केके बिरला फाउंडेशन ने 32वें बिहारी पुरस्कार की घोषणा कर दी है. वर्ष 2022 में यह पुरस्कार राजस्थान के प्रसिद्ध लेखक डाॅ माधव हाड़ा की साहित्यिक आलोचना कृति ‘पचरंग चोला पहर सखी री’ को दिया जा रहा है. माधव हाड़ा की पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 2015 में हुआ था. माधव हाड़ा साहित्यिक आलोचक के रूप में जाने जाते हैं. उनका जन्म 1958 में हुआ है.
बिहारी पुरस्कार के रूप में एक प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिह्न और ढाई लाख रुपये की राशि भेंट की जाती है. यह पुरस्कार महाकवि बिहारी के नाम पर प्रतिवर्ष दिया जाता है. केके बिरला फाउंडेशन द्वारा यह पुरस्कार राजस्थान के हिंदी और राजस्थानी लेखकों को दिया जाता है. यह पुरस्कार पिछले दस वर्ष में प्रकाशित हिंदी अथवा राजस्थानी कृति के लिये दिया जाता है.
बिहारी पुरस्कार का चयन एक निर्णायक समिति करती है. इस समिति के अध्यक्ष हेमंत शेष हैं. इस निर्णायक समिति के अन्य सदस्य हैं मुरलीधर वैष्णव, मनीषा कुलश्रेष्ठ, अंबिका दत्त, डाॅ इंदुशेखर तत्पुरुष एवं डाॅ सुरेश ऋतुपर्ण . इस पुरस्कार की शुरुआत 1991 में हुई थी.
1991 में यह पुरस्कार डाॅ जयसिंह नीरज को उनकी कृति ढाणी का आदमी के लिए दिया गया था. 1992 में नंद चतुर्वेदी को, 1993 में हरीश भादानी, 1994 में डाॅ नंदकिशोर आचार्य, 1995 में डाॅ हमीमुल्ला, 1996 में विजेंद्र, 1997 में ऋतुराज, 1998 में डाॅ विश्वम्भरनाथ, 1999 में डाॅ प्रभा खेतान, 2000 बशीर अहमद मयूख, 2001 प्रो कल्याणमल लोढ़ा, 2002 विजयदान देथा, 2003 में यह पुरस्कार नहीं दिया गया. 2004 में यह पुरस्कार मरुधर मृदुल, 2005 में पुरस्कार नहीं दिया गया. 2006 में यह पुरस्कार अलका सरावगी को दिया गया. 2007 में यशवंत व्यास, 2008 में नंद भारद्वाज, 2009 में हेमंत शेष, 2010 में गिरधर राठी, 2011 में अर्जुनदेव चारण, 2012 में हरीराम मीणा, 2013 में चंद्रप्रकाश देवल, 2014 में ओम थानवी, 2015 में डाॅ भगवतीलाल व्यास, 2016 में डाॅ सत्यनारायण, 2017 में विजय वर्मा, 2018 में मनीषा कुलश्रेष्ठ, 2019 में डाॅ आईदान सिंह भाटी, 2020 में मोहनकृष्ण बोहरा एवं 2021 में मधु कांकरिया को यह पुरस्कार दिया गया.