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जीवन के स्पंदन और मोहब्बत को दर्शाता है संगीता कुजारा टाक का कविता संग्रह, पढ़िए…

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का कहना है, ‘ जब कवि भावनाओं के प्रसव से गुजरते हैं, तो कविताएं प्रस्फुटित होती हैं.’ यानी भाव सौंदर्य को ही साहित्य शास्त्रों ने रस कहा है. यदि क्रोध, करुणा, दया, प्रेम आदि मनोभाव मनुष्य के अंतःकरण से निकल जाएं, तो वह कुछ भी नहीं कर सकता. अर्थात कविता रचने के लिए उर्वर भावभूमि की आवश्यकता होती है. सामान्य जनों की अपेक्षा कवि बहुत संवेदनशील होता है, इसलिए काव्य का संबंध हृदय से माना गया है. इन बातों के आधार पर यदि मैं कहूं कि हृदय में उठती भावनाओं को शब्दों में पिरोकर कविता लिखती हैं संगीता कुजारा टाक, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.

रश्मि शर्मा

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का कहना है, ‘ जब कवि भावनाओं के प्रसव से गुजरते हैं, तो कविताएं प्रस्फुटित होती हैं.’ यानी भाव सौंदर्य को ही साहित्य शास्त्रों ने रस कहा है. यदि क्रोध, करुणा, दया, प्रेम आदि मनोभाव मनुष्य के अंतःकरण से निकल जाएं, तो वह कुछ भी नहीं कर सकता. अर्थात कविता रचने के लिए उर्वर भावभूमि की आवश्यकता होती है. सामान्य जनों की अपेक्षा कवि बहुत संवेदनशील होता है, इसलिए काव्य का संबंध हृदय से माना गया है. इन बातों के आधार पर यदि मैं कहूं कि हृदय में उठती भावनाओं को शब्दों में पिरोकर कविता लिखती हैं संगीता कुजारा टाक, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.

कविता संग्रह ‘ख़ुद से गुजरते हुए’ का पाठ करते समय ऐसा ही अनुभव हुआ कि केवल प्रेम नहीं, प्रकृति के हर रूप पर उनकी नज़र है और वह ‘वो कौन है’ कविता के माध्यम से कवयित्री पेड़-पहाड़ की बात करते-करते विज्ञान और जन्म-मृत्यु की बात में उलझ जाती है. सवालों का यह क्रम जारी रहता है और वह ब्लैकहोल में भी प्रेम का रंग घोलने में सफल हो जाती हैं.

यही नहीं, ‘सहारा’ कविता में कहती हैं कि प्रेमी की पीठ सिर्फ़ इसलिए आरामदेह नहीं कि वहां सहारा लिया जा सके. यह एक तोष है, किसी के होने का. इसलिए कवयित्री सोचती है कि चांद, सूरज और तारों का भी कोई साथी होता, जो उसे पीठ देता. यह मौलिक सोच उन्हें उनकी ही अन्य कविताओं से अलग रेखांकित करती है.

उनकी कविताओं में ट्रेडमिल, विज्ञापन, पोट्रेट और बाज़ार हैं, तो दूसरी तरफ़ इश्क़, चाहत, दीदार और इबादत भी है. कई बार भावनाओं को शब्द नहीं दे पाने की कसक सालती है, तो लिखती हैं वो, ‘जब लिख नहीं पाती मैं कविता’ और इसे पढ़कर लगता है कवयित्री जीवन के सारे राग और उल्लास से दूर हो गयी है. उनके लिए कविता जीवन का स्पंदन है और मोहब्बत भी.

कविता-संग्रह ‘ख़ुद से गुजरते हुए’ संगीता कुजारा टाक का पहला संग्रह है और इसमें क़रीब 103 कविताएं हैं. ज़ाहिर है कि कविताएं छोटी-छोटी हैं, मगर इनका प्रभाव बेहद गहरा है. कुछ शब्दों में गहन अर्थ बताती कविता पाठक के ज़ेहन में बस जाती है. इनकी कविताओं में प्रेम और विरह तो है, मुश्किलों को दूर कर आगे बढ़ते जाने का हौसला भी है.

संगीता की कविताओं में ज़िंदगी के विविध रंग हैं. कविता की भाषा में प्रवाह है, एक लय भी. कवयित्री को मालूम है कि भावनाओं को किन शब्दों में व्यक्त किया जाना चाहिए और उसे किन बिंबों के माध्यम से प्रकट करना चाहिए. पुस्तक का आवरण आकर्षक है और प्रूफ़ की कुछ ग़लतियों को नज़रअन्दाज़ किया जाए, तो यह पठनीय कविता-संग्रह है. यह अब किंडल में भी उपलब्ध है.

कवियत्री : संगीता कुजारा टॉक

रचना : ख़ुद से गुजरते हुए

प्रकाशक : शिवना प्रकाशन, सीहोर

पेज : 136

मूल्य : 200 रुपये

Posted By : Vishwat Sen

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