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देवी कात्यायनी की पूजा में करें ये उपाय
आज का दिन नवदुर्गा के छठे स्वरूप यानी देवी कात्यायनी की पूजा के लिए समर्पित है. आज के दिन मनोकामना पूर्ति के लिए गोबर के उपले या कंडे जलाकर उस पर लौंग और कपूर की आहुति दे. इसके बाद माता को शहद का भोग लगाएं. ऐसा करने से जीवन में आ रही बाधाएं दूर हो जाती है और सारी मनोकामनाएं पूरी होगी.
कौन है देवी कात्यायनी?
इनकी चार भुजाओं में अस्त्र, शस्त्र और कमल विराजमान है, इनका वाहन सिंह होता है. ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं. गोपियों ने कृष्ण की प्राप्ति के लिए देवी कात्यायनी की पूजा की थी. साथ ही विवाह संबंधी मामलों के लिए इनकी पूजा सबसे अचूक मानी जाती है. इनकी पूजा करने से योग्य और मनचाहा पति की मनोकामनाएं पूरी होती है. ज्योतिष में बृहस्पति का सम्बन्ध मां कात्यायनी माना जाता है.
मां कात्यायनी की आरती
जय जय अम्बे जय कात्यायनी। जय जग माता जग की महारानी॥
बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहावर दाती नाम पुकारा॥
कई नाम है कई धाम है। यह स्थान भी तो सुखधाम है॥
हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी। कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥
हर जगह उत्सव होते रहते। हर मन्दिर में भगत है कहते॥
कत्यानी रक्षक काया की। ग्रंथि काटे मोह माया की॥
झूठे मोह से छुडाने वाली। अपना नाम जपाने वाली॥
बृहस्पतिवार को पूजा करिए। ध्यान कात्यानी का धरिये॥
हर संकट को दूर करेगी। भंडारे भरपूर करेगी॥
जो भी मां को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥
मां कात्यायनी की इस विधि से करें पूजा
सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करें,
साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण करें
मां की प्रतिमा को गंगाजल से शुद्ध करें
पीले रंग का वस्त्र अर्पित करें.
पुष्प अर्पित करें.
रोली व कुमकुम लगाएं.
पांच प्रकार के फल और मिष्ठान अर्पित करें
मां कात्यायनी को शहद का भोग जरूर लगाएं.
मां कात्यायनी की आरती करें.
मां कात्यायनी भोग
मां कात्यायनी को शहद का भोग लगायें
मां कात्यायनी की पौराणिक कथा
मां दुर्गा के इस स्वरूप की प्राचीन कथा इस प्रकार है कि एक प्रसिद्ध महर्षि जिनका नाम कात्यायन था, ने भगवती जगदम्बा को पुत्री के रूप में पाने के लिए उनकी कठिन तपस्या की. कई हजार वर्ष कठिन तपस्या के पश्चात् महर्षि कात्यायन के यहां देवी जगदम्बा ने पुत्री रूप में जन्म लिया और कात्यायनी कहलायीं. ये बहुत ही गुणवंती थीं. इनका प्रमुख गुण खोज करना था. इसीलिए वैज्ञानिक युग में देवी कात्यायनी का सर्वाधिक महत्व है. मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं. इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है. योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. इस दिन जातक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने के कारण मां कात्यायनी के सहज रूप से दर्शन प्राप्त होते हैं. साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है.
मां कात्यायनी कवच
कात्यायनौमुख पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयम् पातु जया भगमालिनी॥
मां कात्यायनी पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करें,
साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण करें
मां की प्रतिमा को गंगाजल से शुद्ध करें
पीले रंग का वस्त्र अर्पित करें.
पुष्प अर्पित करें.
रोली व कुमकुम लगाएं.
पांच प्रकार के फल और मिष्ठान अर्पित करें
मां कात्यायनी को शहद का भोग जरूर लगाएं.
मां कात्यायनी की आरती करें.
मां कात्यायनी मंत्र
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
मां कात्यायनी प्रार्थना
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
मां कात्यायनी की स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां कात्यायनी का ध्यान
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥
मां कात्यायनी का स्त्रोत
कञ्चनाभां वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोऽस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
सिंहस्थिताम् पद्महस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्वाचिन्ता, विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
कां बीजा, कां जपानन्दकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥
कांकारहर्षिणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥
कां कारिणी कां मन्त्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै क: ठ: छ: स्वाहारूपिणी॥
मां कात्यायनी का कवच
कात्यायनौमुख पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयम् पातु जया भगमालिनी॥
मां कात्यायनी की आरती
जय जय अम्बे जय कात्यायनी। जय जग माता जग की महारानी॥
बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहावर दाती नाम पुकारा॥
कई नाम है कई धाम है। यह स्थान भी तो सुखधाम है॥
हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी। कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥
हर जगह उत्सव होते रहते। हर मन्दिर में भगत है कहते॥
कत्यानी रक्षक काया की। ग्रंथि काटे मोह माया की॥
झूठे मोह से छुडाने वाली। अपना नाम जपाने वाली॥
बृहस्पतिवार को पूजा करिए। ध्यान कात्यानी का धरिये॥
हर संकट को दूर करेगी। भंडारे भरपूर करेगी॥
जो भी मां को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥