समलैंगिक विवाह को मान्यता देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. केंद्र हलफनामा दायर कर इस मामले को खारिज करने की मांग देश के सर्वोच्च अदालत से कर चुकी है. केंद्र सरकार का मानना है कि शादियों पर फैसला सिर्फ संसद ही ले सकती है. सुप्रीम कोर्ट को अधिकारी नहीं है. समलैंगिक विवाह के विरोध में सामाजिक और राजनीतिक संगठन भी मुखर हो रहे हैं. याचिका को खारिज करने के लिए गुरुवार को अलीगढ़ में सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन डीएम को सौंपे गये.
यह संगठन चाहते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय आतुरता में समलैंगिक विवाह को विधि मान्यता न दे. गुरुवार को क्षत्रिय महासभा , वैश्य समाज, अग्रवाल युवा संगठन, अनुभूति फाउंडेशन, राष्ट्र सेविका समिति सहित कई संगठनों के कार्यकर्ताओं ने समलैंगिक विवाह का विरोध किया है.रुचि गोटेवाल बताती हैं कि भले समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं हैं, लेकिन प्रकृति के नियम से विरुद्ध है. विवाह को मंजूरी अगर मिल गयी तो प्रकृति का विनाश होगा. प्रकृति की आधारशिला नारी है. प्रकृति के नियम को बचाने का काम कर रहे हैं.
समलैंगिकता का विषय जो न्यायालय में चल रहा है उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को दिया गया. अलका गुप्ता ने बताया कि इस विषय पर न्यायालय द्वारा सही निर्णय दिया जाए. उन्होंने कहा कि एक युवा – युवती के द्वारा संतान उत्पत्ति होती है. पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती है. अगर समलैंगिकता पर ध्यान दिया गया तो समाज समाप्त हो जाएगा. उन्होंने बताया कि समलैंगिकता को रोकने के लिए सभी गैर सरकारी संगठन काम कर रहे हैं.