हजारीबाग, जयनारयण : कारगिल युद्ध में हजारीबाग के वीर सपूतों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. 1999 में कारगिल युद्ध भारत-पाकिस्तान के सीमित युद्ध के रूप में जाना जाता है. इस युद्ध में हजारीबाग के कई रन बांकुरो ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी. इन्हीं में से कैप्टन बीके सिंह कारगिल युद्ध मेडिकल कोर के सदस्य थे. उन्होंने बताया कि इस युद्ध में जीत हमारी सेना को हुई थी. लेकिन, हमारी सेना को भी नुकसान हुआ था. हमारी कोर लॉजिस्टिक सपोर्ट के लिए हिमाचल के पालमपुर में तैनात थे. 24 घंटे घायल सेना और वीर गति प्राप्त जवानों के परिवारों को मदद कर रहे थे.
कारगिल युद्ध के दौरान कई बार विचलित करने वाली स्थिति आयी
कैप्टन बीके सिंह 1991 में सेना में भर्ती हुए थे. भर्ती के आठ साल के बाद कारगिल युद्ध की लड़ाई लड़ी गयी. उस समय जवान थे. हमारे आंखों के सामने वीरगति को प्राप्त जवान और घायल आते थे. इससे मन बिचलित हो जाता था. कभी लगता था कि लॉजिस्टिक कोर को छोड़कर हथियार उठाकर कारगिल चला जाउं. सबसे विचलित कर देनेवाली स्थिति तब आयी जब कैप्टन विक्रम बात्रा और कैप्टन सौरभ कालिया का शव पालमपुर आया. कैप्टन सौरभ कालिया का शव क्षत-विक्षित था. दोनों कैप्टन स्थानीय पालमपुर के रहनेवाले थे. मानो पूरा शहर सेना के अस्पताल में जमा हो गया था. सभी लोग अपने हीरो को देखने के लिए ललायत थे. इस घटना को लेकर शहरवासियों में काफी गुस्सा था. सेना के जवान बॉर्डर पर दुश्मनों से लोहा ले रहे थे. हमलोगों की जिम्मेदारी थी कि देश के अंदर गुस्सा को कंट्रोल करना और वीरगति प्राप्त जवानों के परिजनों को संभालना. दोनों रनबांकुरों को अंतिम संस्कार किया. इस युद्ध में हमारी सेना के ऐतिहासिक जीत हुआ.
Also Read: झारखंड के 5 पूर्व मंत्रियों की संपत्ति की जांच की मिली स्वीकृति, 29 प्रस्तावों पर कैबिनेट की मुहर
कैप्टन बीके सिंह का परिचय
-
नाम : कैप्टन डॉ बीके सिंह
-
पता : मटवारी
-
सेना में भर्ती : 1991
-
सेवानिवृत : 2021
-
कारगिल युद्ध में हिमाचल के पालमपुर में पदस्थापित थे.
पाकिस्तान के गाजरा शहर को जीतने का था लक्ष्य : अजीत कुमार सिंह
हजारीबाग के वीर सपूत अजीत कुमार सिंह कारगिल युद्ध में 14-बिहार रेजीमेंट में थे. उन्होंने बताया कि कारगिल युद्ध के पहले हमारा रेजिमेंट लखनऊ में पोस्टिंग थी. जैसे ही कारगिल युद्ध शुरू हुआ. मई 1999 में हमारे रेजिमेंट को बुलावा आया. रातोंरात सड़क मार्ग से अखनूर सांबा बॉर्डर पर कूच कर गये. उस समय लांस नायक पद पर इस रेजिमेंट में योगदान दे रहा था. फस्ट बिहार रेजिमेंट के सेना कारगिल के पहाड़ियों पर वीर लड़ाके थे. सेना ने हमें अखनूर सांबा बॉर्डर के पास एक कैनल के पास रूकने को कहा गया था. तीन माह तक कारगिल सीमित युद्ध चलने तक कैनल के पास युद्धाभ्यास करते रहे. हमें निर्देश दिया गया था कि जैसे ही हमें आक्रामण करने का आदेश मिले वैसे ही हमलोग सांबा बॉर्डर के पास लगे फैंसी को काटकर पाकिस्तान के गाजरा सीटी पर कब्जा करना था. हमारे सपोर्ट में आम्र्ड और इनफेंटरी की टीम शामिल थी.
Also Read: झारखंड : मंजूनाथ भजंत्री बने पूर्वी सिंहभूम के नये डीसी, 14 IAS अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग
ऑपरेशन विजय में शामिल होने के लिए मेडल मिला
तीन माह तक चले युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच 26 जुलाई, 1999 को सीजफायर की घोषणा कर दिया गया. हमारी सेना की जीत हुई. जिस दिन सीजफायर की घोषणा हुई उस दिन पूरे रेजिमेंट में खुशी का माहौल था. हमलोगों के लिए बड़ा खाना की व्यवस्था की गयी थी. रात एक बजे तक ऑपरेशन विजय का जश्न मना थे. बाद में सेना की ओर से हमलोगों को ऑपरेशन विजय में शामिल होने के लिए मेडल भी मिला.
परिचय
-
नाम : अजीत कुमार सिंह
-
पिता : सत्यनारायाण सिंह
-
गांव : इचाक मोकतमा, हजारीबाग
-
भर्ती : 1993
-
कारगिल युद्ध में अखनूर सांबा बॉर्डर पर तैनात थे.
-
सेवािनवृत : 2021 में जेसीओ के पद से रिटायर्ड.
Also Read: झारखंड : पलामू में BSF जवान ने महिला सहित 4 लोगों पर तलवार से किया हमला, पीडीएस डीलर की हुई मौत
छह हजार फुट पर दुश्मनों के दांत खट्टे किये थे धीरेंद्र कुमार दुबे
बीएसएफ 107 बटालियन के कंपनी हवलदार मेजर धीरेंद्र कुमार दुबे ने वर्ष 1999 में ऑपरेशन विजय में भाग लेकर दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे. उन्होंने ऑपरेशन के दौरान जवानों के हौसला बढ़ाते हुए दुश्मनों का जमकर मुकाबला किया था. उन्होंने कहा कि समुद्र तल से 16 हजार फुट की ऊंचाई पर जहां बर्फीली हवा चलती थी और वहां ऑक्सीजन की भी कमी रहती थी, ऐसे विषम हालत में उत्साह बरकरार रखते हुए उन्होंने दुश्मनों से कई दिनों तक लड़ाई लड़ते रहे. कटकमदाग प्रखंड के मेयातू गांव के रहने वाले धीरेंद्र कुमार दुबे 1978 में बीएसएफ में भर्ती हुए थे. उन्होंने बताया कि कारगिल युद्ध के समय एक दिन में दो- दो सौ बम धमाके होते थे. बावजूद इसके भारतीय जवान पूरी मुस्तैदी के साथ लड़ाई लड़ते रहे. कारगिल युद्ध के योद्धा ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि नफरत छोड़कर देश से प्यार करे. बीएसएफ से वर्ष 2001 मे रिटायर्ड होने के बाद वह समाज सेवा मे लग गये. उन्होंने समाज को जोडने के लिए लगातार प्रयासरत रहते हैं. हिंदू- मुस्लिम बहुल कटकमदाग प्रखंड मे उन्होंने दोनों समुदाय के बीच आपसी भाईचारगी बनाए रखने मे अहम भूमिका निभाते है .