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Raksha Bandhan ki Katha: रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत कब और कैसे हुई, किसने बांधी थी पहले राखी,पढ़ें पौराणिक कथाएं

Raksha Bandhan ki Katha: रक्षाबंधन को लेकर कई कथाएं है. हालांकि कि रक्षाबंधन का त्योहार कब शुरू हुआ इसका कोई प्रमाण नहीं है. आज हम कुछ ऐसे ही कहानियां बताएंगे, जिसके बारे में शायद ही किसी को जानकारी होगी.

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Raksha bandhan ki Katha: राखी का त्योहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते व अनमोल प्यार का प्रतीक है. इस दिन बहनें अपने भाई के हाथ में राखी बांधकर उनसे रक्षा का वचन लेती हैं. सदियों से यह त्योहार यूं ही चला आ रहा है. रक्षाबंधन को लेकर कई कथाएं है. हालांकि कि रक्षाबंधन का त्योहार कब शुरू हुआ इसका कोई प्रमाण नहीं है. आज हम रक्षाबंधन से जुड़ी ऐसी ही कुछ कथाएं लेकर आए हैं, जो शायद ही किसी को पता हो. आइए जानते है रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ कहानियां…

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Raksha bandhan ki Katha: मां लक्ष्मी और राजा बलि की कहानी

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब असुर राजा बलि के दान धर्म से खुश होकर भगवान विष्णु ने उससे वरदान मांगने को कहा तो राजा बलि ने विष्णु भगवान से अपने साथ पाताल लोक में चलने को कहा और उनके साथ वही रह जाने का वरदान मांगा. तब विष्णु भगवान उनके सात बैकुंठ धाम को छोड़ कर पाताल लोक चले गए. बैकुंठ में माता लक्ष्मी अकेली पड़ गईं. भगवान विष्णु को पताल लोक से वैकुंठ लाने के लिए माता लक्ष्मी ने अनेक प्रयास करने लगीं. फिर एक दिन मां लक्ष्मी राजा बलि के यहां एक गरीब महिला का रूप धरण करके रहने लगीं. जब मां एक दिन रोने लगी तब राजा बलि ने उनसे रोने का करण पूछा. माता लक्ष्मी ने बताया कि उनका कोई भाई नहीं है, इसलिए वे उदास हैं. ऐसे में राजा बलि ने उनका भाई बनकर उनकी इच्छा पूरी की और माता लक्ष्मी ने राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा. फिर राजा बलि ने उनसे इस पवित्र मौके पर कुछ मांगने को कहा तो मां लक्ष्मी ने विष्णु जी को अपने वर के रूप में मांग लिया और इस तरह श्री विष्णु भगवान बैकुंठ धाम वापस आए.

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Raksha bandhan ki Katha: इंद्राणी ने इंद्रदेव को बांधा था रक्षासूत्र

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक बार देवता और दानवों के बीच युद्ध 12 वर्षों तक चलता रहा. लेकिन उसमें देवता विजयी नहीं रहे. तब हार के भय से भगवान इंद्र देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे. गुरु बृहस्पति ने युद्ध रोकने के लिए कहा और उपाय बताया. इंद्र की पत्नी महारानी शची ने कहा, कल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा है, मैं रक्षा सूत्र तैयार करूंगी. जिससे उनकी रक्षा होगी और वह विजयी होंगे. इंद्राणी शची ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया. श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई में बांध दी. ब्राह्मण से मंत्रों का उच्चारण करवाकर भगवान इंद्र को बंधवाया. इसके बाद युद्ध में इंद्रदेव की विजय हुई. यह घटना भी सतयुग में ही हुई थी.

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Raksha bandhan ki Katha: मां संतोषी की कहानी

एक दिन भगवान श्री गणेश जी अपनी बहन मनसा देवी से रक्षा सूत्र बंधवा रहे थे तभी उनके दोनों पुत्र शुभ और लाभ ने देख लिया. इस रस्म के बारे में पूछा तब भगवान श्री गणेश ने इसे एक सुरक्षा कवच बताया. उन्होंने बताया की यह रक्षा सूत्र आशीर्वाद और भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है . यह सुन कर शुभ और लाभ ने अपने पिता से जिद की कि उन्हें एक बहन चाहिए और अपने बच्चों की जिद के आगे हार कर भगवान गणेश ने अपनी शक्तियों से एक ज्योति उत्पन्न की और अपनी दोनों पत्नियां रिद्धि-सिद्धि की आत्मशक्ति के साथ इसे सम्मिलित किया. उस ज्योति से एक कन्या (संतोषी) का जन्म हुआ और दोनों भाइयों को रक्षाबंधन के मौके पर एक बहन मिली.

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Raksha bandhan ki Katha: श्री कृष्ण और द्रौपदी की कहानी

माहाभारत के दौरान एक बार राजसूय यज्ञ के लिए पांडवों ने भगवान कृष्ण को आमंत्रित किया. उस यज्ञ में श्री कृष्ण के चचेरे भाई शिशुपाल भी थे. उस दौरान शिशुपाल ने भगवान कृष्ण का बहुत अपमान किया. जब पानी सिर के ऊपर चला गया तो भगवान कृष्ण को क्रोध आ गया. क्रोध में भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल पर अपना सुदर्शन चक्र छोड़ दिया. शिशुपाल का सिर काटने के बाद जब चक्र भगवान श्री कृष्ण के पास लौटा तो उनकी तर्जनी उंगली में गहरा घाव हो गया. यह देख कर द्रौपदी ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर भगवान कृष्ण की उंगली पर बांध दिया. द्रौपदी के इस स्नेह को देखकर भगवान कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और द्रौपदी को वचन दिया कि वे हर स्थिति में हमेशा उनके साथ रहेंगे और हमेशा उनकी रक्षा करेंगे. इसके बाद जब द्रौपदी का चीर हरण होने लगा तो श्रीकृष्ण ने अपना वचन पूरा किया.

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Raksha bandhan ki Katha: महारानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं की कहानी

जब चित्तौड़ पर सुल्तान बहादुर शाह आक्रमण कर रहे तब महारानी कर्णावती ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए सम्राट हूमायूं को राखी भेजी और उनसे अपनी रक्षा की गुहार लगाई. हुमायूं ने राखी स्वीकार किया और अपने सैनिकों के साथ उनकी रक्षा के लिए चित्तौड़ निकल पड़े मगर हुमायूं के चित्तौड़ पहुंचने से पहले ही रानी कर्णावती ने आत्महत्या कर ली थी.

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Raksha bandhan ki Katha: यम और यमुना

एक पौराणिक कहानी के अनुसार मृत्यु के देवता यम अपनी बहन यमुना से 12 वर्ष तक मिलने नहीं गये. तब यमुना दुखी हो गई और अपनी मां गंगा से इस बारे में बात की. मां गंगा ने यम तक यह खबर पहुंचाई कि यमुना उनकी प्रतीक्षा कर रही हैं और यह सुनते यम अपनी बहन युमना से मिलने आए. यम को देखकर यमुना बहुत खुश हुईं और उनके लिए बहुत सारे व्यंजन भी बनाए. यम यह प्रेम भाव देख कर बहुत खुश हुए और उन्होंने यमुना को मनचाहा वरदान मांगने के लिए कहा. इस पर यमुना ने उनसे ये वरदान मांगा कि यम जल्द ही फिर से अपनी बहन के पास आए. यम अपनी बहन के स्नेह को देख कर बहुत खुश हुए.

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