26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Paryushana Parv 2023: मानव हृदय को संशोधित करने का पर्व है पर्युषण

पर्युषण पर्व का शाब्दिक अर्थ है-आत्मा में अवस्थित होना. ‘पर्युषण’ शब्द परि उपसर्ग व वस् धातु में अन् प्रत्यय लगने से बनता है. पर्युषण यानी ‘परिसमन्तात-समग्रतया उषणं वसनं निवासं करणं’’- पर्युषण का एक अर्थ है- कर्मों का नाश करना.

ललित गर्ग

जीवन सभी जीते हैं, लेकिन उसे खुली आंखों से देखते नहीं, जागते मन से जीते नहीं. इसीलिए जैन परंपरा में आध्यात्मिक पर्व पयुर्षण को मनाया जाता है. यह पर्व आध्यात्मिकता के साथ-साथ जीवन उत्थान का पर्व है. यह मात्र जैनों का पर्व नहीं है, यह एक सार्वभौम पर्व है. पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है, क्योंकि इसमें आत्मा की उपासना करते हुए जीवन को शांत, स्वस्थ एवं अहिंसामय बनाया जाता है. संपूर्ण संसार में यही एक ऐसा उत्सव या पर्व है, जिसमें आत्मरत होकर व्यक्ति आत्मार्थी बनता है व अलौकिक, आध्यात्मिक आनंद के शिखर पर आरोहण करता हुआ मोक्षगामी होने का सद्प्रयास करता है.

विशिष्ट आध्यात्मिक महत्व क्या है

जैनधर्म की त्याग प्रधान संस्कृति में पर्युषण पर्व का अपना अपूर्व एवं विशिष्ट आध्यात्मिक महत्व है. इसमें जप, तप, साधना, आराधना, उपासना, अनुप्रेक्षा आदि अनेक प्रकार के अनुष्ठान से जीवन को पवित्र किया जाता है. यह अंतरात्मा की आराधना का पर्व है- आत्मशोधन का पर्व है, निद्रा त्यागने का पर्व है.

क्या है पर्युषण पर्व

पर्युषण पर्व का शाब्दिक अर्थ है-आत्मा में अवस्थित होना. ‘पर्युषण’  शब्द परि उपसर्ग व वस् धातु में अन् प्रत्यय लगने से बनता है. पर्युषण  यानी ‘परिसमन्तात-समग्रतया उषणं वसनं निवासं करणं’’- पर्युषण का  एक अर्थ है- कर्मों का नाश करना. कर्मरूपी शत्रुओं का नाश होगा तभी  आत्मा अपने स्वरूप में अवस्थित होगी. अतः यह पर्युषण-पर्व आत्मा  का आत्मा में निवास करने की प्रेरणा देता है. यह आध्यात्मिक पर्व है.  इसका जो केंद्रीय तत्व है, वह है-आत्मा. आत्मा के निरामय, ज्योतिर्मय  स्वरूप को प्रकट करने में पर्युषण महापर्व अहम भूमिका निभाता रहता  है.

क्यों मनाया जाता है यह पर्व

अध्यात्म यानी आत्मा की सन्निकटता. यह पर्व मानव-मानव को जोड़ने व मानव हृदय को संशोधित करने का पर्व है, यह मन की  खिड़कियों, रोशनदानों व दरवाजों को खोलने का पर्व है.
पर्युषण जैन एकता का प्रतीक पर्व है. जैन लोग इसे सर्वाधिक महत्व देते  हैं. संपूर्ण जैन समाज इस पर्व के अवसर पर जागृत एवं साधनारत हो  जाता है. दिगंबर परंपरा में इसकी ‘‘दशलक्षण पर्व’’ के रूप में पहचान  है. उनमें इसका प्रारंभिक दिन भाद्र व शुक्ला पंचमी और संपन्नता का  दिन चतुर्दशी है. दूसरी तरफ श्वेतांबर जैन परंपरा में भाद्र व शुक्ला  पंचमी समाधि का दिन होता है, जिसे संवत्सरी के रूप में पूर्ण  त्याग-प्रत्याख्यान, उपवास, पौषध सामायिक, स्वाध्याय और संयम से मनाया जाता है.

वर्ष भर में कभी समय नहीं निकाल पाने वाले लोग भी इस दिन जागृत हो जाते हैं. कभी उपवास नहीं करने वाले भी इस दिन  धर्मानुष्ठान करते नजर आते हैं. पर्युषण पर्व मनाने के लिए भिन्न-भिन्न  मान्यताएं उपलब्ध होती हैं. आगम साहित्य में इसके लिए उल्लेख  मिलता है कि संवत्सरी चातुर्मास के 49 या 50 दिन व्यतीत होने पर व  69 या 70 दिन अवशिष्ट रहने पर मनायी जानी चाहिए. दिगंबर परंपरा  में यह पर्व 10 लक्षणों के रूप में मनाया जाता है. यह 10 लक्षण पर्युषण  पर्व के समाप्त होने के साथ ही शुरू होते हैं.

पर्युषण महापर्व-कषाय शमन का पर्व

पर्युषण महापर्व-कषाय शमन का पर्व है, जिसमें किसी के भीतर में ताप,  उत्ताप पैदा हो गया हो, किसी के प्रति द्वेष की भावना पैदा हो गयी हो, तो  उसको शांत करने का पर्व है. धर्म के 10 द्वार बताये गये हैं. उनमें पहला  द्वार है- क्षमा यानी समता. क्षमा जीवन के लिए बहुत जरूरी है. जब  तक जीवन में क्षमा नहीं, तब तक व्यक्ति अध्यात्म के पथ पर नहीं बढ़  सकता. भगवान महावीर ने क्षमा यानी समता का जीवन जिया. वे चाहे  कैसी भी परिस्थिति आयी हो, सभी परिस्थितियों में सम रहे. ‘‘क्षमा वीरों  का भूषण है’’-महान व्यक्ति ही क्षमा ले व दे सकते हैं. पर्युषण पर्व  आदान-प्रदान का पर्व है. इस दिन सभी अपनी मन की उलझी हुई  ग्रंथियों को सुलझाते हैं, अपने भीतर की राग-द्वेष की गांठों को खोलते  हैं. वह एक-दूसरे से गले मिलते हैं. पूर्व में हुई भूलों को क्षमा के द्वारा  समाप्त करते हैं व जीवन को पवित्र बनाते हैं.

मैत्री दिवस के रूप में होता है आयोजित

पर्युषण महापर्व का समापन मैत्री दिवस के रूप में आयोजित होता है,  जिसे क्षमापना दिवस भी कहा जाता है. इस तरह से पर्युषण महापर्व एवं  क्षमापना दिवस- यह एक-दूसरे को निकटता में लाने का पर्व है. यह  एक-दूसरे को अपने ही समान समझने का पर्व है. गीता में भी कहा  है‘‘‘आत्मौपम्येन सर्वत्रः, समे पश्यति योर्जुन’’-‘श्रीकृष्ण ने अर्जुन से  कहा-हे अर्जुन! प्राणीमात्र को अपने तुल्य समझो. भगवान महावीर ने  कहा-‘‘मित्ती में सव्व भूएसु, वेरंमज्झण केणइ’’ सभी प्राणियों के साथ  मेरी मैत्री है, किसी के साथ वैर नहीं है. मानवीय एकता, शांतिपूर्ण  सह-अस्तित्व, मैत्री, शोषणविहीन सामाजिकता, अंतरराष्ट्रीय नैतिक  मूल्यों की स्थापना, अहिंसक जीवन आत्मा की उपासना शैली का  समर्थन आदि तत्व पर्युषण महापर्व के मुख्य आधार हैं. ये तत्व  जन-जन के जीवन का अंग बन सके, इस दृष्टि से इस महापर्व को  जन-जन का पर्व बनाने के प्रयासों की अपेक्षा है. मनुष्य धार्मिक  कहलाये या नहीं, आत्म-परमात्मा में विश्वास करे या नहीं, पूर्वजन्म  और पुनर्जन्म को माने या नहीं, अपनी किसी भी समस्या के समाधान में  जहां तक संभव हो, अहिंसा का सहारा ले- यही पयुर्षण की साधना का  सही उद्देश्य है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें