Jharkhand News (शीन अनवर, चक्रधरपुर, पश्चिमी सिंहभूम) : शहंशाह- ए एक्टिंग दिलीप कुमार के साथ मुंबई में 12 साल तक काम करने वाले 85 वर्षीय मोहम्मद मुख्तार खान दिलीप कुमार की मौत की खबर सुनकर लगातार रो रहे हैं. वहीं, मोहम्मद खान की 78 वर्षीया पत्नी हुमैरह खातून दिलीप कुमार का जिक्र करते हुए बार-बार सिसकती है.
चक्रधरपुर के जामा मस्जिद रोड में रहने वाले मुख्तार खान बताते हैं कि दिलीप कुमार एक जिंदादिल इंसान थेे. सच कहूं तो मेरी किस्मत ने मुझे दिलीप कुमार से मिलाया था. हुआ यूं कि मैं घर में बिना बताये वर्ष 1968-69 में अपने मित्र के साथ मुंबई भाग गया. मुंबई में दिलीप कुमार के घर के सामने एक पेड़ की ओट से बैठकर उनके आने का इंतजार करता रहा. मेरा मकसद केवल उनका दीदार करना था.
घर से ही दिलीप कुमार की नजर मुझ पर पड़ी. अपने नौकर को भेजकर मुझे बुलवाया और कहा इतने खूबसूरत नौजवान पेड़ की ओट पर क्यों बैठे हो. मेरी हालत जानने के बाद मुझे मेहमानखाने पर ले गये और नौकरों से कहा इनकी खातिरदारी करो. फिर उन्होंने मुझे अपने साथ काम पर रख लिया और धीरे-धीरे पूरे घर की जिम्मेदारी मुझे सौंप दी. बाहर जब भी शूटिंग पर जाना होता मुझे साथ लेकर जाते.
एक बार यूं हुआ कि कार चालक के आने में विलंब हो गया. दिलीप कुमार खुद कार चलाने लगे. मैं उनके साथ बैठा रहा. मुंबई में राजेंद्र कुमार और दिलीप कुमार तेज रफ्तार वाहन चलाने के लिए बदनाम थे. दिलीप कुमार भी बहुत तेज गाड़ी चलाते हुए स्टूडियो पहुंचना चाह रहे थे. लेकिन, रास्ते में एक जगह जाम लग गयी. मैं उतर कर जाम हटाना चाहा, लेकिन नहीं हटा. दिलीप कुमार खुद उतर गये और लगे चिल्लाने, लेकिन हुआ यूं के जाम हटने के बजाय और भीड़ लग गयी. उन्हें स्टूडियो पहुंचने में काफी वक्त लग गया.
Also Read: ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार की हजारीबाग से जुड़ी हैं यादें, बड़कागांव का गन्ना उन्हें था काफी पसंदमुख्तार साहब बताते हैं कि दिलीप कुमार जरूरत से ज्यादा अच्छे इंसान थे. अपनी तरफ से कभी किसी को तकलीफ होने नहीं देते. उनके घर में 14 नौकर और दो बावर्ची थे. जब कभी शूटिंग से आने में काफी रात हो जाती, तो बहुत आहिस्ते से मेन दरवाजा खोलते और दोनों चप्पलों को हाथ में लेकर दबे पांव घर के अंदर दाखिल होते. वह नहीं चाहते थे कि किसी की नींद में खलल पड़े और मेरी वजह से किसी को परेशानी हो.
अंदर आने के बाद फ्रीज खोलते उसमें जो भी होता खा लेते. अगर नहीं मिलता तो धोने के लिए जो बर्तन रखें होते थे उसे खरोच-खरोच कर खाते थे. लेकिन, कभी नौकरों को या बावर्ची को सोते में नहीं जगाते. कभी-कभी घर लौटते वक्त लाइन होटल से बड़ा पाव लेकर खा लेते थे.
मुख्तार साहब बताते हैं कि उनकी याददाश्त बहुत मजबूत थी. जब कभी किसी नौकर से कोई सामान लाने कहते, तो साथ में वह जगह भी बताते, जहां पर सामान रखा हुआ होता. सामान लेकर आने वाला नौकर अगर थोड़ी देर खड़ा हो जाता और दिलीप साहब किसी काम में मशरूफ रहते, तो देरी के लिए वह नौकर से माफी भी मांगते थे.
Also Read: कोडरमा सांसद अन्नपूर्णा देवी बनीं केंद्रीय मंत्री, बोली- नेतृत्व के भरोसे पर खरा उतरने का होगा प्रयासमुख्तार खान दास्तान फिल्म की शूटिंग का जिक्र करते हुए रोते हैं और बताते हैं कि शूटिंग के दौरान छाता लेकर दिलीप कुमार को दौड़ना था और शर्मीला टैगोर को छाते में छुपाना था. वह इधर-उधर दौड़ रहे हे थे. इस दौरान शूटिंग रुकने पर वह पहाड़ के नीचे ही एक पेड़ के करीब लेट गये. मैंने उन्हें यूं ही लेटा देखकर दौड़ा और तकिया लेकर उनके पास पहुंचा, वह मुस्कुराए और बोले मुख्तार हम मजदूर हैं. मजदूरी करते हैं तो पेट भरता है. आज थक कर यहां लेटे हैं, तो आप तकिया लेकर आये हैं. कब्र में जायेंगे तो तकिया कौन देगा. इसलिए हमें हर वक्त कब्र की तैयारी करनी चाहिए.
मुख्तार साहब कहते हैं दिलीप कुमार के दिल में एक बच्चा बसता था. इसलिए वह घर पर जब भी रहते सभी स्टाफ के बच्चों को जमा कर लेते और उनके साथ लुका-छिपी खेलते. कभी चोर बनते और कभी पुलिस. बच्चों में वह बहुत अजीज और मोहतरम थे.
दिलीप कुमार के साथ सालों वक्त गुजारने वाली मुख्तार साहब की पत्नी हुमैरह खातून बताती हैं कि हमारा परिवार दिलीप कुमार के परिवार के साथ भोजन किया करता था. हमें उसने कभी भी अपने से अलग नहीं समझा. हमेशा परिवार का एक हिस्सा माना. मुझे बहन कहकर पुकारते थे. मेरा बड़ा बेटा इरफान खान (अब स्वर्गवास) उन्हीं के घर पर परवरिश पाया. मेरी बेटी इशरत वहीं स्वीमिंग सीखी.
जब भी रमजान का महीना आता. अपने सभी स्टाफ से पूछते. रोजा कौन-कौन रखता है. मैं रोजा रखती थी. मेरी सेहरी और इफ्तार का वह खास इंतजाम करवाते. बावर्ची से कहते सेहरी और इफ्तार में जितने आइटम्स बनते हैं, सभी बनाएं और रोजेदार को खिलाएं. सेहरी के लिए खार स्टेशन से विशेष मिठाइयां मंगवाते थे. दिलीप कुमार इतने नेक दिल इंसान थे कि उन्हें शहादत का दर्जा मिलेगा.
वह बताती है मेरे शौहर को शुरू से व्यापार का शौक था. 12 सालों तक दिलीप कुमार के साथ रहने के बाद वह चक्रधरपुर आ गये और यहां बोंबे स्टोर नामक दुकान खोले. जहां मुंबई से सामान लाकर बेचे जाते थे. दिलीप कुमार का इतना क्रेज था कि कुछ ही दिनों में सभी सामान बिक जाते. दुकान बहुत अच्छी चलने लगी. जिसके बाद हमने भी एक आलीशान मकान बनवाया. दुश्मनों की कमी नहीं थी. इनकम टेक्स ऑफिस में शिकायत कर दी गई. मेरे पति ने मुंबई जा कर दिलीप कुमार को पूरे मामले की जानकारी दी. उन्होंने एक प्रमाण पत्र अपने हाथों से लिख कर दिया और कहा मुख्तार मेरे यहां काम करता था. इसे 6 लाख रुपये मैंने दिये हैं. जब यह पर्ची इनकम टेक्स ऑफिसर को दिखाया गया, तो वह उल्टे पांव वापस लौट गये.
वह बताती है एक बार ईद का अवसर था. कोई तैयारी नहीं थी और 29 का चांद नजर आ गया. उनकी बहन ताज बीबी और मैं पास खड़ी थी. चांद देखकर दिलीप कुमार ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिये और कहे मेरे दोनों जेब में आप दोनों हाथ डालें. मैं कतराई, लेकिन उन्होंने कहा हाथ डालें. उनकी बहन के साथ मैं भी अलग-अलग पॉकेट में हाथ डाली और मुट्ठी बंद रखने को कहा. दिलीप कुमार ने कहा था, बंद मुट्ठी खाक की खुल गईं तो लाख की. जब हमने हाथ खोला तो मेरे पास ज्यादा पैसे थे और उनकी सगी बहन के पास कम. वह मुस्कुराए और कहे, अपनी-अपनी तकदीर. फिर कहा जाओ ईद की तैयारी कर लो. हम दोनों बाजार गये और ईद की पूरी तैयारी कर घर लौटे.
वह बताती है अपनी छोटी बेटी इरम की शादी मुंबई में हुई. हमने दिलीप कुमार और सायरा बानो समेत पूरे परिवार को आमंत्रित किया, लेकिन दिलीप कुमार और सायरा बानो इस लिए नहीं आये के हम भीड़ को संभाल नहीं पाते. लेकिन, उनके भाई अहसन खान, असलम खान और बहन सईदा बीबी शादी में तशरीफ लाये. सईदा बीबी मेहबूब स्टूडियो के मालिक इकबाल खान की पत्नी है. दिलीप कुमार के 6 भाई और 6 बहने हैं. आज 50 सालों से भी अधिक वक्त से दोनों परिवारों का रिश्ता बना हुआ है.
Posted By : Samir Ranjan.