सरायकेला, शचिंद्र कुमार दाश. सरायकेला के गुंडिचा मंदिर में मंगलवार को भगवान जगन्नाथ और बलभद्र ने भक्तों को मत्स्यकच्छप रूप में दर्शन दिए. मत्स्यकच्छप रूप में भगवान जगन्नाथ और बलभद्र को आकर्षक रूप दिया गया है. साथ ही भव्य श्रृंगार गया है. झारखंड में सिर्फ सरायकेला में ही रथ यात्रा के दौरान प्रभु अलग-अलग स्वरूप में भक्तों को दर्शन देते हैं. गुरु सुशांत कुमार महापात्र के निर्देशन में कलाकार पार्थ सारथी दाश, उज्ज्वल सिंह, सुमित महापात्र, सुभम कर, मानू सतपथी, विक्की सतपथी, मुकेश साहु आदि ने भगवान जगन्नाथ-बलभद्र के मत्स्यकच्छप रूप की वेष सज्जा की है. सुबह से हो रही बारिश के बावजूद प्रभु जगन्नाथ के मत्स्यकच्छप रूप में दर्शन को बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंगलवार की सुबह से ही मंदिर में पहुंच रहे हैं. गुंडिचा मंदिर में शाम के समय और अधिक भीड़ होने की उम्मीद है.
रथ यात्रा के दौरान होने वाले प्रभु जगन्नाथ की वेश-भूषा ही यहां की विशेषता
सरायकेला के गुंडिचा मंदिर में प्रभु जगन्नाथ के अलग अलग वेशभूषा में रूप सज्जा यहां के रथ यात्रा की विशेषता है. सरायकेला के दौरान गुंडिचा मंदिर (मौसी बाड़ी) में प्रभु जगन्नाथ की वेश-भूषा देखने के लिये बाहर से भी लोग पहुंचते हैं. कहा जाता है कि सरायकेला रथ यात्रा में वेश-भूषा परंपरा की शुरुआत 70 के दशक में शुरू हुई थी. गुरु प्रशन्न कुमार महापात्र, डोमन जेना, सुशांत महापात्र जैसे कलाकारों द्वारा प्रभु का सज्जा किया जाता था. वर्तमान में गुरु सुशांत कुमार महापात्र के निर्देशन में स्थानीय कलाकारों द्वारा सरायकेला रथ यात्रा में वेश-भूषा परंपरा का निर्वहन किया जाता है.
क्या है प्रभु जगन्नाथ का मत्स्य-कच्छप रूप ?
भगवान विष्णु को जग का पालनहार कहा गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा कहा गया है कि जब-जब पृथ्वी पर कोई संकट आता है, तब-तब भगवान विष्णु अवतार लेकर उस संकट को दूर करते रहे हैं. वामन अवतार, नृसिंह अवतार, मत्स्य अवतार, रामावतार, कृष्ण अवतार ये सभी इस बात का सबूत हैं. हिंदू शास्त्रों में भगवान विष्णु के अवतारों का उल्लेख किया गया है. ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में प्रकट होकर वेदों की रक्षा की. कच्छप या कूर्म अवतार में भगवान विष्णु कछुआ के रूप में प्रकट हुए थे. इस अवतार में विष्णु जी ने समुद्र मंथन के दौरान मंदार पर्वत को अपनी पीठ कर धारण किया, जिससे देवताओं और असुरों के बीच अमृत के लिए समुद्र मंथन हो सका.