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महापारणा महोत्सव: मधुबन में आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज से आशीर्वाद लेकर क्या बोले योग गुरु बाबा रामदेव ?

आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी महाराज ने कहा कि मैंने गुरुजी से 200 दिनों के सिंघनिष्क्रीडित व्रत का आशीर्वाद मांगा था, लेकिन गुरुकृपा से 557 दिनों का सिंघनिष्क्रीडित व्रत संपन्न हुआ. आचार्य ने साधना के दौरान के कई अनुभवों को बताया. आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ने 557 दिनों बाद अपना मौन व्रत तोड़ा.

मधुबन (गिरिडीह), मृणाल/भोला. अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज ने 557 दिनों बाद अपना मौन व्रत शनिवार को तोड़ा. मौन व्रत तोड़ने के साथ ही उनके मुखारविंद से ॐ की ध्वनि के साथ णमोकार मंत्र निकला. ओउम णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं. इसके बाद उन्होंने अपने गुरूजनों का जयकारा लगाया. उन्होंने कहा कि साधना के लिए हिम्मत, जुनून और ताकत चाहिए. समारोह स्थल को संबोधित करते हुए प्रसन्न सागर जी महाराज ने कहा कि यह सिंघनिष्क्रीडित व्रत मैंने डेढ़ वर्ष में पूरा नहीं किया, बल्कि इसका अभ्यास पिछले सात वर्षों से कर रहा था, जिसमें गुरुजनों का हमेशा आशीर्वाद मिला. इस मौके पर योग गुरु बाबा रामदेव ने प्रसन्न जी महाराज से आशीर्वाद लिया. श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि अंतर्मना जैसे संत का सानिध्य पाकर धन्य हूं.

आत्मा मरती ही नहीं तो डर किस बात की

आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी महाराज ने कहा कि मैंने गुरुजी से 200 दिनों के सिंघनिष्क्रीडित व्रत का आशीर्वाद मांगा था, लेकिन गुरुकृपा से 557 दिनों का सिंघनिष्क्रीडित व्रत संपन्न हुआ. आचार्य श्री ने साधना के दौरान के कई अनुभवों को बताया. एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वे साधना में लीन थे, तेज तूफान थी, फिर बारिश हुई और ओले भी पड़े. आसपास बिजली भी गिरी, वे साधना के दौरान ही बेहोश भी हो गये, लेकिन फिर भी साधना को जारी रखा. बेहोश की बात सुनकर कई लोग डॉक्टर लेकर आये और इंजेक्शन देने की बात हुई, लेकिन उन्होंने इंजेक्शन लेने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि प्राण भी चला जाए तो गम नहीं. यह सिंघनिष्क्रीडित व्रत पूर्ण होना चाहिए. जब आत्मा मरती ही नहीं तो फिर डर किस बात की. प्रवचन के समाप्ति के बाद आचार्य श्री संभव सागर जी महाराज मंच पर आये. उनके मंच पर आते ही आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी ने दंडवत होकर उनसे आशीर्वाद लिया और फिर दोनों गले मिले. इस भावुक भरे क्षण को देख कई श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गयीं.

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पारसनाथ पर्वत पर सुबह 8.13 बजे की महापारणा

आचार्य 557 दिनों से पारसनाथ पर्वत की सर्वोच्च चोटी पर स्थित एक गुफा में तपस्या में लीन थे. इस दौरान उन्होंने 61 दिनों की लघु पारणा करते हुए 496 दिनों तक निर्जला उपवास भी रखा और पर्वत पर ही एकांतवास में रहे. शनिवार को पर्वत पर ही प्रात: 8.13 बजे महापारणा की और फिर पर्वत पर ही श्रद्धालुओं ने जयकारा लगाया. 557 दिनों बाद आज वे पर्वत से नीचे मधुबन पहुचे जहां विभिन्न संगठनों ने उनका भव्य स्वागत किया. हेलिकॉप्टर से पुष्प वर्षा की गई. उनके स्वागत और इस धार्मिक कार्यक्रम का गवाह बनने सिर्फ देश के कोने – कोने से ही नहीं बल्कि कुवैत, आस्ट्रेलिया, नेपाल समेत कई देशों से श्रद्धालु पहुंचे हैं. इनमें नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री समेत नेपाल के दो-दो सांसद, भारत के केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला, योग गुरू बाबा रामदेव भी शामिल हैं.

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भारत विश्वगुरु बनने की राह पर : पुरुषोत्तम

समारोह को केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने भी संबोधित किया. उन्होंने कहा कि भारत अगर विश्व गुरु बनने के राह पर है तो इसका सबसे बड़ा कारण देश को संतों का आशीर्वाद है. पूरे विश्व में भारत की एक बड़ी पहचान संतों के कारण भी है. जैन समाज के विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल सम्मेद शिखर जी को निर्वाण भूमि कहा जाता है क्योंकि बीस तीर्थंकरों ने इसी स्थल पर मोक्ष की प्राप्ति की है. उन्होंने आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी के कठिन तप और साधना की सराहना की.

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आशीर्वाद पैसे से नहीं, पुण्य से मिलता : रामदेव

योग गुरु बाबा रामदेव ने समारोह स्थल पर पहुंचकर सबसे पहले प्रसन्न जी महाराज से आशीर्वाद लिया और फिर श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि अंतर्मना जैसे संत का सानिध्य पाकर धन्य हूं. आशीर्वाद पैसे से नहीं, पुण्य से मिलता है. जैन धर्म के विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल श्री सम्मेद शिखर जी में 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष प्राप्त किया है. ऐसी भूमि पर आकर सुखद महसूस कर रहा हूं. दिगंबर होना दुनिया का सबसे बड़ा तप, त्याग, वीरता और पराक्रम है. व्यक्ति छोटे-छोटे आकर्षणों में केंद्रित होकर रह जाता है. प्रसन्न सागर जी महाराज जैसे संत द्वारा ऐसी तप और साधना अद्वितीय है. समारोह में देश-विदेश से आये कई अतिथियों व श्रद्धालुओं ने आचार्य श्री का आशीर्वाद लिया.

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