अलीगढ़ : कवि गोपालदास नीरज की पुण्यतिथि पर नुमाइश मैदान स्थित नीरज – शहरयार पार्क में उनकी प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए. इस दौरान शहर के प्रतिष्ठित लोग उपस्थित थे. गोपालदास नीरज का 19 जुलाई 2018 को निधन हो गया था. अलीगढ़ के दो स्कूलों में नीरज जी की याद में संग्रहालय खोला जा रहा है. गोपालदास नीरज की पांचवी पुण्यतिथि पर उनके पुत्र मिलन प्रभात ने श्रद्धांजलि देने पहुंचे. उन्होंने कहा कि उनकी याद में संग्रहालय खोला जा रहा है. चार जनवरी को उनके जन्म दिवस पर इसका उद्घाटन किया जाएगा.केपी इंटर कॉलेज और डीएस कॉलेज में संग्रहालय बनाया जा रहा है. नीरज नाम से साहित्य अकादमी की स्थापना की भी मांग की गई है.
मिलन प्रभात ने कहा कि उनका जीवन दर्शन बड़ी सादगीपूर्ण था. वह लोगों को प्यार बांटते थे. उन्हीं के कदमों का अनुसरण कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि एक साहित्यकार के रूप में गोपालदास नीरज का मूल्यांकन सही नहीं हुआ. उनके गीतों में बहुत बड़ा दर्शन था लेकिन उन्हें केवल एक फिल्मी और श्रृंगार का कवि माना है. उन पर 25 पीएचडी हो चुकी हैं. वही गोपालदास नीरज की बहू ने भी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि भले ही आज उनका शरीर हमारे साथ नहीं है. लेकिन हर पल उनका अहसास हमारे साथ रहता हैं .
कांग्रेस के पूर्व एमएलसी विवेक बंसल ने कहा कि गोपालदास नीरज की कविताओं का स्मरण कर स्मृतियों को ताजा कर रहे हैं. उनकी रचना अतुलनीय है. नीरज जी की कविताओं में समाज की संवेदनशीलता है. वहीं एएमयू में संगीत के शिक्षक जॉनी फॉरस्टर ने कहा कि नीरज जी कवि, गीतकार के अलावा समाज सुधारक भी थे. उन्होंने एक ऐसे हिंदुस्तान की कल्पना की थी जिसमें सब मिलजुल कर रहें. नीरज जी के करीबी रहे राकेश सक्सेना ने बताया कि वह अलीगढ़ के कवि सम्मेलनों में भाग लेते थे. नीरज जी फक्कड़ स्वभाव के व्यक्ति थे. फकीरी जिंदगी जीते थे. उनको किसी चीज का घमंड नहीं था. वह दो बार दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे. उनके अंदर अहम नहीं था. नए कवियों को भी आगे बढ़ाते थे. मंच देते थे. मालवीय पुस्तकालय पर उनके नाम का द्वार है.
राकेश सक्सेना ने बताया कि नीरज जी की पहचान केवल कवि के रूप में की जाती है. नीरज जी को साहित्यकार नहीं मानते , जबकि नीरज जी के ऊपर गौतम बुध का बहुत प्रभाव था. उनकी पहचान केवल कवि के रूप में बनी. साहित्यकार के रूप में नहीं बनी, यह बड़ा अफसोस जनक है. हिंदुस्तान के साहित्यकारों ने नीरज जी को साहित्यकार के रूप में आत्मसात नहीं किया.