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झारखंड : गांवो‍ं को निगल रही सुवर्णरेखा नदी, गायब हो गये बहरागोड़ा के 6 गांव

पूर्वी सिंहभूम के बहरागोड़ा में सुवर्णरेखा नदी गांवों को निगल रही है. अब तक छह गांवों का अस्तित्व खत्म हो चुका है. अभी दो और गांव संकट में हैं. हर साल करीब 20-30 फीट तक भूमि नदी में गुम हो जा रही है. लोग डर में है कि यही स्थिति रही, तो हमारी पूरी जमीन नदी में समा जायेगी.

बहरागोड़ा (पूर्वी सिंहभूम) प्रकाश मित्रा : घाटशिला अनुमंडल के बहरागोड़ा प्रखंड में सुवर्णरेखा नदी से हो रहा कटाव किसानों के लिए आफत बन गया है. किसानों के अनुसार, नदी में हो रहे कटाव के कारण छह गांव नदी में समा गए. इससे कामारआरा, तालटिकरी, महेशपुर, सोनापेटिया, बालीपाल और संबलशाही गांव का अस्तित्व मिट गया है. अब मोहुलडांगरी और बामडोल गांव पर खतरा मंडरा रहा है. किसानों की करीब दो हजार एकड़ जमीन नदी में समा गयी. नदी में समा गए जमीनों का भी किसान लगान चुका रहे हैं. सुवर्णरेखा नदी में जल स्तर बढ़ने से हर साल 30 फीट तक मिट्टी कटाव हो रहा है. किसानों की जमीन का कुछ हिस्सा बालू घाटों में तब्दील हो गया है. नदी में समा गये गांवों के कुछ लोग मोहुलडांगरी में बस गये हैं. वहीं, कुछ परिवार नदी पार ओडिशा सीमा के गांवों में जाकर बसे हैं.

196 किसानों की दो हजार एकड़ जमीन का पता नहीं

किसान शशांक पैड़ा ने बताया कि उनकी 20 एकड़ खेतिहर भूमि कटाव के कारण सुवर्णरेखा नदी में समा गयी. बाकी जमीन पर वह किसी तरह खेती कर परिवार चला रहे हैं. उनकी तरह अरविंद दंडपाट की एक एकड़, बसंत पैड़ा की सात बीघा, भारत पैड़ा की 20 बीघा, तपन पांडा की 10 बीघा, सत्यवान पैड़ा की 10 बीघा, आदित्य साव की 10 बीघा, शिव शंकर पैड़ा की 12 एकड़ समेत 196 किसान परिवारों की दो हजार एकड़ जमीन नदी में समा गयी. अधिकतर किसानों के पास 4 से 7 बीघा जमीन ही बची है, जहां खेती कर वे किसी तरह गुजारा कर रहे हैं.

वर्ष 2007 में बने छह तटबंध भी कारगर नहीं

सुवर्णरेखा के कटाव को देखते हुए साल 2007 में जल संसाधन विभाग की सुवर्णरेखा परियोजना से मोहुलडांगरी और बामडोल में बाढ़ सुरक्षात्मक योजना की स्वीकृति मिली. नदी किनारे 6 तटबंध का निर्माण हुआ था. हालांकि, यह किसानों के लिए कारगर साबित नहीं हुआ. पानी का बहाव तेज होने के कारण कटाव रुक नहीं रहा है.

चिंता में दो गांवों के किसान, कहीं मिट न जाये हमारी पहचान

किसान चिंता में हैं कि धीरे-धीरे ये दोनों गांव भी नदी में समा जाएंगे. मिट्टी कटाव से मोहुलडांगरी और बामडोल के पास सुवर्णरेखा नदी काफी चौड़ी हो गयी है. इसके कारण लगातार कटाव बढ़ता जा रहा है. किसानों का कहना है कि यही स्थिति रही, तो हमारी पूरी जमीन नदी में समा जायेगी.

वर्ष 1921 की बाढ़ के बाद मोहुलडांगरी गांव बना

मालूम हो कि वर्ष 1921 में आयी बाढ़ ने नदी किनारे बसे कामारआरा, तालटिकरी, महेशपुर, सोनापेटिया, बालीपाल और संबलशाही गांव को नुकसान पहुंचाया. गांव के कुछ लोग पास के गांव और कुछ लोग ओडिशा की ओर पलायन कर गये. ग्रामीणों ने झारखंड में बसे नये गांव का नामकरण मोहुलडांगरी किया. अब मोहुलडांगरी गांव की ओर मिट्टी कटाव तेजी से हो रहा है.

कोल्हान का सबसे बड़ा गांव था कामारआरा

ग्रामीणों ने बताया कि वर्ष 1900 की जनगणना में कोल्हान का सबसे बड़ा गांव कामारआरा था. गांव की आबादी करीब 1200 थी. 1921 की बाढ़ ने गांव को तहस-नहस कर दिया. लोगों को अपनी जमीन जायदाद छोड़कर पलायन करना पड़ा.

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