13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंड : सरकारी सुविधाओं के बिना सिसक रहा ‘कुचाई सिल्क’, विशेष आर्थिक पैकेज मिले तो हो सकता है बदलाव

कोल्हान का 'कुचाई सिल्क’ सरकारी सुविधाओं के बिना सिसक रहा है. वर्ष 2005 से 2013 तक खरसावां और कुचाई में बड़े पैमाने पर तसर की खेती होती थी. हाल के वर्षों में तसर कोसा का उत्पादन लगातार घटने से स्थिति गड़बड़ाने लगी. विशेष आर्थिक पैकेज मिले, तो क्षेत्र की अर्थव्यवस्था बदल सकती है.

खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश : खरसावां-कुचाई के ऑर्गेनिक तसर सिल्क की देश-विदेश में विशिष्ट पहचान है. हाल के वर्षों में तसर कोसा की खेती से सुत कताई व कपड़ों की बुनाई का कार्य प्रभावित हुआ है. कुचाई सिल्क से जुड़े किसान व बुनकरों के हालात अच्छे नहीं हैं. झारखंड सरकार का उद्योग विभाग विशेष आर्थिक पैकेज की व्यवस्था कर योजनाबद्ध तरीके से काम करे, तो किसानों व बुनकरों की स्थिति सुधर सकती है. ग्रामीणों को काम के लिए भटकना नहीं पड़ेगा. वर्ष 2005 से 2013 तक खरसावां और कुचाई में बड़े पैमाने पर तसर की खेती होती थी. राजनगर और चांडिल में भी तसर की खेती होती है. करीब एक दर्जन देशों में यहां के सिल्क कपड़े निर्यात होते थे. विश्व में सिल्क का सर्वाधिक उत्पादक करने वाला चीन भी यहां से सिल्क कपड़ों का आयात करता था. एक दशक पूर्व जिला में करीब आठ करोड़ तसर कोसा का उत्पादन होता था. हाल के वर्षों में तसर कोसा का उत्पादन लगातार घट रहा है. यहां सिल्क का सालाना कारोबार करीब 20 से 25 करोड़ रुपये का है. तसर की खेती को जानने व देखने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं. धान के खेत की मेढ़ पर अर्जुन व आसन के पौधे लगाकर तसर की खेती हो जाती है. किसान धान के साथ तसर का उत्पादन कर लेते हैं.

Undefined
झारखंड : सरकारी सुविधाओं के बिना सिसक रहा ‘कुचाई सिल्क’, विशेष आर्थिक पैकेज मिले तो हो सकता है बदलाव 4

12 वर्षों में नहीं बन सका खरसावां व राजनगर सिल्क पार्क

सिल्क को बढ़ावा देने के लिए करीब 12 वर्ष पूर्व खरसावां व राजनगर में सिल्क पार्क का शिलान्यास हुआ था. अबतक चहारदीवारी से आगे कार्य नहीं बढ़ सका है. दोनों सिल्क पार्क अधूरा है. यहां तसर कोसा से सुत कताई से लेकर कपड़े की बुनाई, डिजाइनिंग की योजना थी. 12 साल बाद भी सिल्क पार्क का कार्य आगे नहीं बढ़ सका है. पार्क के बनने से क्षेत्र के सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलता.

Undefined
झारखंड : सरकारी सुविधाओं के बिना सिसक रहा ‘कुचाई सिल्क’, विशेष आर्थिक पैकेज मिले तो हो सकता है बदलाव 5
Also Read: झारखंड : गुमला, सिमडेगा व हजारीबाग जिले में होगा महाझींगा मछली का पालन, एससी-एसटी मत्स्य पालकों को मिलेगा लाभ

सीएफसी बंद होने से बेरोजगार हो गयीं महिलाएं

किसान अर्जुन व आसन के पेड़ों पर विशेष प्रकार के कीट पालन कर तसर कोसा तैयार करते हैं. तसर कोसा से सूत कताई कर रेशम के धागे तैयार होते हैं. इन धागों से कपड़ा तैयार होता है. इससे कई स्तर पर स्वरोजगार संभव है. पहले गांवों में सामान्य सुलभ केंद्र (सीएफसी) खोले गये थे. इसमें महिलाएं धागा बनाने का काम करती थीं. कुछ केंद्रों पर धागा से तसर कपड़ों की बुनाई होती थी. अब खरसावां, कुचाई, राजनगर व चांडिल के अधिकतर सीएफसी में ताले लटके हुए हैं. एक समय खरसावां-कुचाई में 37 सीएफसी संचालित थे, अब दो चलते हैं. बड़ी संख्या में महिलाएं रोजगार से वंचित हो गयीं. पहले यहां सूत कातने वाली महिलाओं को हर माह करीब 12 हजार रुपये तक आमदनी होती थी. सूत कताई शुरू हो जाये, तो घर-घर महिलाओं को काम मिल सकता है. सीएफसी बंद होने से वहां की मशीनें रख रखाव के अभाव में खराब हो रही हैं.

Undefined
झारखंड : सरकारी सुविधाओं के बिना सिसक रहा ‘कुचाई सिल्क’, विशेष आर्थिक पैकेज मिले तो हो सकता है बदलाव 6

बंबू व लेदर क्रॉफ्ट का कार्य भी बंद

झारखंड सरकार के उद्योग विभाग के झारक्रॉफ्ट की ओर से लाह से चुड़ियां बनाने, बंबू क्रॉफ्ट (बांस के सामान बनाने), लेदर क्रॉफ्ट (लेदर से जूते, बैग आदि) के कार्य पूरी तरह से बंद है. कपड़ों की एंब्रॉयडरी का कार्य भी बंद हैं. इससे महिलाओं के रोजगार पर असर पड़ा है. पहले बड़ी संख्या में लोग बांस की कारीगरी कर रोजगार करते थे.

Also Read: आयुष्मान भव: अभियान की शुरुआत, राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन बोले- लोगों तक स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाना उद्देश्य

मलबाड़ी सिल्क की खेती की योजना खटाई में

कुचाई के गांवों में मलबाड़ी सिल्क की खेती की योजना खटाई में पड़ती दिख रही है. पूर्व में कुचाई के पगारडीह, सांकोडीह, बाइडीह व तिलोपदा की करीब 40 एकड़ जमीन पर शहतूत के पौधे रोपे गये थे. इसकी देखभाल की कमी के कारण अधिकतर पौधे खराब हो गये. सिल्क के चार किस्मों में मलबाड़ी सिल्क सबसे उन्नत व विश्व में सर्वाधिक पसंद किया जाता है. झारखंड में इसकी खेती काफी कम होती है. मलबाड़ी सिल्क मुख्य रूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में होता है.

ऑर्गेनिक तसर को मिल चुका है दर्जा

खरसावां और कुचाई में तैयार तसर को आर्गेनिक का दर्जा मिल चुका है. इस कारण इसकी मांग विदेश में भी है. करीब 10 वर्ष पहले तक बड़े पैमाने पर यहां से सिल्क का कपड़ा निर्यात होता था. यहां के कृषक गर्व से कहते हैं कि एक समय चीन, जर्मनी व मास्को भी कुचाई सिल्क के दीवाने थे. सरकार ने ध्यान नहीं दिया और धीरे-धीरे सबकुछ खत्म होता चला गया. सरकार ध्यान दे तो इसे अब भी पुनर्जीवित करना संभव है.

Also Read: VIDEO: मिशन 2024 को लेकर झारखंड कांग्रेस ने बनायी रणनीति, 14 लोकसभा सीट पर स्थिति मजबूत करने पर जोर

2006 में कुचाई सिल्क के नाम से पहला उत्पाद तैयार हुआ

कुचाई प्रखंड में सबसे अधिक सिल्क का उत्पादन होता है. यहां हर पंचायत में किसान कोकून की खेती करते थे. तसर तैयार करते थे. ऐसा माना जाता रहा है कि यहां सबसे अच्छा उत्पाद होता है. यही वजह है कि यह उत्पाद कुचाई सिल्क के नाम से मशहूर हो गया. वर्ष 2006 में झारखंड सरकार के उद्योग विभाग के झारक्रॉफ्ट की ओर से कुचाई सिल्क के नाम से सिल्क साड़ी तैयार कर देश-विदेशों में बिक्री के लिए भेजी गयी थी.

कुचाई सिल्क देखने के लिए मारंगहातु आए थे राष्ट्रपति

वर्ष 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम झारखंड दौरे पर आए थे. वे कुचाई सिल्क देखने के लिए खरसावां प्रखंड के मारंगहातु गांव गये थे. इस दौरान डॉ. कलाम ने कुचाई सिल्क को आगे बढ़ाने के लिए कई तकनीकी सुझाव दिये थे.

Also Read: झारखंड : पूर्व सीएम रघुवर दास का हेमंत सोरेन पर निशाना, कहा- अपने वादों को भूलकर जनता को कर रहे दिग्भ्रमित

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें