12.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

लोकगीतों में बड़े अपने लगते हैं ‘पुरबिया राम’

स्नेहलता ने तो दुलहा राम के सौंदर्य का अनूठा वर्णन किया, मोहि लेलक सजनी मोरा मनवा हो, पहुनवा राघव. महेंदर मिसिर ने लिखा, अब तो रामजी पहुनवा हमार भइले, गारी के हमनी के सुतार भइले. भिखारी ठाकुर ने तो राम पर पूरा आख्यान ही रचा है.

चंदन तिवारी , लोकगायिका

चहुं ओर राममय माहौल है. अगले महीने अयोध्या में रामलला के मंदिर का उद्घाटन है. हर बात पर चट से गीत बनाने की पुरानी परंपरा रही है भोजपुरी लोकगायन में. राम मंदिर के उद्धाटन के अवसर पर भी गीत बनाने की तैयारी चल रही होगी. गीत किस रूप में आयेंगे, किस भाव के साथ, राम का रूप-स्वरूप कैसा होगा उन गीतों में, अभी सिर्फ कल्पना की जा सकती है. कल्पना की बात इसलिए कि अब कई बार लोक-लाज और देवताओं से भय का भाव खत्म होता दिखता है भोजपुरी लोकगायन में. खैर, 17 दिसंबर को विवाहपंचमी है और 18 दिसंबर को भिखारी ठाकुर की जयंती. विवाहपंचमी वह उत्सवी दिन है, जिसने भोजपुरी लोकगीतों की दुनिया को अपार विस्तार दिया. और, भिखारी ठाकुर के बारे में हम सब जानते हैं कि वे भोजपुरी के सबसे बड़े अवलंबन हैं आज.

उत्तर भारत, विशेषकर पुरबिया इलाके, में राम को लेकर सबसे अधिक गीत इसी अवसर के लिए रचे गये हैं. ये गीत आम जनमानस ने, महिलाओं ने पारंपरिक लोकगीत के रूप में भी रचे और गाये. पुरबिया इलाके में सबके घर में शादी-विवाह में दो ही देवताओं का नाम लेकर विवाह गीत गाये जाते हैं- शिव और राम. इसकी वजह यह है कि उत्सवी रूप में दुलहा बनने का अवसर इन्हीं दो देवताओं को मिला. सिर्फ पारंपरिक गीतों तक ही दुनिया नहीं है, बल्कि लोक कवियों में भी इस अवसर को लेकर दीवानगी का भाव रहा. लोकगीतों के जरिये राम को याद करने का सबसे लोकप्रिय पर्व है विवाहपंचमी. एक ऐसा पर्व, जिसमें राम लोक के सबसे करीब आते हैं. एक ऐसा पर्व, जिस अवसर पर गीतों के जरिये आम लोक राम को देवत्व की परिधि से निकाल कर अपना बना लेता है. उनसे प्यार जताने का बेशुमार अधिकार ले लेता है, पहुना बनाकर, बहनोई बनाकर, दामाद बनाकर. पारंपरिक गीतों में महिलाएं राम को पहुना बनाकर, बहनोई बनाकर प्यार और अधिकार से गारी गीत तक सुनाती रही हैं. गीतों के जरिये राम से पूछने का रिवाज रहा कि एक भाई सांवर हैं, एक भाई गोर, ऐसा काहे? बाबूजी आपके इतने गोर तो आप सांवले कैसे हुए?

राम को अपना बनाकर आम जनों ने जब इतनी छूट ली, तो लोक कवियों ने भी इस आधार का और विस्तार किया. रसूल मियां, महेंदर मिसिर, भिखारी ठाकुर, स्नेहलता, बक्सरवाले मामाजी, प्रताप सिन्हा, राम जियावन दास बावला, मास्टर अजीज, बिंध्यवासिनी देवी जैसे अनेक रचनाकारों ने राम-जानकी विवाह को लेकर कमाल के गीत रचे. रसूल मियां ने राम का सेहरा गीत लिखा. वे लिखते हैं कि जनकपुर में हजारों भूप पहुंचे सेहरा बांधकर, पर उस सेहरे का मान तो हमारे श्यामले राम ने रखा. बक्सरवाले मामाजी तो सीता को बहन मानकर और राम को बहनोई मानकर आजीवन जानकी के गीत ही रचते रहे. वे यह भी लिखे हैं कि पहुना राम की परछाईं से हमारी सिया सांवली हो गयी, पर जैसे ही सिया की छाया पड़ी, पहुना भी गोर हो गये. स्नेहलता ने तो दुलहा राम के सौंदर्य का अनूठा वर्णन किया, मोहि लेलक सजनी मोरा मनवा हो, पहुनवा राघव. महेंदर मिसिर ने लिखा, अब तो रामजी पहुनवा हमार भइले, गारी के हमनी के सुतार भइले. भिखारी ठाकुर ने तो राम पर पूरा आख्यान ही रचा है. वे जीवन भर कहते रहे कि वे जो भी हैं, उसमें दो चीजों की बड़ी भूमिका है- मातृभाषा और राम नाम. बिंध्यवासिनी देवी आखिरी दिनों में लोक रामायण रच रहीं थीं. राम इतने तक ही सीमित नहीं रहे. जिन गीतों का राम से कोई लेना-देना न था, वे गीत या वे विधाएं भी राम के नाम का टेक लेकर आगे बढ़ने लगीं. चैता, चैती, सोहर, कजरी, सोरठी, बिरहा जैसी विधाओं का आधार ही राम का नाम बन गया. ऐसा रिश्ता राम के नाम से भोजपुरी लोकगायन कर रहा है.

ऐसे अनेक प्रसंग और संदर्भ हैं. इन सबकी चर्चा इसलिए कि आगे हम राम पर गीत रचते समय, गाते समय, राम को गीतों में लाते समय इस मजबूत बुनियाद को याद रखें. भोजपुरी लोकगीतों में बहुत ही अपनापे और अधिकार से उनके सौंदर्य का उभार किया है, भोजपुरी गीतों ने. पर, उनकी मर्यादा को ध्यान में रखते हुए, मर्यादा में. हम यह भी याद रखें कि बेशक आज जमाना फटाफट, किसी तरह हिट होने की बेताबी का है. वन नाइट स्टारडम का दौर भी है. इसके लिए ही हम गीत बनाते समय तमाम सीमाओं को लांघते हैं. देवी-देवता से भी डरना या उनके प्रति लोक लाज का भाव बरतना छोड़ते जा रहे हैं.

पर, इसके लिए हम भिखारी ठाकुर को याद करें. वे अपने समय में लोकप्रिय धारा पर सवार नहीं थे. वे अपनी शर्तों पर अपने विषयों के साथ काम कर रहे थे. बिना इस बात की परवाह किये कि उनके काम का महत्व कितना समझा जायेगा अभी या उससे कितनी लोकप्रियता मिलेगी उन्हें. उन्होंने कहा था अपने समय में ही कि अभी मेरा नाम थोड़ा हुआ है. पर, जब यह तन छूट जायेगा मेरा, उसके कुछ सालों बाद कवि, सज्जन सब मिलकर मेरा गुण गायेंगे. साहित्य, कला, संस्कृति को इसलिए ही बड़ा कर्म माना गया है क्योंकि यह जीते जी जितनी ख्याति देता है, ना रहने के बाद भी उतना ही जीवंत और अमर बनाये रखता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें