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टेक कंपनियों पर नजर

बड़ी तकनीकी कंपनियों के एकाधिकार के कारण डिजिटल प्रकाशकों को समुचित फायदा नहीं मिल रहा है.

भारत में डिजिटल तकनीक के विभिन्न आयामों का तेजी से विस्तार हो रहा है. बड़ी संख्या में लोग और प्रकाशक डिजिटल कंटेंट बनाने के काम में लगे हैं. लेकिन इंटरनेट से जुड़े संसाधनों पर बड़ी तकनीकी कंपनियों के एकाधिकार के कारण डिजिटल प्रकाशकों को समुचित फायदा नहीं मिल रहा है और मुनाफे का बड़ा हिस्सा कंपनियों के खाते में चला जाता है. इस असंतुलन को लेकर सरकार भी चिंतित है. केंद्रीय सूचना तकनीक राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा है कि यह मुद्दा सरकार की प्राथमिकताओं में है. उन्होंने रेखांकित किया है कि सरकार चाहती है कि इंटरनेट एक मुक्त क्षेत्र होना चाहिए और वहां कमाई एवं मुनाफे को निर्धारित करने का अधिकार कुछ कंपनियों के हाथ में सीमित नहीं होना चाहिए. सरकार जल्दी ही डिजिटल इंडिया कानून लाने की तैयारी में है. इसके प्रारूप पर चर्चा में कंटेंट प्रकाशन और कमाई के मसले पर भी विचार किया गया है. सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी कहा है कि डिजिटल विज्ञापन और कमाई के उचित वितरण के लिए सरकार नीतिगत पहल का प्रयास कर रही है. उल्लेखनीय है कि यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने ऐसे नियमन किये हैं, जिनमें गूगल, फेसबुक आदि बड़ी कंपनियों को विज्ञापन की आमदनी में से समाचार प्रकाशकों को समुचित हिस्सा देने का प्रावधान है. बड़ी टेक कंपनियां स्वयं कंटेंट नहीं बनाती हैं. वे अखबारों, पत्रिकाओं या व्यक्तियों के कंटेंट को साझा करने के लिए मंच देती हैं.

उन कंटेट के कारण ही उनके मंचों पर लोग और विज्ञापनदाता जाते हैं. डिजिटल तकनीक के प्रसार के साथ भारत समेत दुनियाभर में डिजिटल विज्ञापन का बाजार बहुत बढ़ा है. इसका एक नुकसान यह भी हुआ है कि कई देशों, विशेषकर पश्चिम, में पारंपरिक मीडिया का विज्ञापन घटा है तथा छोटे प्रकाशक प्रभावित हुए हैं. दूसरी ओर बड़ी टेक कंपनियों की कमाई तेजी से बढ़ी है और उनका दायरा भी बढ़ा है. ऐसे में उनका डिजिटल क्षेत्र में एकाधिकार हो गया है. भारत के लिए जरूरी है कि इस असंतुलन को जल्दी से दूर किया जाए. बड़ी तकनीकी कंपनियों और मीडिया प्रकाशकों को एक-दूसरे की जरूरत है. यह संबंध परस्पर विश्वास और सहयोग पर आधारित होना चाहिए. इंटरनेट अर्थव्यवस्था के समुचित विकास के लिए ऐसा होना आवश्यक है. अक्सर देखा गया है कि तकनीकी कंपनियां मनमाने ढंग से अपने नियमों में बदलाव करती रहती हैं और उन्हें कंटेंट प्रकाशकों पर थोप देती हैं. यदि नीतिगत प्रावधान हों और इंटरनेट नियमन के ठोस नियम बनें, तो ऐसे व्यवहारों को रोका जा सकता है.

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