पूर्वी सिंहभूम : उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन टनल में फंसे 41 मजदूरों में पूर्वी सिंहभूम जिले के डुमरिया प्रखंड के भी छह मजदूर शामिल हैं. बांकीशोल पंचायत स्थित बाहदा गांव निवासी भक्तू मुर्मू (29) भी इनमें से एक है. उसके सकुशल बाहर निकलने का इंतजार कर रहे 70 वर्षीय पिता बासेत उर्फ बारसा मुर्मू की मंगलवार को सदमे में मौत हो गयी.बताया गया कि सुबह 8:00 बजे नाश्ता करने के बाद बास्ते मुर्मू अपने दामाद ठाकरा हांसदा के साथ आंगन में खाट पर बैठे थे. अचानक वह खाट से नीचे गिरे और उनका दम निकल गया. दामाद ने इस जानकारी परिजनों को दी. भक्तू मुर्मू का बड़ा भाई रामराय मुर्मू भी कमाने के लिए चेन्नई गया हुआ है. वहीं, दूसरा भाई मंगल मुर्मू दूसरे गांव में मजदूरी करने गया था. घटना के वक्त घर पर बास्ते की पत्नी पिती मुर्मू, बेटी और दामाद थे.
परिजनों के अनुसार, भक्तू मुर्मू के टनल में फंसने की सूचना गांव के सोंगा बांडरा ने दी थी. वह भक्तू के साथ काम करता है. सोंगा बांडरा सुरंग के बाहर है. 12 नवंबर के बाद से कोई प्रशासनिक पदाधिकारी हालचाल पूछने इस परिवार के पास नहीं पहुंचा था. इधर, हर दिन निराशा जनक सूचना मिलने से पिता बास्ते मुर्मू सदमे में चले गये. उनकी मौत के बाद पत्नी पिती मर्मू पत्थर बन गयी है. वह सुबह से पति की लाश के पास पत्थर बनी बैठी है. उसकी आंख से आंसू तक नहीं बह रहे.
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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने श्रमिकों की वीरता और साहस को सलाम किया है. उन्होंने कहा कि हमारे 41 वीर श्रमिक उत्तराखंड में निर्माणाधीन सुरंग की अनिश्चितता, अंधकार और कंपकंपाती ठंड को मात देकर आज 17 दिनों के बाद जंग जीतकर बाहर आये हैं. आप सभी की वीरता और साहस को सलाम. जिस दिन यह हादसा हुआ उस दिन दीपावली थी, मगर आपके परिवार के लिए आज दीपावली है. आपके परिवार और समस्त देशवासियों के तटस्थ विश्वास और प्रार्थना को भी मैं नमन करता हूं. इस ऐतिहासिक और साहसिक मुहिम को अंजाम देने में लगी सभी टीमों को हार्दिक धन्यवाद. श्री सोरेन ने कहा कि देश के निर्माण में किसी भी श्रमिक की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. प्रकृति और समय का पहिया बार-बार बता रहा है कि हमारी नियत और नीति में श्रमिक सुरक्षा और कल्याण महत्वपूर्ण भूमिका में रहे हैं.