यह बात सर्वविदित है कि महामारी के दौर में ओटीटी प्लेटफॉर्म इंडस्ट्री के लिए तारणहार बनकर आये थे. जब लॉकडाउन में फिल्में सिनेमाघरों तक नहीं पहुंच पा रही थीं, तो ये ओटीटी प्लेटफॉर्म ही सहारा बनें. इसके बाद कई निर्माताओं को अपनी फिल्मों को ठंडे बस्ते में डालने की बजाय ओटीटी पर रिलीज करने का ना सिर्फ बढ़िया विकल्प मिला, बल्कि इससे उनको मोटा मुनाफा भी हुआ. मगर जल्द ही ओटीटी प्लेटफॉर्म बॉलीवुड के लिए डंपिंग ग्राउंड बनने लगे, जहां वे एक के बाद एक उन फिल्मों को रिलीज करने लगे, जिनकी थिएटर रिलीज को लेकर भरोसा नहीं था, लेकिन अब ओटीटी प्लेटफाॅर्म भी काफी चूजी हो गये हैं. फिल्म रिलीज के लिए कई नियम बदल दिये गये हैं. इसी पड़ताल पर उर्मिला कोरी की विशेष रिपोर्ट.
कुछ समय पहले तक कहा जाता था कि फिल्में अपनी लागत वसूल लेती हैं. सेटेलाइट राइट्स, म्यूजिक राइट्स के अलावा इन दिनों मेकर्स के पास ओटीटी का विकल्प भी है, लेकिन मौजूदा स्थिति पर गौर करें, तो ओटीटी प्लेटफाॅर्म्स इसके लिए अब आसानी से तैयार नहीं हैं. निर्देशक राजकुमार संतोषी ने हाल ही में मिथुन चक्रवर्ती के बेटे नमोशी को लेकर फिल्म ‘बैड बॉय’ बनायी थी. राजकुमार संतोषी ने बातचीत में कहा कि वह अपनी इस फिल्म को थिएटर में रिलीज करने की बजाय ओटीटी पर रिलीज करना चाहते थे, लेकिन किसी ओटीटी ने सपोर्ट नहीं किया. निर्देशक सुधीर मिश्रा की फिल्म ‘अफवाह’ के मेकर्स भी अपनी फिल्म की ओटीटी रिलीज ही चाहते थे. मौजूदा बॉक्स ऑफिस पर गौर करें, तो हर हफ्ते दो से तीन फिल्में ही रिलीज हो रही हैं, जबकि सिनेमाघरों में फिल्मों के बॉक्स ऑफिस आंकड़े किसी से छिपे नहीं हैं.
इंडस्ट्री से जुड़े जानकारों की मानें, तो ओटीटी ने अपना रुख तय कर लिया है. वे अब उन फिल्मों को नहीं खरीद रहे हैं, जो उन्हें सीधे ऑफर हो रही हैं, बल्कि उनका कहना है कि निर्माता फिल्म को पहले थिएटर्स में रिलीज करें, उसके बाद ही वह उन फिल्मों को खरीदने पर विचार करेंगे. वह अब मेकर्स की कीमत पर फिल्मों को नहीं खरीदेंगे. वही फिल्में ओटीटी रिलीज के लिए चुनी जायेंगी, जो थिएटर की कसौटी से गुजरी हों. अगर फिल्म ने थिएटर में एक-दो हफ्ते तक ठीकठाक बिजनेस किया है, तो उन्हें निर्माता की कीमत पर खरीदा जा सकता है. वहीं, अगर दर्शकों ने फिल्म को पूरी तरह से नकार दिया, तो ओटीटी उस फिल्म को अपनी कीमत पर ही खरीदेंगे. यह कीमत फिल्म की लागत से थोड़ा-बहुत ही ऊपर या उससे कम भी हो सकती है या फिर नहीं भी खरीदी जा सकती है.
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एक इंटरव्यू में अभिनेता जॉन अब्राहम ने कहा था कि ईमानदारी से कहूं, तो इंडस्ट्री की यह आम धारणा है कि अगर किसी अभिनेता को अपनी किसी फिल्म पर भरोसा नहीं है, तो वह उसे ओटीटी पर डंप कर देता है. ओटीटी रिलीज का विकल्प चुनने वाली लगभग 90 फीसदी फिल्में खराब थीं. सभी ने महामारी को बैसाखी की तरह इस्तेमाल किया और आगे भी कर रही हैं. आंकड़ों की मानें, तो जॉन अब्राहम का यह स्टेटमेंट सही भी है. कोविड के बाद सितंबर, 2021 से सिनेमाघर फिर से खोल दिये गये, लेकिन बॉलीवुड के कई एक्टर्स और उनकी फिल्मों ने ओटीटी रिलीज को ही चुना. बॉलीवुड एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित की फिल्म ‘मजा मा’ ओटीटी पर बेअसर साबित हुई थीं. अक्षय कुमार की ‘कठपुतली’ को भी लोगों ने सिरे से नकार दिया था, तो वहीं दीपिका पादुकोण की ‘गहराइयां’ भी ओटीटी पर सतही साबित हुई. ओटीटी पर सीधे रिलीज होने वाली फिल्मों के अलावा शमशेरा, ब्रह्मास्त्र का हश्र भी ओटीटी पर कुछ बढ़िया नहीं रहा, जबकि मेकर्स ने ओटीटी को बड़ी कीमत पर इन फिल्मों को बेचा था.
ओटीटी अपने नये नियमों के तहत थिएटर में फिल्मों की सफलता को देखते हुए चुनेगी, पर आंकड़े ये भी बयां करते हैं कि कई बार फिल्में टिकट खिड़की पर असफल हुई हैं, लेकिन ओटीटी पर इन फिल्मों ने धमाल मचा दिया. लाल सिंह चड्ढा, रनवे 37, जर्सी, झुंड अपने-अपने ओटीटी पर कई हफ्तों तक टॉप 10 फिल्मों की लिस्ट में शुमार रही हैं. वहीं, ट्रेड विश्लेषक कोमल नहाटा ने कहा, यह नियम जरूरी है. यह कहीं-न-कहीं अच्छे कंटेंट को प्रोमोट करेगी. अच्छी चीजों को प्राथमिकता दी जायेगी, तो लोग उसे और महत्व देंगे. ओटीटी किसी भी फिल्म पर पैसे लगाने की बजाय अच्छी फिल्मों को अपने प्लेटफाॅर्म से जोड़ना चाहती है. अच्छी फिल्में रहेंगी, तो उसके सब्सक्राइबर भी बढ़ेंगे. यह साफ तौर पर बिजनेस की बात है. फिल्म निर्माता विपुल शाह ने कहा, बॉक्स ऑफिस पर फिल्में चल नहीं रही हैं, इसलिए ओटीटी नये नियम लेकर आयी है. छह महीने बाद फिल्में चलने लगेंगी, तो यह नियम भी ओटीटी बदल देगी. आखिर में सफलता ही है, जो मायने रखता है.