गिरिडीह, राकेश सिन्हा : नगर पर्षद के बाद जब गिरिडीह नगर निगम का गठन हुआ तो लोगों को उम्मीद जगी कि अब गिरिडीह शहरी क्षेत्र में विकास की गति तेज होगी. लेकिन, विकास की धीमी गति से लोग ठगा महसूस कर रहे हैं. गिरिडीह नगर निगम ने अपने पांच वर्षों का कार्यकाल पूरा कर लिया है. 28 अप्रैल को बोर्ड भंग हो रही है. ऐसे में यदि पिछले पांच वर्षों के कार्यकाल का आकलन किया जाये तो यह परिणाम सामने आ रहा है कि पांच वर्षों तक निगम विवादों से घिरा रहा. जहां एक ओर अपेक्षाकृत विकास के काम नहीं हुए, वहीं होल्डिंग टैक्स की अप्रत्याशित वृद्धि से शहर के लोग परेशान रहे. निगम बोर्ड के अधिकांश निर्वाचित सदस्यों का फोकस योजनाओं तक सीमित रहा. किसी ने शहर के लोगों पर होल्डिंग टैक्स वृद्धि के बोझ को कम करने की कोशिश नहीं की.
निगम की कई योजनाएं धरातल पर नहीं उतरी
चुनाव के समय मेयर, डिप्टी मेयर और विभिन्न वार्ड के पार्षदों ने अपने क्षेत्र के लोगों को विकास का भरोसा दिया था. घोषणा की गयी थी कि शहर से अतिक्रमण हटाकर लोगों को जाम की समस्या से निजात दिलाया जायेगा. वार्डों में पेयजल की समस्या दूर होगी. शहर के बीचो बीच बह रही उसरी नदी के किनारे मैरीन ड्राइव बनाकर शहर का सौंदर्यीकरण होगा. निर्धारित स्थलों पर वाहन पार्किंग की व्यवस्था की जायेगी. शहर को साफ-सुथरा रखा जायेगा और सड़कों पर उड़ रही धूल से निजात के लिए डस्टिंग मशीन लायी जायेगी. शहर को लाइट से सुसज्जित किया जायेगा. निगम में शामिल जिन छह वार्डों में पाइपलाइन का विस्तार नहीं किया गया है, वहां पाइप लाइन बिछायी जायेगी. लेकिन, देखा जाये तो एक भी योजना धरातल पर नहीं उतरी.
झामुमो के निशाने पर रहे वार्ड पार्षद
निगम के चुनाव के ठीक बाद से ही विवाद शुरू हो गया. झामुमो सबसे पहले निगम के निर्वाचित मेयर सुनील पासवान को अपना निशाना बनाया. श्री पासवान भाजपा के पदधारी थे. फलस्वरूप झारखंड में झामुमो की सरकार बनते ही उन्हें निष्कासित करवाने की प्रक्रिया पार्टी ने तेज कर दी. फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर अंतत: श्री पासवान को मेयर के पद से निष्कासित कर दिया गया और प्राथमिकी भी दर्ज करा दी गयी. इसके बाद झामुमो ने एक-एक वैसे वार्ड पार्षदों को साधना शुरू किया जो भाजपा के या तो सदस्य थे या समर्थक. सफल चुनावी रणनीति से बोर्ड में कब्जा जमाने के बाद भी भाजपा अपने कुनबे को नहीं बचा पायी और बोर्ड के 35 सदस्यों में से 27 वार्ड पार्षदों को झामुमो ने पार्टी में शामिल करा दिया. निगम के चुनाव में भाजपा से सीधे जुड़े या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोगों ने ज्यादा से ज्यादा संख्या में जीत दर्ज करायी थी. मेयर और डिप्टी मेयर के पद पर भाजपा के नेताओं ने कब्जा जमाया था. वहीं लगभग 25 वार्ड पार्षद उस समय प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा से जुड़े हुए थे. झामुमो ने सेंधमारी कर निगम में भाजपा को काफी कमजोर कर दिया और अंतत: बोर्ड में झामुमो का ही सिक्का चला.
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कठपुतली बनकर रह गये थे डिप्टी मेयर
भाजपा नेता व गिरिडीह के डिप्टी मेयर प्रकाश सेठ जहां मेयर के निष्कासन के बाद दहशत में थे. अविश्वास प्रस्ताव की लटकती तलवार से चिंतित भी रहा करते थे. यही कारण है कि भाजपा के एजेंडा पर वह बोर्ड में कुछ नहीं कर पाये. लोगों का कहना है कि डिप्टी मेयर कठपुतली बनकर रह गये थे. सूत्रों का मानना है कि पर्दे के पीछे से वे कहीं और से नियंत्रित हो रहे थे. जब निगम के प्रवेश शुल्क की वसूली के टेंडर को लेकर बोर्ड में विवाद हुआ तो वह भाजपा के एजेंडे पर तटस्थ नहीं दिखे. यही कारण है कि पार्टी में भी उनकी किरकिरी हुई.
कार्य संस्कृति के अनुसार झामुमो खरीद-फरोख्त करती रही : निर्भय शाहाबादी
गिरिडीह के पूर्व विधायक निर्भय शाहाबादी ने कहा कि आज भी शहरी क्षेत्र झामुमो के लिए बंजर भूमि है. यदि झामुमो में हिम्मत है तो निगर निकाय का चुनाव राज्य में दलीय आधार पर करा ले. शहरी क्षेत्र में झामुमो की स्थिति कमजोर रहने के कारण ही सरकार भी दलीय आधार पर चुनाव कराने के पक्ष में नहीं है. नगर निगम बोर्ड में झामुमो की सेंधमारी के सवाल पर श्री शाहाबादी ने कहा कि अपने कार्य संस्कृति के अनुसार झामुमो खरीद-फरोख्त करती रही और कुर्सी की पूजा लोग करते रहे. 35 सदस्यीय बोर्ड में मात्र चार-पांच भाजपा से जुड़े वार्ड पार्षद ही झामुमो में गये हैं. यह हमारे लिए अफसोस की बात है. शेष अन्य लोग जो झामुमो में गये, वह भाजपा के सदस्य तक नहीं थे. झामुमो में जाने के बाद सभी घुटन महसूस कर रहे हैं. चुनाव के पूर्व सभी भाजपा में वापस आ जायेंगे.
भाजपा की नीति से संगठन में मची है भगदड़ : झामुमो
झामुमो के जिलाध्यक्ष संजय सिंह ने कहा कि भाजपा की नीति से उनके संगठन में भगदड़ मची हुई है. झामुमो का जनाधार शहरी क्षेत्र में तेजी से बढ़ा है. गिरिडीह विधायक की कार्यशैली से प्रभावित होकर निगम के बोर्ड के कई सदस्य झामुमो में शामिल हुए. विधानसभा के चुनावी आंकड़ों को देखें तो पूर्व के चुनावों में भाजपा और झामुमो में 20 हजार से अधिक का अंतर नहीं था. वर्ष 2019 के चुनाव में यह अंतर मात्र चार हजार का रहा है. कहा कि श्री शाहाबादी 10 साल तक गिरिडीह के विधायक रहे, लेकिन इस दौरान वे बोर्ड की एक भी बैठक में शामिल नहीं हुए. ऐसे में लोगों को समझना चाहिए कि जनमुद्दों के प्रति भाजपा के विधायक कितने समर्पित थे. गिरिडीह शहरी क्षेत्र के विकास के लिए झामुमो ने जो खाका तैयार किया है, उसपर काम किया जा रहा है. कंप्लायंस की गति कुछ धीमी है, लेकिन कई योजनाएं शीघ्र ही धरातल पर दिखेंगी.
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