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चतरा में मां भद्रकाली का मंदिर है बेहद खास, माता पर चढ़ने वाले फूल का भक्त करते हैं इंतजार, जानें क्यों

मां भद्रकाली मंदिर का इतिहास पालवंश के कालखंड से है. मां भद्रकाली की आस्था के साथ पूजा करनेवालों की मन्नतें पूरी होती हैं. माता की शक्ति अलौकिक है. मां भद्रकाली लक्ष्मी स्वरूपा कमल पुष्प पर विराजमान हैं

विजय शर्मा, इटखोरी(चतरा) :

चतरा जिले के इटखोरी में ‘भदुली’ के नाम से प्रसिद्ध ‘मां भद्रकाली’ का शक्तिपीठ स्थित है. अर्द्धचंद्राकार में मंदिर के तीन दिशाओं से होकर बहनेवाली उत्तर वाहिनी मोहाने नदी से यहां मनोरम दृश्य नजर आता है. प्राचीनकाल से स्थापित इस मंदिर की महिमा अपरंपार है, जिसकी वजह से यहां झारखंड के अलावा बिहार समेत अन्य राज्यों और देश-विदेश से भक्त माता की पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं. बता दें कि यह भगवान गौतम बुद्ध की तपोभूमि तथा जैन धर्म के 10वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जन्म कल्याणक भूमि भी है. इस मंदिर का निर्माण बंगाल साम्राज्य के राजा महेंद्र पाल ने कराया था.

इसका इतिहास पालवंश के कालखंड से है. मां भद्रकाली की आस्था के साथ पूजा करनेवालों की मन्नतें पूरी होती हैं. माता की शक्ति अलौकिक है. मां भद्रकाली लक्ष्मी स्वरूपा कमल पुष्प पर विराजमान हैं. यहां पहुंचनेवाले भक्त मां भद्रकाली के मस्तक पर चढ़नेवाले फूल के गिरने का बेसब्री से इंतजार करते हैं, जिसे साक्षात माता का आशीर्वाद माना जाता है. यह माना जाता है कि जिसके हाथों में माता का आशीर्वाद पुष्प गिरा है, उसकी मनोकामना पूर्ण हुई है.

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तस्कर के हाथ से मुक्त होकर दोबारा स्थापित हुई मूर्ति

मान्यता है कि माता कि यह प्रतिमा स्वतः प्रकट हुई है, इसलिए इसका महत्व व ख्याति प्रसिद्ध है. माता की शक्ति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 1968 में चोरी होने के बाद भी अंतरराष्ट्रीय मूर्तियों के तस्कर नौलखा के चंगुल से मुक्त होकर पुनः स्थापित हुई. प्राचीनकाल में माता झाड़ियों से घिरी हुई थीं. समय के अनुसार मंदिर के स्वरूप में बदलाव हुआ. नवरात्र के मौके पर बिहार के कई क्षेत्रों से साधक माता की साधना करने के लिए यहां पहुंचते हैं.

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