Jharkhand Panchayat Chunav 2022: पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत जमशेदपुर की 29 वर्षीय कुसुम पूर्ति जिला परिषद उपाध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ने के लिए नौकरी छोड़ दी. कुसुम सामाजिक उत्प्रेरक (Social Catalyst) के तौर पर कार्यरत थी, लेकिन शनिवार (16 अप्रैल, 2022) को उसने इस्तीफा दे दिया. इधर, इस सीट से लगातार दो चुनावों से वर्तमान जिला परिषद उपाध्यक्ष राजकुमार सिंह चुनाव जीतते आ रहे हैं. लेकिन, इस बार यह सीट आरक्षित हो गया है.
इंटर तक की पढ़ाई की
पूर्वी सिंहभूम जिला परिषद सीट संख्या -6 से कुसुम ने चुनाव लड़ने की इच्छा जतायी है. जमशेदपुर के परसुडीह के सरजामदा स्थित लुपुंगटोला निवासी कुसुम पूर्ति ने LBSM कॉलेज से इंटर तक की पढ़ाई की है. उनका लक्ष्य अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरा करना है. चुनाव खत्म होने के बाद वह अपनी स्नातक डिग्री हासिल करने पर फोकस करेंगी.
सामाजिक उत्प्रेरक की नौकरी से दिया इस्तीफा
कुसुम पिछले पांच साल से जमशेदपुर प्रखंड में सामाजिक उत्प्रेरक के रूप में काम रही थी. जलजीवन मिशन के तहत जल संरक्षण तथा स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालय निर्माण के लिए लोगों को प्रेरित करने में उनकी बड़ी भूमिका रही है. इसके अलावा सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के कारण कुसुम क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है. उन्होंने स्वयं सहायता समूह और ग्राम संगठनों के साथ भी नजदीकी से काम किया है. शनिवार को उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया.
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महिलाओं के लिए कुछ अलग करने का है जज्बा
समाजसेवा में आने के बारे में कुसुम कहती हैं कि वे नौकरी में रहते हुए भी समाजसेवा करती रही है. समाज खासकर महिलाओं के लिए कुछ अलग करने का जज्बा हमेशा से उनके दिल में था. उनका कहना है कि नौकरी की अपनी मजबूरियां होती है. यही कारण है कि उन्होंने पंचायत चुनाव के माध्यम से जनसेवा का पूर्णकालिक काम चुना है. जिला परिषद चुनाव ही क्यों? इस सवाल पर कुसुम कहती हैं कि जिला परिषद के उपाध्यक्ष राजकुमार सिंह की प्रेरणा से उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला किया है. कुसुम के अनुसार, समाजसेवा के उनके कार्यों और जरूरतमंद लोगों के लिए कुछ करने की उनकी लगन से प्रभावित होकर राजकुमार सिंह ने उन्हें जिला परिषद का चुनाव लड़ने की सलाह दी.
दादी और बुआ को देख जगी समाजसेवा की ललक
समाजसेवा के माध्यम से अपना नाम, पहचान और मुकाम हासिल करने की इच्छा रखनेवाली कुसुम के मन में अपनी दादी और बुआ को देखकर समाजसेवा की ललक पैदा हुई. कुसुम अपनी दादी करुणा पूर्ति के रास्ते पर चल रही है, जिन्होंने लोगों की सेवा के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी. कुसुम बताती हैं कि उनकी दादी पहले असम में नर्स के रूप में तैनात थीं. बाद में उन्होंने टाटा मोटर्स अस्पताल में नर्स के रूप में सेवा दी, लेकिन लोगों की सेवा के प्रति वे इतनी समर्पित थीं कि उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और आजीवन दीन-दुखियों की सेवा करती रहीं. इलाके में उनका बड़ा नाम है.
अपनी अलग पहचान बनाना चाहती है कुसुम
कुसुम अविवाहित हैं. शादी के बारे में पूछे जाने पर कहती हैं कि एक लड़की के लिए अपनी पहचान होना जरूरी है. हमारे समाज में लड़की जन्म के समय पिता, शादी के बाद पति और बुढ़ापे में बेटे के नाम से जानी जाती है, लेकिन मुझे अपने नाम से जाना जाता है. इसका मुझे गर्व है कि मेरे पिताजी को लोग आज मेरे नाम से जानते हैं.
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Posted By: Samir Ranjan.