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रथ यात्रा : भाई-बहन के साथ प्रभु जगन्नाथ ने रथ पर किया रात्रि विश्राम, शाम को पहुंचेंगे गुंडिचा मंदिर

सरायकेला के पाठागार चौक पर बुधवार को रथ पर प्रभु जगन्नाथ, भैया बलभद्र व बहन देवी सुभद्रा की पूजा-अर्चना की गयी. इस दौरान भगवान की आरती उतारी गयी. प्रसाद चढ़ाकर लोगों में वितरित किया गया. सुबह से ही श्रद्धालुओं के पहुंचने का दौर शुरू हो गया.

सरायकेला, शचिंद्र कुमार दाश : सरायकेला में प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा की धूम मची हुई है. सरायकेला में बुधवार को देर शाम प्रभु जगन्नाथ का रथ ‘नंदीघोष’ गुंडिचा मंदिर पहुंचेगी. रथ पर प्रभु जगन्नाथ के साथ बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा भी बिराजमान हैं. सरायकेला में मंगलवार को प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा निकली थी. मंगलवार देर शाम सरायकेला के पाठगार चौक पर महाप्रभु जगन्नाथ ने भाई-बहन के साथ रथ पर ही विश्राम किया. बुधवार को दोपहर चार बजे प्रभु जगन्नाथ अपने भाई बहन के साथ श्रीगुंडिचा मंदिर के लिए प्रस्थान करेंगे.

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सुबह से ही शुरू हुआ पूजा-अर्चना का दौर

सरायकेला के पाठागार चौक पर बुधवार को रथ पर प्रभु जगन्नाथ, भैया बलभद्र व बहन देवी सुभद्रा की पूजा-अर्चना की गयी. इस दौरान भगवान की आरती उतारी गयी. प्रसाद चढ़ाकर लोगों में वितरित किया गया. सुबह से ही श्रद्धालुओं के पहुंचने का दौर शुरू हो गया. दोपहर बाद गुंडिचा मंदिर के लिए रथ निकलेगी. शाम को गुंडिचा मंदिर पहुंचने पर महाप्रभु की आरती उतारी जाएगी. यहां एक सप्ताह रुकने के बाद प्रभु 28 जून को गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर लौटेंगे. इस दौरान गुंडिचा मंदिर के समीप मेला का भी आयोजन किया जाएगा.

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महापात्र परिवार द्वारा ओडिशा के ढेंकनाल से सरायकेला लाया गया था भगवान जगन्नाथ का विग्रह

भगवान जगन्नाथ के विग्रह को जालंधर महापात्र ओडिशा (तत्कालीन कलिंग प्रदेश) के ढेंकनाल से सरायकेला लाये थे. जालंधर महापात्र को ढेंकनाल के भार्गवी नदी में स्नान करने के दौरान भगवान का विग्रह मिला था. ढेंकनाल से ही वे प्रतिमा को लेकर वे सरायकेला आए थे. मान्यता है कि रथ यात्र एक मात्र ऐसा मौका होता है, जब प्रभु भक्तों को दर्शन देने के लिए श्रीमंदिर से बाहर निकलते हैं और रथ पर सवार प्रभु जगन्नाथ के दर्शन मात्र से सारे पाप कट जाते हैं. यात्रा के दौरान आस्था की डोर को खींचने के लिए भक्त पूरे साल का इंतजार करते हैं. मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल के द्वितीया तिथि को आयोजित होने वाली रथ यात्रा की प्रथा प्राचिन काल से चली आ रही है.

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शास्त्र व पुराणों में भी बतायी गयी है रथ यात्रा की महत्ता

रथ यात्रा का प्रसंग स्कंदपुराण, पद्मपुराण, पुरुषोत्तम माहात्म्य, बृहद्धागवतामृत में भी वर्णित है. शास्त्रों और पुराणों में भी रथ यात्रा की महत्ता को स्वीकार किया गया है. स्कंदपुराण में स्पष्ट कहा गया है कि रथ यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा मंदिर तक जाता है, वह सीधे भगवान श्रीविष्णु के उत्तम धाम को जाता है. जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा देवी के दर्शन करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. रथ यात्रा एक ऐसा पर्व है, जिसमें भगवान जगन्नाथ चलकर जनता के बीच आते हैं और उनके सुख-दुख में सहभागी होते हैं.

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रथ यात्रा उत्सव में देवसभा बना आकर्षण का केंद्र

सरायकेला में आयोजित प्नभु जगन्नाथ की रथ यात्रा के दौरान गुंडिचा मंदिर परिसर में देव सभा का आयोजन किया गया है. यह देवसभा लोगों के अकर्षण का केंद्र बना हुआ है. गुंडिचा मंदिर में अलग-अलग मुद्राओं में स्थापित किये गये भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमाओं के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. यहां स्थापित राधा-कृष्ण की भव्य प्रतिमाओं के दर्शन को श्रद्धालु पहुंच रहे हैं.

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