Rampur: सपा महासचिव एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री मुहम्मद आजम खान के बाद उनके पुत्र अब्दुल्ला आजम की भी बुधवार को विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई है. वह रामपुर जनपद की स्वार विधानसभा से विधायक थे. उनकी पिछली बार जन्म प्रमाण पत्र में उम्र को लेकर भी सदस्यता रद्द हो गई थी.
विधानसभा चुनाव 2022 में अब्दुल्ला आजम ने भाजपा गठनबंधन के अपना दल प्रत्याशी हमजा को चुनाव हराया था. एक बार फिर सदस्यता रद्द हो गई है. उनको 15 वर्ष पुराने मामले में दो दिन पहले सोमवार को कोर्ट ने सजा सुनाई थी. इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष के निर्देश पर विधानसभा सचिवालय के विशेष सचिव मोहम्मद मुशाहिद ने विधानसभा सदस्यता रद्द करने का पत्र जारी किया है.
कोर्ट ने रामपुर के पूर्व विधायक आजम खान, उनके बेटे अब्दुल्ला आजम को दोषी ठहराया है. इसके साथ ही दो वर्ष की सजा सुनाई गई है. लेकिन मुरादाबाद देहात विधान सभा क्षेत्र से पूर्व विधायक हाजी इकराम कुरैशी, बिजनौर की नूरपुर विधानसभा सीट के पूर्व विधायक नईम ऊल हसन, नगीना से सपा विधायक मनोज पारस, अमरोहा के सपा विधायक महबूब अली, राजेश यादव, डीपी यादव, पूर्व महानगर अध्यक्ष राजकुमार प्रजापति को क्लीन चिट मिली है.
मुरादाबाद एमपी एमएलए कोर्ट ने आईपीसी की धारा 353 में दो वर्ष का कारावास और दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. आईपीसी की धारा 341 में एक माह का कारावास और 500 रुपये जुर्माना,7 क्रिमिनल अमेंडमेंट एक्ट में 6 माह और 500 रुपये जुर्माना लगाया है.
बसपा की सरकार में 2 जनवरी, 2008 को पूर्व मंत्री और रामपुर के पूर्व विधायक आजम खान अपने परिवार के साथ मुजफ्फरनगर में एक शादी समारोह में शामिल होने जा रहे थे. छजलैट थाने के सामने वाहन चेकिंग के दौरान आजम खान की गाड़ी पुलिस ने रुकवा ली. इसके विरोध में आजम और उनके बेटे स्वार-टांडा विधानसभा सीट से विधायक अब्दुल्ला आजम सड़क पर धरने पर बैठ गए. इसकी सूचना मिलने पर आसपास के जनपदों से सपा कार्यकर्ता और पदाधिकारी भी मौके पर पहुंच गए थे. आरोप है कि आम जनता को उकसा कर सड़क जाम करते हुए बवाल किया था, और सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न की थी.
पूर्व विधायक अब्दुल्ला आजम खान के पिता आजम खान रामपुर शहर विधान सभा सीट से विधायक चुने गए थे, लेकिन आपत्तिजनक टिप्पणी के मुकदमे में बीते साल उन्हें दोषी पाया गया था. कोर्ट ने आजम खान को तीन साल की सजा सुनाई. जिसके चलते उनकी भी सदस्यता रद्द की जा चुकी है.
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सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता असद अल्वी का कहना है कि सेशन कोर्ट में एमपी एमएलए कोर्ट के फैसले को चुनौती दे सकते हैं. यहां से एमपी एमएलए कोर्ट के फैसले पर स्टे लग जाता है, तो विधानसाभा की सदस्यता बच सकती है. अगर, सेशन कोर्ट स्टे नहीं देता है, तो फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा. हाईकोर्ट से स्टे मिलने पर स्टे मिल सकता है.
रिपोर्ट मुहम्मद साजिद बरेली