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राष्ट्रीय खेल दिवस: अब खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे नवाब, धौनी, दीपिका, असुंता व निक्की के प्रदर्शन से आया बदलाव

हमारे राज्य के गांवों में प्रतिभा की कमी नहीं है. इन्हें आगे लाने में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी. पदक जीतने पर कैश अवॉर्ड देना और राष्ट्रीय व राज्यस्तर पर बेहतर करनेवाले खिलाड़ियों को छात्रवृत्ति देने के निर्णय ने ग्रामीणों के मन में खेल के प्रति सकारात्मक सोच विकसित की

  • अभिभावक बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खेलों के लिए भी कर रहे प्रेरित

  • नयी पीढ़ी विभिन्न खेलों में गंभीरतापूर्वक दिखाने लगी है सहभागिता

  • खेल बन चुका है उनकी जिंदगी का हिस्सा

सुनील कुमार, रांची: एक समय था जब कहा जाता था, पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब. लोग चाहते थे कि उनके बच्चे पढ़-लिख कर सरकारी नौकरी करें, लेकिन अब लोगों का नजरिया बदलने लगा है. उनमें खेलों के प्रति रुझान पैदा हुआ है. नयी पीढ़ी विभिन्न खेलों में गंभीरतापूर्वक सहभागिता दिखाने लगी है.

एक तरह से कहें, तो खेल उनकी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है. अब लोग भी चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन करें. पिछले कुछ वर्षों में विश्व पटल पर परचम लहरानेवाले राज्य के खिलाड़ियों और सरकार की ओर से खेल व खिलाड़ियों के विकास के लिए किये जा रहे कार्यों ने आम लोगों को जागरूक किया है.

उनमें विभिन्न खेलों को लेकर सकारात्मक सोच विकसित हुई है. जब वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य बना, तब यहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव था, लेकिन उसके बाद स्थिति बदली. खासकर 2011 में 34वें राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के बाद से राज्य में खेलों व मूलभूत सुविधाओं का तेजी से विकास हुआ है.

सरकार का सहयोग मिला, खिलाड़ियों को नौकरी भी

हमारे राज्य के गांवों में प्रतिभा की कमी नहीं है. इन्हें आगे लाने में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी. पदक जीतने पर कैश अवॉर्ड देना और राष्ट्रीय व राज्यस्तर पर बेहतर करनेवाले खिलाड़ियों को छात्रवृत्ति देने के निर्णय ने ग्रामीणों के मन में खेल के प्रति सकारात्मक सोच विकसित की.

राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतनेवाले खिलाड़ियों को कैश अवॉर्ड के अलावा सरकार ने नौकरी भी दी. इससे कई युवा खेल के क्षेत्र करियर बनाने के लिए गंभीर हुए हैं. सरकार ने राज्य में आवासीय व डे-बोर्डिंग सेंटरों की स्थापना की, जहां ग्रास रूट लेवल पर खिलाड़ी तैयार किये जा रहे हैं.

धौनी बने नायक, दीपिका और अन्य से मिली प्रेरणा

महेंद्र सिंह धौनी ने जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में देश का परचम लहराया, तो उस समय राज्य में मूलभूत सुविधाएं कम थीं. फिर भी धौनी ने अपनी मेहनत से पहचान बनायी. उनकी लोकप्रियता के बाद राज्य में सैकड़ों क्रिकेट कोचिंग सेंटर और अकादमी खुले . धौनी के बाद ओलिंपियन तीरंदाज दीपिका कुमारी, भारतीय हॉकी टीम की पूर्व कप्तान असुंता लकड़ा, ओलिंपियन हॉकी खिलाड़ी निक्की प्रधान और सलीमा टेटे युवा खिलाड़ियों के प्रेरणा स्रोत बने.

अंतरराष्ट्रीय स्तर की आधारभूत संरचना हुई तैयार

2011 में रांची में राष्ट्रीय खेल के लिए करोड़ों की लागत से होटवार में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम बनाये गये. इन स्टेडियमों के बनने के बाद यहां कई बड़े खेल आयोजित हुए, जिससे यहां के युवा खेलों के प्रति आकर्षित हुए. इसके बाद राज्य सरकार की ओर से विभिन्न जिलों में खेल मैदान उपलब्ध कराने तथा खेल सेंटर की स्थापना करने की पहल ने सोच को और मजबूत किया. जो प्रतिभाएं गांव में दिन भर भटकती थीं, वह इन सेंटरों में आकर चमकने लगीं.

Posted by: Pritish Sahay

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