जामताड़ा फेम निर्देशक सौमेंद्र पाधी की फिल्म फर्रे आज सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. सलमान खान की भांजी अलीजेह की हिंदी सिनेमा में शुरुआत यह फिल्म है. इसके अलावा इस फिल्म के निर्माता सलमान खान हैं, लेकिन सौमेंद्र खुद साफ़ तौर पर कहते हैं कि स्टार और स्टार सिस्टम मुझे समझ नहीं आता है. मैं हमेशा कहानी और किरदारों से प्रभावित होता हूं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश…
सलमान ख़ान की फर्रे किस तरह से आप तक पहुंची ?
ये फ़िल्म जामताड़ा के पहले सीजन के तुरंत बाद मुझे ऑफर हुई थी. इस फिल्म के लिए मेरी पहली मीटिंग धर्मा प्रोडक्शन के ऑफिस में हुई थी. वहां पर अलवीरा मैम, अतुल सर मौजूद थे. मैं बताना चाहूंगा कि धर्मा में यह फिल्म नहीं बनने वाली थी चूंकि सभी अच्छे दोस्त हैं इसलिए वहां मीटिंग हुई. वहीं पर फिल्म की स्टोरी पर बात हुई थी. यह 2020 के आसपास की बात है. जामताड़ा सीजन एक के रिलीज हुए एक ही हफ्ते थे. उसके बाद ऑफर्स शुरू हो गए थे. जामताड़ा में जिस तरह से मैंने नवोदित चेहरों से काम करवाया था. वह सभी को बहुत पसंद आया था और मुझे सारे ऑफर्स न्यूकमर्स के लांच के ही आ रहे थे.
इस फिल्म में आपके लिए सबसे ज़्यादा अपीलिंग क्या था ?
यह फिल्म थाईलैंड की फिल्म बैड जीनियसकी ऑफिसियल हिंदी रीमेक है कहानी मेरे लिए पर्सनल थी. जब मैं क्लास सेवन में था तो कुछ घटना हुआ था. दरअसल मैंने अपने रिपोर्ट कार्ड में अपना अंक बदल दिया था. 86 का 88 कर दिया था और 76 का 77 कर दिया था. मैं फिर पकड़ा गया था. यह फिल्म मेरे लिए एक कन्फेशन था. यही वजह है कि मैं ये फिल्म करना चाहता हूं. यह एक इंस्पिरेशनल फिल्म है, जिस तरह से फिल्म का अंत होता है. वह आपको बहुत प्रभावित करेगा.
नये चेहरों के साथ काम करने में चुनौती क्या होती है ?
मैं बताना चाहूंगा कि मैंने अपनी भांजी को लेकर अपनी पहली शॉर्ट फ़िल्म बनायी थी. मुझे छोटे बच्चे और न्यूकमर के साथ काम करने का स्पेस बहुत अच्छा लगता है. उनमें एक अलग तरह की मासूमियत होती है और कोई बैगेज नहीं होता है, तो जो मैं करना चाहता हूं. वह कर सकता हूं. मेरा एनर्जी मैच करता है. अगर आप जामताड़ा को उठाकर देखेंगे तो उसका जो डीओपी था वो भी नया था. नये लोगों मेरी पहली फिल्म बुधिया सिंह थी. उसमें पांच साल का एक बच्चा था और मनोज बाजपेयी थे. प्रोसेस मेरा उसमें ही स्टार्ट हो गया था. मनोज जी स्टार हैं, लेकिन उनका बहुत ही अलग तरह का काम करने का स्टाइल है, तो यह प्रोसेस पहली फिल्म से ही बन गया था.
अलीजेह को लांच करने का क्या आप पर प्रेशर है ?
मुझे याद है जब मुझे धर्मा के ऑफिस में अलीजेह से मिलवाया गया था. उस वक़्त मुझे पता नहीं था कि अलीजेह कौन है? कौन अलवीरा है? मेरे लिए एक्टर का मतलब ऑडिशन से चुनना होता है. स्टार और स्टार सिस्टम मुझे समझ नहीं आता है. घर जाकर जब मैंने गूगल किया तो मुझे मालूम हुआ कि कौन क्या है. हमने शूटिंग पर जाने से पहले दो साल का लम्बा समय एक दूसरे के साथ बिताया. वैसे मैं बताना चाहूंगा कि अलीजेह को भी किताबों से प्यार है और मुझे भी. मैंने पहली मुलाकात में उनको दो किताबें गिफ्ट की थी. हम दोनों किताबों पर घंटों बात कर सकते हैं. एक किताब पढ़ लिया और उस किताब के किसी किरदार पर हम पूरा दिन बात कर सकते हैं.
सलमान खान से पहली मुलाकात कैसी रही
गैलेक्सी में ही पहली मुलाकात हुई थी. फिल्म के नरेशन के लिए मैं वहां गया था. उनसे मिलने के वक़्त कंट्रास्ट बहुत ही अच्छा था. बाहर खचाखच लोग भरे पड़े थे. इतने लोग हैं कि आपको बिल्डिंग में एंट्री लेने के लिए ही मुश्किल हो रही है. मुंबई पुलिस भी घर के अंदर मौजूद है. एक अलग ही माहौल है और अंदर एक आदमी एकदम नार्मल सी टीशर्ट में है और कहानी सुनने के लिए इंतज़ार कर रहा था.
निर्माता के तौर पर सलमान के साथ को किस तरह से परिभाषित करेंगे ?
वह सिर्फ एक बार शूट पर आये थे. उन्होंने फिल्म में किसी भी तरह की कोई दखलअंदाजी नहीं की है, लेकिन उनकी मौजूदगी की वजह से फिल्म का बजट बड़ा था. कुछ भी सीन करने से पहले बजट का प्रेशर इस बार मेरे जेहन में नहीं था. जापान से सिनेमेटोग्राफर आयी, जो दिन में सिर्फ तीन ही दृश्य शूट करती थी.
क्या अब ख्वाहिश सलमान खान को भी निर्देशित करने की है ?
फ़िल्म के ट्रेलर लॉंच में सलमान खान भी. मेरे और मेरे स्कूल फ्रेंड्स ने मेरी और उनकी तस्वीर पोस्ट की थी. वो बहुत खुश थे लेकिन मुझे मोटिवेशन कभी आता नहीं है. मैं हमेशा ही कहानी और किरदारों से प्रभावित होता हूं.
आपका बैकग्राउंड क्या रहा है और फिल्म मेकिंग से जुड़ाव कैसे हुआ?
मैंने उड़ीसा के इंजीनरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की है. हैदराबाद में नौकरी भी कर रहा था, लेकिन जो कर रहा था उसमें मज़ा नहीं आ रहा था. उसके बाद मैं नौकरी छोड़कर बॉम्बे आ गया. मुझे कुछ क्रिएटिव काम करना था. 2006 में मुंबई आ गया. मैंने गजराज राव के साथ एक फिल्म हॉस्टल होली बनायीं थी. वो कमाल की फिल्म थी. उस फिल्म के बाद मैंने तय कर लिया कि मुझे ऐसे लोगों के साथ काम करना है. ऐसी कहानियां बतानी है.
इस दौरान क्या आर्थिक संकट से भी जूझे ?
आर्थिक तौर पर कभी परेशानी से नहीं जुझा पहले माता पिता थे फिर पत्नी का सपोर्ट था. मेरा संघर्ष अपनी पहचान बनाने का था. जब पापा को बताता था कि अस्सिस्टेंट डायरेक्टर हूं, तो उनको पता नहीं होता था कि ये क्या है. उन्हें लगता था कि इंजीनियरिंग छोड़कर यह क्या कर रहा है. जब मैं बुधिया सिंह डायरेक्ट कर रहा था, तो भी मैंने अपने घरवालों को नहीं बताया था. फिल्म को जब नेशनल अवार्ड मिला और पत्रकार लोग घर पहुंच गए तो मालूम पड़ा.
आपके लिए किसका वेलिडेशन सबसे ज़्यादा मायने रखता है ?
दोस्त और परिवार से वेलिडेशन चाहिए. अगर मेरी पत्नी को फिल्म पसंद आ गयी तो फिर मेरा आधा मसला वही खत्म हो जाता है क्योंकि वो मेरी कॉलेज की दोस्त रही है. हम एक दूसरे को 23 सालों से जानते हैं. वो सॉफ्टवेयर इंजीनियर है. वह पेंटिंग के प्रति रुझान रखती है. अगर उसे फिल्म पसंद आ गयी तो मैं खुश हो जाता हूं.
जामताड़ा 3 को लेकर क्या तैयारियां है?
जामताड़ा से मैं आगे निकल चुका हूं. मैं अब फिर से वही कहानी नहीं कहना चाहता हूं. मैं अब विश्वास और हिम्मत की कहानी कहना चाहता हूं. वैसे जामताड़ा के सारे एक्टर्स भी दूसरे प्रोजेक्ट्स में बहुत बिजी हो गए हैं, तो मुझे नहीं लगता कि जामताड़ा 3 एक दो सालों में बन पाएगी. वैसे भी आप क्रिएटिव के तौर पर नयी दुनिया हमेशा एक्सप्लोर करना चाहते हैं. मेरी एक अलग विषय और कहानी पर एक नयी वेब सीरीज जल्द ही आनेवाली है .