल रही है गांव की तस्वीर
मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के गांव की तस्वीर धीरे-धीरे बदल रही है. गांव में प्रवेश करने से पहले ही मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की प्रतिमा लगायी गयी है. गांव तक पहुंचने के लिए सड़क का निर्माण किया जा चुका है. इसके बाद गांव के अंदर में आवश्यकता के अनुसार पीसीसी सड़कें बनायी गयी हैं. चेक डैम, चबूतरा, पुस्तकालय, लिफ्ट इरिगेशन, सोलर लाइट आदि सुविधाएं गयी हैं. खेल के मैदान को स्टेडियम में भी बदलने की शुरुआत कर दी गयी है. गांव के महादेव पहान ने बताया कि टकरा गांव का धीरे-धीरे विकास हो रहा है.
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कई योजनाओं का उद्घाटन-शिलान्यास
खूंटी जिले के टकरा में बुधवार को विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया जाएगा. केंद्रीय मंत्री सह खूंटी सांसद अर्जुन मुंडा के हाथों योजनाओं का उद्घाटन शिलान्यास किया जाएगा. इसके तहत टकरा नाला में वियर योजना का शिलान्यास, टकरा नाला में सिंचाई योजना निर्माण का उद्घाटन, ईस्टन स्टोरेज पोंड का उद्घाटन एवं टकरा मैदान में स्टेडियम निर्माण का शिलान्यास शामिल है.
कौन थे जयपाल सिंह मुंडा
झारखंड की अस्मिता, इसकी पहचान को धरातल पर उतारने वाले लीडर जयपाल सिंह मुंडा का जन्म 3 जनवरी 1903 को तत्कालीन रांची (अब खूंटी) जिले के टकरा गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम आमरु पाहन मुंडा था. जयपाल सिंह पहले नेता हुए जिन्होंने झारखंड अलग राज्य की परिकल्पना की. 1928 के ओलंपिक में अपनी कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम को स्वर्ण पदक दिलाना हो या फिर संविधान सभा और संसद में आदिवासी हितों पर बहस की बात हो. हर जगह उन्होंने अपनी बात रखी. स्कूल से ही उन्हें हॉकी खेलना काफी पसंद था. उनकी कला को एक अंग्रेज शिक्षक ने पहचाना और उन्हें रांची के संत पॉल स्कूल से निकालकर इंग्लैंड ले गये. इंग्लैंड में रहकर जयपाल सिंह ने न केवल उंच्च शिक्षा प्राप्त की, बल्कि 19 फरवरी 1928 को भारतीय हॉकी फेडरेशन ने उन्हें एम्सटर्डम ओलिंपिक के लिए घोषित भारतीय हॉकी टीम का कप्तान चुन लिया. अपनी अगुआई में देश को पहली बार हॉकी में स्वर्ण विजेता बनाया.
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1952 में बने थे खूंटी के सांसद
1946 में संविधान सभा के सदस्य चुने गए. उन्होंने आदिवासियों को नयी पहचान दिलायी. 1952 में लोकसभा चुनाव जीतकर खूंटी से सांसद बने और संसद भवन पहुंचे. उनकी पार्टी झारखंड पार्टी ने बिहार विधानसभा में 34 सीट और लासेकसभा में पांच सीट जीत कर अच्छा प्रदर्शन किया था. उन्होंने लोकसभा में आदिवासी हितों की जमकर वकालत की.