फ़िल्म -काली खुही
निर्देशक -टैरी समुंद्रा
प्लेटफार्म -नेटफ्लिक्स
कलाकार- शबाना आज़मी, संजीदा शेख,सत्यदीप मिश्रा,रीवा अरोड़ा और अन्य
रेटिंग -डेढ़
Kaali Khuhi Review : भारतीय समाज में बच्चियों को आर्थिक और सामाजिक रूप से बोझ माना जाता है. यही वजह है कि हमारे समाज में उन्हें मारने की प्रथा सदियों पुरानी रही है. इसी सदियों पुरानी प्रथा पर फ़िल्म काली खुही की कहानी है. जिसे हॉरर जॉनर में प्रस्तुत किया गया है. फ़िल्म का विषय जितना सशक्त है कहानी उतनी ही लचर है. पर्दे पर ना तो वह डरा ही पायी है ना इंटरटेन और ना ही विषय के साथ न्याय कर पायी है.
फ़िल्म की कहानी की बात करें तो एक पंजाब के गाँव की है. पंजाबी में खुही कुएं को कहते हैं यानी काला कुआं. एक दिन अचानक एक बन्द किया हुआ कुआं खुल जाता है और उसमें से साक्षी नाम की एक बच्ची की आत्मा निकल जाती है. जिसे कई सालों पहले उसके पैदा होते ही मार दिया गया था क्योंकि उस गांव में दशकों पहले लड़कियों के पैदा होने पर उन्हें उस काले कुएं में फेंक दिया जाता था. साक्षी की अतृप्त आत्मा अपने पूरे परिवार को अब खत्म करना चाहती है. इसके साथ ही पूरा गांव मरी हुई बच्चियों के रूह से अभिशप्त हो गया है.
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10 साल की शिवांगी(रीवा) इन अतृप्त बच्चियों की मुक्ति की राह बनती है. वो कैसे वो आगे की कहानी में है फ़िल्म बहुत कमजोर है. फ़िल्म की कहानी में कई झोल हैं. पैदा हुई बच्चियों का नाम कैसे रखा जा सकता है. शबाना की किताब में सभी मारी गयी बच्चियों का नाम लिखा हुआ था. जब नवजात बच्चियों को मार दिया गया था तो उनकी आत्मा 10 साल की उम्र की क्यों दिखाया गया है.
नवजात बच्चियों को आत्मा के तौर पर नहीं दिखा सकते थे तो 10 साल की उम्र का दिखाने का औचित्य क्या था. फ़िल्म लॉजिक से लेकर एंटरटेनमेंट और मैसेज सभी मोर्चों पर चूकती है. अभिनय की बात करें तो शबाना आज़मी सहित सभी ने अच्छा काम किया है लेकिन फ़िल्म की कहानी इतनी कमज़ोर है कि ये भी प्रभावित नहीं कर पाते हैं. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी फ़िल्म के विषय के साथ न्याय करती है. कुलमिलाकर सशक्त विषय पर बनी बेहद कमजोर फ़िल्म है.
Posted By: Divya Keshri