jharkhand panchayat chunav 2022: खूंटी जिला में कई पंचायतों का नाम बदल गया है. इसमें तोरपा प्रखंड अंतर्गत रायसेमला और दुमंगदीरी पंचायत का नाम अब बदल गया है. रायसेमला पंचायत अब बारकुली और दुमंगदीरी पंचायत अब फटका पंचायत के नाम से जाना जाता है. बारकुली पंचायत अब अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) के लिए सुरक्षित हो गया है.
पहले के चुनाव में नहीं होता था कोई तामझाम
विपिन बिहारी राय बताते हैं कि इस चुनाव में तीन उम्मीदवार थे. उनके अलावा इस चुनाव में हरिश्चन्द्र राय तथा देवेंद्र सिंह उम्मीदवार थे. उन्होंने इस चुनाव में 266 मतों से जीत हासिल की थी. दो बूथ थे. एक रायटोली तथा दूसरा रायसेमला में बूथ था. उन्होंने बताया कि चुनाव प्रचार में कोई तामझाम नहीं था. गांव-गांव जाकर चुनाव प्रचार करते थे. पम्पलेट बांटकर वोट मांगते थे.
पंचायत में हुए थे कई विकास कार्य
विपिन बिहारी राय ने बताया कि अपने मुखिया कार्यकाल के दौरान क्षेत्र के विकास के लिए कई काम कराए. जागु गांव में बड़े बांध का निर्माण कराया जो आज भी चल रहा है. पंचायत भवन, स्वास्थ्य केंद्र, विद्यालय भवन आदि का निर्माण भी कराया. गांव-गांव में कच्ची सड़क का निर्माण कराया. उन्होंने कहा कि पहले मुखिया का रुतबा अलग ही था. प्रशासनिक अधिकारी मुखिया की सलाह से ही काम करते थे.
दुमंगदीरी पंचायत अब बना फटका पंचायत
आर्मी से रिटायर होने के बाद वर्ष 1979 में मुखिया बने सोमा मुंडा ने चुनाव में तीन सौ रुपये खर्च किये थे. साइकिल से गांव-गांव जाकर चुनाव प्रचार किया करते थे. तोरपा प्रखंड के दुमंगदीरी पंचायत से 1979 में सोमा मुंडा चुनाव जीत मुखिया बने थे. दुमंगदीरी पंचायत अब फटका पंचायत के रूप में जाना जाता है. सोमा मुंडा आर्मी से सेवानिवृत्त होकर 1976 में गांव लौटे थे. वे सामाजिक कार्यों में आगे रहते थे. ग्रामीणों ने उनकी छवि को देखते हुए उन्हें चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया. इस चुनाव में उन्होंने दुमंगदीरी पंचायत के लंबे समय से मुखिया रहे दयाल बोदरा को 112 वोट से हराया था. इनके अलावा इस चुनाव में सबन गुड़िया भी चुनाव में उम्मीदवार थे. सोमा मुंडा बताते हैं कि इस चुनाव में उन्होंने महज 300 रुपये खर्च किये थे. नॉमिनेशन का खर्चा 50 रुपया था. एक हजार पम्पलेट छपवाये थे. चुनाव में ना तो भोंपू का शोर था और ना ही कोई अन्य तामझाम. साइकिल से गांव-गांव जाकर प्रचार करते थे.
सरपंच न्याय व्यवस्था देखते थे सोमा मुंडा
उन्होंने बताया कि तब मुखिया का बहुत वैल्यू था. गांव के झगड़े गांव में ही सुलझाया जाता था. सरपंच न्याय व्यवस्था देखते थे. मुखिया के जिम्मे प्रशासनिक तथा विकास के कार्य होते थे. 1979 के बाद 2010 में हुए पंचायत चुनाव में सोमा मुंडा दोबारा चुनाव लड़कर मुखिया बने. वे बताते हैं कि अपने मुखिया के कार्यकाल में उन्होंने विकास के कई काम कराए, जो आज भी पंचायत में एक उदाहरण है.
रिपोर्ट : सतीश शर्मा, ताेरपा, खूंटी.