Varanasi : अभी खरीफ सीजन 2023-24 के लिए मालवीय मनीला सिंचित धान-1 का बीज उपलब्ध नहीं है लेकिन इसकी मांग देश ही नहीं बल्कि विदेश के किसानों के द्वारा होने लगी है. पाकिस्तान के एक प्रगतिशील किसान के रूप में खुद की परिचय देते हुए रिजवान नाम के शख्स ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के जेनेटिक्स एवं प्लांट ब्रीडिंग विभाग के प्रोफेसर एसके सिंह से व्हाट्सएप पर संपर्क किया, उनसे खेती के लिए धान की उन्नत प्रजाति की मालवीय मनीला सिंचित धान-1 बीज की उपलब्ध कराने की अनुरोध किया.
उसके अनुरोध को पूरा करने में असमर्थता व्यक्त करते हुए, प्रोफेसर सिंह ने रिजवान से पाकिस्तान में मनीला स्थित अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) इकाई से संपर्क करने के लिए कहा है. मालवीय मनीला के शोध में मुख्य भूमिका निभाने वाले बीएचयू के जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग के प्रो. श्रवण कुमार ने बताया कि कम समय में अधिक उत्पादन देने वाले धान के बीज की मांग पाकिस्तान से की गई है. बीते छह जून को पाकिस्तान के किसान रिजवान खान का मुझे सोशल मीडिया के माध्यम से फोन आया. व्यस्तता के कारण कॉल रिसीव नहीं कर सका.
इसके बाद रिजवान ने व्हाट्सएप पर वॉयस मैसेज कर मालवीय मनीला बीज की जानकारी मांगी. साथ ही बीज भी मांगा. प्रोफेसर ने बताया कि रिजवान को मैंने बता दिया कि अभी ये प्रजाति भारत के तीन राज्य यूपी, बिहार और ओडिशा के पर्यावरण के अनुकूल तैयार की गई है. इसकी रोपाई पाकिस्तान में संभव नहीं हैं.
प्रो. श्रवण कुमार ने बताया कि पाकिस्तान से आए वॉयस संदेश के बाद जब मैंने रिजवान खान से बात की तो उन्होंने बीज उपलब्ध कराने की बड़ी गुजारिश की. मैंने उन्हें ये बता दिया है कि मैं बीज सीधे उपलब्ध नहीं करा सकता. हां, अगर उन्हें फिर भी ये बीज चाहिए तो शोध में सहयोगी रहे अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) से मदद ले सकते हैं. इरी पूरे विश्व के लिए शोध करता है. इसके केंद्र पाकिस्तान में भी हैं.
मालवीय मनीला सिंचित धान-1 को विकसित करने में बीएचयू के जेनेटिक्स एवं प्लांट ब्रीडिंग विभाग के प्रोफेसर श्रवण कुमार के साथ अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के सहयोग से इस किस्म को विकसित किया जा सका है. प्रोफेसर श्रवण कुमार सिंह ने किसान तक को बताया कि कम समय और कम सिंचाई में अधिक उत्पादन देने वाली धान की यह किस्म है. दूसरी धान की प्रजातियों से 30 से 35 दिन पहले ही यह तैयार हो जाती है. धान की यह किस्म 115 दिन में तैयार होगी.
वही इसका उत्पादन 64 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है. वही यह धान की खेती यूपी ,बिहार और उड़ीसा कि किसान कर सकेंगे. 5 मई को इस प्रजाति को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की वैराइटल आईडेंटिफिकेशन कमेटी ने असम की वार्षिक बैठक में पास किया है. हालांकि इस किस्म के धान का बीज 2024 में किसानों को उपलब्ध हो सकेगा.