किसी भी देश या समाज के विकास में महिलाओं की भागीदारी अहम है. इसकी शुरुआत उनकी शिक्षा से होती है. इसीलिए लड़कियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. शिक्षा एक लड़की को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनने में मदद करती है, ताकि वह अपने अधिकारों को पहचान सके और सशक्तीकरण की दिशा में आगे बढ़ सकें. इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने 2004 में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (केजीबीवी) की स्थापना की थी. केजीबीवी को देश के शैक्षिक रूप से पिछड़े प्रखंडों में खोला गया, जहां महिला ग्रामीण साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम था. धनबाद जिले के छह प्रखंडों में केजीबीवी संचालित किया जा रहा है. इनमें झरिया, गोविंदपुर, टुंडी, निरसा, तोपचांची, बलियापुर प्रखंड शामिल हैं. इन विद्यालयों का हाल ठीक नहीं है. अधिकांश विद्यालयों में छात्राएं तंगहाली के बीच रहकर शिक्षा ग्रहण करने को विवश हैं.
जमीन पर गद्दा बिछा सोती
बताया जाता है कि कुछ स्कूलों में छात्राएं जमीन पर गद्दा बिछाकर सोती हैं, वहीं कुछ जगह दरी पर बैठकर पढ़ाई करती हैं. छात्राएं शिक्षा विभाग ने जिला के सभी बालिका आवासीय विद्यालयों में बेंच-डेस्क के साथ बेड व अन्य जरूरी चीजों की कमी को दूर करने के लिए जिला प्रशासन से डीएमएफटी से फंड देने का अनुरोध किया है. लेकिन अभी यह प्रस्ताव विचाराधीन है.
आठ वर्षों में भी नहीं बना झारखंड बालिका आवासीय विद्यालयों का भवन
धनबाद, बाघमारा और पूर्वी टुंडी में राज्य सरकार ने केजीबीवी की तर्ज पर झारखंड बालिका आवासीय विद्यालय (जेबीएवी) की स्थापना की. इन तीनों विद्यालयों के लिए 2015 से 4.41 करोड़ रुपये की लागत से भवन बन रहा है. आठ वर्षों में भी यह पूरी तरह तैयार नहीं हो पाये हैं, जबकि इनका निर्माण कार्य 2017 में ही पूरा कर लिया जाना था. प्रभात खबर की टीम ने जिला में संचालित बालिका आवासीय विद्यालयों की पड़ताल की. इसमें पता चला कि केजीबीवी व जेबीएवी अपने मूल उद्देश्य समाज के वंचित समूहों की लड़कियों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित कराने में सफल नहीं हो पा रहा है.
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