Jharkhand Panchayat Chunav 2022: गिरिडीह जिला अंतर्गत पीरटांड़ प्रखंड की खुखरा पंचायत में मुखिया के रूप में बिंदेश्वरी पांडेय काफी चर्चित रहे. वे 1960 में पहली बार खुखरा पंचायत से 40 वर्ष की उम्र में मुखिया का चुनाव लड़े थे. उस समय उनके प्रतिद्वंद्वी थे हरि प्रसाद. बिंदेश्वरी पांडेय जनसंघ पार्टी से जुड़े थे, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी हरि प्रसाद कांग्रेस पार्टी से. इस चुनाव में बिंदेश्वरी पांडेय को 600 मत प्राप्त हुए थे, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी हरि प्रसाद को मात्र 80 मत मिले थे. इसके बाद लगातार कई बार उन्होंने खुखरा का प्रतिनिधित्व किया. वर्तमान में खुखरा में ही एक छोटी सी झोपड़ी में रहकर लोगों को कानूनी सलाह देते हैं.
पंचायत स्तर पर हाे जाता था कई मामलों का हल
1960 के दशक में खुखरा पंचायत अंतर्गत पांडेयडीह, सोबनपुर, तुइयो, कमलासिंघा आदि गांव आते थे. बिंदेश्वरी पांडेय ने पहले चुनाव में 1100 रुपये खर्च किया था. उनके समर्थक मंतोष मंडल, हातिम और भिरंगी लाल ने भी पंचायत चुनाव में काफी सहयोग किया था. मुखिया बनने के बाद प्रखंड में भी साइकिल से ही आना-जाना करते थे. उस दौरान खुखरा में कई सामाजिक कार्य हुए. पंचायत स्तर पर ही कई मामलों का समाधान हो जाता था.
आश्रम के नाम से प्रसिद्ध है आशियाना
आश्रम के नाम से प्रसिद्ध बिंदेश्वरी पांडेय का छोटे से आशियाने में क्षेत्र के लोग मामूली विवाद को लेकर कानूनी सलाह लेने आते हैं. 103 वर्ष से अधिक की उम्र के बावजूद वो आज भी पंचायत चुनाव में खूब दिलचस्पी लेते हैं. देश-दुनिया पर भी खूब चर्चा करते हैं. टहलना उनकी दिनचर्या में शामिल है. आज भी बिना चश्मा के अखबार पढ़ते हैं. बिंदेश्वरी पांडेय के परिवार से कई लोगों ने गत दो पंचायत चुनावों में वार्ड और पंचायत समिति का प्रतिनिधित्व किया है. उन्होंने कहा कि इलाके में काफी बदलाव हुआ है. डिग्री कॉलेज बन रहा है. थाना की स्थापना हो गयी है. सड़कें भी बनी है. एक अस्पताल और बैंक की स्थापना से इलाके के लोगों को काफी राहत मिलेगी.
मात्र 300 वोट से हारे विधानसभा चुनाव
खुखरा पंचायत के मुखिया निर्वाचित होने के बाद बिंदेश्वरी पांडेय काफी चर्चित रहे. जनसंघ से जुड़कर सक्रिय राजनीति में भी भाग लेते रहे. वर्ष 1966 के विधानसभा चुनाव में जनसंघ ने उन्हें पीरटांड-डुमरी विधानसभा से प्रत्याशी बनाया. इस चुनाव में उन्हें जनता पार्टी के कैलाशपति सिंह से मात्र 300 वोट से पराजय का सामना करना पड़ा. बाद में कैलाशपति सिंह भी जनसंघ में आ गये. सीटिंग विधायक होने के कारण जनसंघ ने दूसरी बार भी कैलाशपति को ही टिकट दे दिया. इसके बाद उन्होंने कभी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा.
रिपोर्ट : भोला पाठक, पीरटांड़, गिरिडीह.