बर्दवान/पानागढ़, मुकेश तिवारी : पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्दवान जिले के कालना नगरपालिका स्थित राष्ट्रीय बाल श्रमिक विद्यालय के बंद होने से बाल श्रमिक बच्चों का भविष्य अधर में लटक गया है. कालना नगरपालिका स्थित राष्ट्रीय बाल श्रमिक विद्यालय भवन में इन दिनों झाड़ियां उग आई हैं. घटना को लेकर उक्त विद्यालय शिक्षक तरुण पाल का कहना है कि वर्तमान समय में एक बार फिर श्रमिकों के बच्चे बाल मजदूर बनने की कगार पर हैं. जो विद्यालय इन बाल श्रमिकों को बेहतर जीवन जीने की सीख देने में जुटा था आज बंद पड़ा है. पीड़ित शिक्षक ने कहा कि राष्ट्रीय बाल श्रमिक विद्यालयों को बंद करने के सरकार के फैसले के कारण ऐसा हो रहा है.
तरुण पाल ने बताया कि श्रम विभाग ने 1996 से चल रहे इन स्कूलों को 2019 में अचानक बंद करने का आदेश जारी कर दिया था. इसके बाद उक्त स्कूलों को सर्व शिक्षा मिशन योजना से जोड़े जाने की उम्मीद लगायी गयी थी. लेकिन उसके बाद श्रम विभाग आगे कोई कार्रवाई करता नजर नहीं आया. इसके बावजूद विद्यालय के शिक्षक मार्च 2022 तक स्कूल चलाते रहें. यहां तक कि मध्याह्न भोजन भी खुला था. यदि ऑडिट रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी जाये तो संभावना है कि बकाया भुगतान भी मिल जाये. निर्देश जारी होने के बाद से स्कूल के शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों का वेतन रोक दिया गया है.
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इसके अलावा सरकार की ओर से कोई वादा नहीं किया गया है. वेतन बंद होने से पूर्व बर्दवान जिले के 118 और राज्य भर के चार हजार शिक्षक व गैर शिक्षक कर्मचारी संकट में आ गये हैं. इस संबंध में राज्य की मुख्यमंत्री से लेकर केंद्र के संबंधित विभागों के मंत्रियों तक को भेजी गई चिट्ठी काम नहीं आई है. राज्य में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी और लोकसभा में विपक्षी दल को भी पत्र भेजा गया है. लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी से भी इस दिशा में उपयुक्त कदम उठाने की मांग की गयी है.
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इसके लिए बाल श्रमिक विद्यालयों को खोलने के लिए चिट्ठी भेजी गई थी. लेकिन किसी की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई, लंबे समय से स्कूल के बंद होने के कारण स्कूल के सामने जंगल, झाड़ और घास उग आये हैं. साथ ही कुछ लोगों ने स्कूल की संपत्ति पर भी कब्जा करना शुरू कर दिया है. लेकिन अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या जिले और राज्य के बाल श्रमिक भी प्रवासी मजदूरों का जीवन चुनकर दूसरे राज्यों में पलायन करेंगे?
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