अभिनेता अभिजीत सिन्हा टीवी, फिल्म और वेब सीरीज में सक्रिय हैं. पिछले एक दशक से इंडस्ट्री में अपनी एक खास पहचान बनाने में संघर्षरत अभिजीत सिन्हा की जर्नी की खास बात यह रही है कि उन्होंने अपने अभिनय के जुनून के लिए कॉर्पोरेट की अच्छी नौकरी को छोड़ दिया, अभिजीत बताते हैं कि मिडिल क्लास परिवार से हूं और पारिवारिक जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए के बाद ही अपने पैशन को पाने के लिए काम कर सकता था, इसीलिए 36 साल की उम्र में इंडस्ट्री में आया हूं. काफी देर से आया हूं, तो ज़्यादा मेहनत करनी पड़ रही है. डबल स्पीड से दौड़ना पड़ रहा है, ताकि रेस में बने रहे हैं. पेश है उर्मिला कोरी से हुई बातचीत…
आपका बैकग्राउंड क्या रहा है ?
मेरी पैदाईश और परवरिश बिहार के पटना की है. ग्रेजुएशन के बाद मैं एमबीए करने के लिए महाराष्ट्र के नागपुर में आ गया. पढ़ाई के बाद १२ साल तक कॉर्पोरेट सेक्टर में काम किया. उसके बाद मैंने जॉब छोड़ा और एक्टिंग की पढ़ाई बैरी जॉन एक्टिंग स्कूल से की. उसके बाद नादिरा जहीर बब्बर के एकजुट नाटक से जुड़ा. वहां से थिएटर शुरू किया फिर टीवी, फिल्में और लघु फिल्मों से जुड़ता चला गया.
कॉर्पोरेट जॉब करते हुए एक्टिंग से जुड़ाव कैसे हो गया ?
एक्टिंग का शौक अचानक से नहीं हुआ. शौक तो कॉलेज के ज़माने से ही था, लेकिन पटना में हमें इतना एक्सपोजर नहीं मिला था. हमें पता ही नहीं था कि थिएटर कहाँ होता है. उस ज़माने में इंटरनेट नहीं होता था. अखबारों में भी इसका थोड़ा बहुत ही जिक्र होता था. हमारे घर का कल्चर भी ऐसा नहीं था. मेरे पिताजी बैंक में काम करते थे. मां टीचर थी. हमारा सर्विस क्लास फॅमिली का सीमित दायरा था. 1998 की बात कर रहा हूँ. एक मिडिल क्लास फैमिली का जैसे सेट जीवन होता है कि पढ़ाई करना है फिर नौकरी और फिर शादी और बच्चे . मैंने भी वही किया, लेकिन जब सबकुछ सेट हो गया. मुंबई में अपना घर ले लिया, बच्चा और नौकरी में अच्छी पोजीशन, तो मुझे लगा कि अब अपना पैशन फॉलो करने का यही सही समय है. उसके बाद मैंने एक्टिंग का कोर्स किया.
आपके इस फैसले में आपकी पत्नी का कितना सपोर्ट था ?
मैं अपनी वाइफ को क्रेडिट दूंगा. आज मेरा जो भी कुछ अचीवमेंट है. उसमें मेरी वाइफ का बहुत बड़ा हाथ है. वो भी कॉर्पोरेट सेक्टर में काम करती हैं. अभी भी करती हैं. उन्होंने कहा कि आप अपना पैशन फॉलो कीजिये, अगर आपको लगता है कि आपको यही करना है और इसमें आप कुछ अचीव कर सकते हैं. मैं घर और सब कुछ संभाल लूंगी. आज दस साल हो गए हैं. अभिनय में मेरा संघर्ष अभी भी ज़ारी है, लेकिन उसका सपोर्ट बरक़रार है.
पहला मौका कब मिला था ?
टीवी में एक सीरियल आता था फियर फाइल्स. उसमें उनको एक नेवी अफसर के रोल के लिए नॉन एक्टर चाहिए था, जिसको कोई जानता ना हो और वह आर्मी अफसर की तरह दिखता हो. वो मेरा पहला रोल था फिर टीवी में छोटे-छोटे किरदार किये. टीवी के प्रसिद्ध शो क्राइम पेट्रोल से फिर जुड़ा. मैं 150 से अधिक एपिसोड्स का वहां पर हिस्सा रहा हूं. सावधान इंडिया भी किया. मुझे लगता है कि टीवी में जितने भी क्राइम शो है. मैंने लगभग सब किए हैं. 2014 से 2019 तक मैंने लगभग हर क्राइम शो किया. 2018 में अदृश्य फिल्म आई, जिसमें फिल्मों में मेरी शुरुआत हुई. उसके बाद जंगली, चुप, होटल, आज़म, पूर्वांचल फाइल्स, तुमसे ना हो पायेगा, काला जैसी फिल्मों का हिस्सा बनता चला गया है. मैं इनसाइड एज वेब सीरीज का भी हिस्सा था. बिहार के हॉकी कोच जो हरिंदर सिंह थे उन पर कोच सर करके एक वेब सीरीज बनी है, उसमें भी काम किया है, लेकिन वह कभी रिलीज़ नहीं हो पायी. क़ानूनी पचड़े में है. देहाती लड़के अमेज़न प्राइम वीडियो पर आएगा.
ओटीटी स्पेस आने से कितना फायदा मिला है ?
एक्टर के तौर पर फर्क नहीं आया है. वहां पर भी लीड में उन्हें ही मौका मिलता है, जिनका थिएटर या फिल्मों का अच्छा खासा अनुभव हो. हां ये अच्छी बात हुई है कि सिनेमाघरों पर निर्भरता खत्म हो गयी है. जिस वजह से नए लोग भी फिल्में बनाने का हिम्मत कर पा रहे हैं. छोटे-छोटे राज्यों में भी फिल्में बनने लगी हैं और वहां के स्थानीय कलाकारों को मौका मिलने लगा है. ओटीटी की वजह से लगता है कि रिलीज हो जायेगी.
अभिनय के अलावा क्या फिल्मों के किसी और विधा से भी जुड़ाव है ?
2017 से स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर भी मैं एक्टिव हूं. 12 से अधिक लघु फिल्मों की राइटिंग और निर्देशन किया है. मैं गाने भी लिखता हूं. अभी मैंने अपनी एक वेब सीरीज पूरी की है. इसके अलावा मैं किताबें और अन्थालोगिस्ट, वाईस ओवर आर्टिस्ट के तौर भी सक्रिय हुआ हूं.
क्या कभी ऐसा भी हुआ है कि आपको कोई अच्छा रोल मिलते-मिलते रह गया ?
मेरे साथ ऐसा बहुत बार हुआ है. मैं बताना चाहूंगा कि एक सीरियल आता था बेहद. जेनिफर विंगेट वाला. उसमें एक सीन था, जिसमें कुशल पंजाबी को एक पुलिस वाला मारता है. जेनिफर उस पुलिस अफसर को मारकर गिरा देती है. वो ट्रैक बहुत हिट हुआ था. पुलिस वाला मैं ही था. उसके बाद मुझे अग्रीमेंट करने के लिए बुलाया गया कि हम छह महीने इस रोल को शो में देना चाहते हैं. वो उस किरदार को वापस लाना चाहते थे. मैं जब अगले दिन ऑफिस पहुंचा, तो मालूम पड़ा कि कास्टिंग डायरेक्टर ने कल रात शो छोड़ दिया और उनकी अस्सिस्टेंट अब शो को हैंडल कर रही हैं और उन्होंने मेरी जगह अपने बॉयफ्रेंड को वो रोल दे दिया है. फिल्मों में भी मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ है. कास्टिंग एजेंसी आपको ऑडिशन के बाद सेलेक्ट करती है और शूटिंग के लिए आपके डेट्स ब्लॉक रखती है और फिर आपको मालूम पड़ता है कि किसी परिचित चेहरे ने अपनी पहचान से वो रोल येन मौके पर ले लिया. आपने उस प्रोजेक्ट्स के लिए डेट्स ब्लॉक किये थे, तो दूसरा काम भी आपने नहीं लिया है. वैसे ये हर आउटसाइडर के साथ ज़रूर हुआ होगा. मैं ही अकेला नहीं हूं. सौतेला व्यवहार कास्टिंग एजेंसी और इंडस्ट्री से होता आया है.
बिहार से अभी भी कितना जुड़ाव है ?
मेरा घर अभी भी बिहार के कंकड़बाग में है. मेरे माता पिता आते जाते रहते हैं. मेरे सास ससुर पटना के गोला रोड में ही रहते हैं, तो साल में एक दो बार आना-जाना हो ही जाता है. वैसे बिहार राज्य ही नहीं, बल्कि वहां के लोगों से भी खास लगाव है. कोशिश रहती है कि बिहार और यूपी के लोगों के साथ मिल जुल कर काम करते रहे. भले वह पैसे ना दें या कम दें. बिहार की भाषा और वहां के लोगों को आगे लाने के लिए मैं कम से कम अपना श्रम तो दे ही सकता हूं.