द वैक्सीन वॉर से अभिनेता नाना पाटेकर एक अरसे बाद सिल्वर स्क्रीन पर वापसी कर रहे हैं. वह साफ़ तौर पर कहते हैं कि फिल्मों को चुनने का आधार जो चार दशक पहले था वह अभी भी वही है. जो रास आता है. वही करता हूं. उनकी इस फिल्म और करियर पर उर्मिला कोरी के साथ हुई बातचीत.
द वैक्सीन वॉर की कहानी किस बारे में है?
यह फिल्म कोविड के वक़्त भारत के वैक्सीन बनाने की कहानी कहती है. यह फिल्म साइंटिस्ट बलदेव भार्गव के अनुभव पर आधारित है. इसके अलावा यह फ़िल्म उनलोगों को भी एक्सपोज कर रही है जिन्होंने उस वक़्त कहा था कि भारत से ऐसा नहीं हो पायेगा. ये ऐसे लोग है, जिन्हे विदेश से पैसा भेजा जा रहा था और वे अपने ही देश के खिलाफ बोल रहे हैं. ऐसे लोगों की कमी नहीं है और वे अपने को अलग – अलग टैग देते हैं. अब उन्हें भारत शब्द से शिकायत है. भारत तो हमेशा ही था। बाहरी लोग इसे इंडिया कहते हैं. हम क्यों उनकी बात को. अपना बनाए. कुछ लोग ये भी बोल रहे हैं कि गेट वे ऑफ़ इंडिया को क्या कहेंगे अरे भारत प्रवेश द्वार, इस पर बहस बेकार है भारत – भारत है.
चूंकि यह रियल किरदार है, तो आप बलराम भार्गव से कितनी बार मिले?
मैं उनसे नहीं मिला क्योंकि मैं एक नया दृष्टिकोण चाहता था. ये भी हकिकत है कि मेरे पास उनका अध्ययन करने के लिए ज्यादा समय नहीं था. वह कैसे चलते थे, कैसे काम करते थे और कैसे बोलते थे. फिल्म पूरी होने के बाद मैं उनसे मिला. मैंने एक अभिनेता के रूप में खुद को निर्देशक की सोच के आगे समर्पित कर दिया और उनकी बात मानता चला गया. वैसे बलराम भार्गव को मेरी परफॉरमेंस बहुत अच्छी लगी.
यह आपकी 80वीं फिल्म है, क्या आप अपनी पुरानी फिल्में देखते हैं?
मुझे नहीं पता कि यह मेरी 80वीं फिल्म है या नहीं. मैं पुरानी फिल्में नहीं देखता,क्योंकि एक बार जब मैं फिल्म पूरी कर लेता हूं,तो मुझे एक नई शुरुआत की जरूरत होती है इसलिए मुझे इसे अपने सिस्टम से बाहर लाना पड़ता है. नए सिरे से शुरुआत करने के लिए आपको इसे छोड़ना होगा. वेंटीलेटर पर अगर एक आदमी है, तो दूसरे को नहीं लेते हैं. फ़िल्म को करने के बाद मैं उसे भूल जाता हूं.
कौन सी चीज आपको फ़िल्म लेने के लिए प्रेरित करती है?
मैं पहले निर्देशकों से पूछता हूं कि उन्होंने इस भूमिका के लिए मुझसे संपर्क क्यों किया. अगर वे मुझे मना लेते हैं तो मैं इसे ले लेता हूं. इस फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री के लिए भी मेरा यही सवाल था उन्होंने मुझे बताया कि फिल्म में एक संवाद है “भारत यह कर सकता है”, यदि आप इसे कहेंगे तो लोग इससे सहमत होंगे. केवल आप ही ऐसा कर पाएंगे आप जनता को समझा सकते हैं, यह सुनकर मैंने वैक्सीन वॉर को हां कह दिया.
आप बहुत कम काम कर रहे हैं, क्या आप कैमरे को मिस करते हैं ?
नहीं, मुझे कुछ भी मिस नहीं करता हूं. मैं अपने गांव और खेत में खुश हूं. इसके अलावा मेरा सोशल वर्क भी है. मैं न केवल महाराष्ट्र में बल्कि जयपुर, कश्मीर और गुवाहाटी सहित पूरे देश में नाम फाउंडेशन के साथ व्यस्त हूं. मेरे पास फ़िल्में करने करने लिए बहुत मुश्किल से समय बचता है.
एक एक्टर के तौर पर आपकी प्राथमिकताए क्या बदल गयी हैं?
मेरी प्राथमिकताएं अभी भी वही हैं, जो पहले थी. मैं आठ घंटे के बाद काम नहीं करूंगा. उसके बाद मेरे सोने का समय होता है. फिल्म शुरू होने से पहले मुझे एक बाउंड स्क्रिप्ट की जरूरत है, अगर कोई स्क्रिप्ट नहीं है तो मैं काम नहीं कर सकता. मैं ऐसी फिल्में करने से इनकार करता हूं. कुछ लोग सेट पर स्क्रिप्ट बदल देते हैं, मैं उस तरह काम नहीं करना चाहता. जो स्क्रिप्ट में है. वही परदे पर आना चाहिए.
किसी फ़िल्म को हां कहते हुए किन बातों का आप खास ख्याल रखते हैं?
अगर मुझे कोई फिल्म पसंद आएगी, तो मैं उसे करता हूं. मैं दो शर्तों पर काम करता हूं, एक तो यह अच्छी स्क्रिप्ट होनी चाहिए और मुझे अच्छा पैसा मिलना चाहिए. अगर वे मेरी इन शर्तों से सहमत नहीं हैं, तो मैं नहीं करता. बेवजह की हिंसा, किसी खास तबके को निशाना बनाना मुझे कभी पसंद नहीं था, ऐसी फ़िल्मों की मौजूदा सफलता मुझे चौंकाती है.
वेलकम नहीं कर रहे हैं?
हां नहीं कर रहा हूं. जो रास आता है. वही करता हूं.
इंडस्ट्री में कितना बदलाव पाते हैं?
इंडस्ट्री छोड़िये मैं तो बम्बई में ही बदलाव देख रहा हूं. ये मेरी बम्बई नहीं है. 55 – 56 की बम्बई मेरी बम्बई थी. सब में बहुत भाईचारा था. एक के घर कुछ पकता था, तो दूसरे के घर भेजते थे. अब तो सब जाति और धर्म में अटके पड़े हैं.
इंडस्ट्री में दोस्त किसे कहेंगे?
ऋषि कपूर, डैनी, अनिल कपूर और मिथुन ये दोस्त रहे हैं. ऋषि बहुत अच्छा इंसान था. वह घर आता रहता था. एक बार वह अपना शराब लेकर आया बोला तेरे घर में तो होगी नहीं. मैंने कीमा और रोटी बनाई थी. नीतू सिंह नहीं आईं ,तो मैंने उसे फोन किया और कहा कि मैं उसके घर में कभी कदम नहीं रखूंगा. फिर वह आईं और दोनो ने साथ में खाना खाया. ऋषि ने कहा तू एक्टर ठीक ठाक है, शेफ कमाल का है, तुझे मैं रेस्तरां खोलकर देता हूं. वह एक अद्भुत व्यक्ति था. जिनसे मेरी मुलाकात कम ही होती थी, लेकिन वह एक बहुत अच्छे दोस्त थे. अब मुझे उसकी याद आती है.
क्या आप अपने जीवन पर किताब लिखेंगे?
नहीं, मैं कुछ भी लिखना नहीं चाहता. जिस दिन मैं मर जाऊंगा उस दिन कोई मुझे याद नहीं करेगा. जब तक मैं जिन्दा हूं, तब तक ही मुझे श्रेय मिलेगा. चले जाने के बाद किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. जब किसी को फर्क ही नहीं पड़ेगा, तो लिखना क्या.