सलिल पाण्डेय
ऋषियों ने आश्विन-मास का कृष्ण पक्ष पितृ-पक्ष के रूप में स्थापित किया है, जिसे पितृ-रात्रि भी कहते हैं, जबकि शुक्लपक्ष में नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. इन दोनों पक्षों की रात्रि का गूढ़ अर्थ यह है कि पितृपक्ष में अपने दिवंगत पूर्वजों के प्रति आभार व्यक्त किया जाये, क्योंकि पूर्वजों के त्याग और तपस्या से ही अस्तित्व सशक्त होता है, जबकि नवरात्रि के अवसर पर अपने परिवार की धार्मिक परंपराओं के अनुसार, जीवन व्यतीत किया जाये. इससे रात के अंधेरे को भी दिन के उजाले की तरह प्रकाशमान किया जा सकता है. इस वर्ष पितृपक्ष की नवमी तिथि शनिवार, 7 अक्तूबर को परिवार में दिवंगत महिलाओं के श्राद्ध के लिए विशेष दिन होगा. खासकर माता, दादी, परदादी तथा नानी, परनानी एवं वृद्ध परनानी इसमें जो दिवंगत हो गयी हैं, उनका स्मरण एवं उनके निमित्त अत्यंत आदर के साथ जो भी संभव हो सके, वह तर्पण, श्राद्ध, दान किया जाना चाहिए. इसी के साथ गायत्रीमंत्र के उपासक सिद्ध व्यक्ति को भोजन कराने का विधान है. जो महिला सौभाग्यवती स्थिति में दिवंगत हुई हैं, उनके लिए तो जरूर मातृ-नवमी को पूजन-अर्चन किया जाना चाहिए.
मातृ-नवमी पर घर में जरूर करें ये उपाय
जो लोग घरों में श्राद्धकर्म इस तिथि के पूर्व कर चुके हों या अमावस्या तक किसी तिथि पर करेंगे, वे भी इस दिन अपनी रसोई में कुछ विशिष्ट भोजन बनवाकर भगवान को तुलसीपत्र के साथ भोग लगाएं तथा गाय, कौआ तथा कुत्ते को खिलाएं. गाय को अपने हाथ से खिलाएं न कि जमीन पर न रखें तथा कौए एवं कुत्ते के लिए पत्ते पर रख कर दें. मान्यता है कि देसी गाय के रोम-रोम में देवी-देवताओं का वास है.
इन बातों का जरूर रखें खास ध्यान
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श्राद्ध में पत्ते की थाली का प्रयोग करना चाहिए न कि थर्मोकोल/प्लास्टिक की थाली का.
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श्राद्ध कराने वाले पुरोहित को भी पत्ते की थाली या धातु की थाली में भोजन कराना चाहिए, लेकिन लोहे की थाली का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
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मातृ-नवमी के निमित्त किये गये पूजन-अनुष्ठान का पूरे श्रद्धा-भाव से पालन करें एवं घर-परिवार में शांति बनाये रखें. आदरपूर्वक किये गये श्राद्ध से जैविक संबंधों से जुड़े पितरों की विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है और घर में सकारात्मकता का वातावरण बनता है.
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