कंगना रनौत की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘तेजस’ अगले शुक्रवार को सिनेमाघरों में होगी. इसमें कंगना एक एयरफोर्स पायलट की मुख्य भूमिका में हैं, जो आतंकवादियों से संघर्ष करती है. यह फिल्म सर्वेश मेवाड़ा द्वारा लिखित और निर्देशित है. सर्वेश इंडस्ट्री में 17 सालों से संघर्षरत हैं और यह उनके निर्देशन की पहली फिल्म है. नवोदित निर्देशक सर्वेश काफी खुश व उत्साहित हैं कि निर्माता रॉनी स्क्रूवाला ने उन्हें यह अवसर दिया है. इस फिल्म की मेकिंग, चुनौतियों आदि पर उनसे उर्मिला कोरी की हुई खास बातचीत.
तेजस की तुलना फिल्म उरी से हो रही है. इसका दबाव है? इसकी शुरुआत कैसे हुई?
नहीं, प्रेशर किस बात का? उल्टा मैं कहूंगा कि अच्छा लगता है, जब कोई अच्छी फिल्म से आपकी फिल्म की तुलना करता है. फिल्म मेकिंग की बात करूं, तो रॉनी सर के साथ फिल्म ‘गुलाब जामुन’ करने की तैयारी थी, मगर किसी कारणवश वह बन नहीं पायी और हमने एक दूसरी फिल्म की कास्टिंग शुरू की. वह भी बन नहीं पा रही थी. फिर रॉनी सर ने कहा कि हम महिला फाइटर पर फिल्म बनाना चाहते हैं. ये आपके लिए अच्छी शुरुआत होगी. आइडिया उनका ही था, लेकिन कहानी मैंने लिखी. जब कहानी रॉनी सर को सुनायी, तो उन्हें पसंद आयी. इसके लिए हमारी पहली पसंद कंगना मैम थीं. उन्हें भी कहानी पसंद आयी और वहां से ‘तेजस’ की शुरुआत हो गयी. यह फिल्म असल घटनाओं से प्रेरित है, हालांकि तेजस का किरदार काल्पनिक है.
भारतीय वायु सेना का कितना समर्थन रहा है?
उनका बहुत सहयोग रहा. हमने जब स्क्रिप्ट खत्म की और इसे रक्षा मंत्रालय और भारतीय वायु सेना को भेजी, तो वहां से बढ़िया फीडबैक आया. पूर्व आइएएफ अधिकारी विंग कमांडर गोखले शुरू से अंत तक हमारी फिल्म से जुडे रहे. उनके साथ बैठ कर मैंने स्क्रिप्ट का ड्राफ्ट लिखा, ताकि सब कुछ प्रामाणिक लगे. फाइटर पायलट जब कॉकपिट में होता है, तो वह किस तरह की भाषा का इस्तेमाल करता है, उन्होंने बारीकी से बताया. बेंगलुरु में जहां तेजस को डिजाइन किया गया है, वहां जाकर हमलोगों ने सबकुछ देखा और समझा. गोखले सर ने रिसर्च में काफी मदद की. अपनी फिल्म में हमने वर्दी, बैज से लेकर हर बात का खास ख्याल रखा है. सेट पर दो लोग वायुसेना से सिर्फ इस बात का ख्याल रखने के लिए भी रहते थे कि किरदार में कोई त्रुटि न हो और यह वायुसेना के अनुशासन के अनुसार हो.
फिल्म के लिए कंगना की ट्रेनिंग कैसी थी?
बहुत सारे वर्कशॉप हुए. फिजिकल ट्रेनिंग हुई. कंगना वायु सेना के कई ऑफिसर्स से भी मिलीं. फिर भी उनके मन में कई सारे सवाल थे. इसके लिए मैं और गोखले सर मनाली में उनके घर भी गये. बॉडी लैंग्वेज, युद्ध के दौरान मेंटल कंडीशन पर उनसे काफी बातें हुईं. महिला पायलट (तेजस गिल) की तैयारी के लिए कंगना ने चार महीने की ट्रेनिंग की थी. उन्होंने वो सभी कॉम्बेट तकनीक सीखीं, जिनका उपयोग इंडियन फोर्सेस में किया जाता है.
कंगना अब खुद भी डायरेक्टर हैं, तो वह भी अपना इनपुट देती थीं?
वह जबरन इनपुट नहीं देती थीं. हां, सीन की बेहतरी के लिए कुछ लगा तो बताती थीं. मैं कहूंगा कि निर्देशन में उन्होंने मुझे पूरी आजादी दी. उन्होंने मेरे विजन को सपोर्ट किया. वह अच्छी कलाकार और निर्देशक हैं.
कंगना की फिल्म ‘इमरजेंसी’ के सेट पर भी आप गये थे, सोशल मीडिया में आपकी तस्वीरें आयी थीं?
चार साल पुरानी बात है. हैदराबाद में वह ‘थलाइवी’ शूट कर रही थीं. वहां जाकर मैंने यह कहानी सुनायी थी. मैं उनका हमेशा से फैन रहा हूं. उनको निजी तौर पर जानने के बाद और बड़ा फैन हो गया हूं. उनकी फिल्म इमरजेंसी के सेट पर गया था, तो उन्होंने फिल्म का फुटेज भी दिखाया था. निर्देशन और अदाकारी दोनों ही बहुत कमाल का है. मुझे उस फिल्म का बेसब्री से इंतजार है.
फिल्म कोविड के दौरान शूट हुई थी, तो किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा?
दो-तीन सौ लोगों की यूनिट को प्रेरित करके रखना आसान नहीं था. जूम कॉल पर मीटिंग होती थी. जो लोकेशन चुना था, वह कई बार मिल नहीं पा रहा था. कोई दृश्य 500 लोगों के साथ सोचा था, उसे फिर अलग तरह से शूट करना पड़ा, क्योंकि कोविड में यह संभव नहीं था. लेकिन सभी के सहयोग से आखिरकार सब ठीक रहा. अच्छी बात ये थी कि फिल्म की क्वालिटी में कोई फर्क नहीं पड़ा.
खबर थी कि फिल्म पहले 20 अक्तूबर को रिलीज होने वाली थी, फिर इसे बदल दिया गया. क्या फिल्म ‘गणपत’ की वजह से?
कंगना मैम और रॉनी सर ने मिलकर फिल्म को 27 अक्तूबर को रिलीज करने का फैसला किया. मुझे लगता है कि यह सही फैसला है. क्लैश ना हो, ये अच्छी बात है. सभी फिल्मों को बिजनेस करने का मौका मिले, ये जरूरी है.
बतौर फिल्मकार यह आपकी पहली फिल्म है. इसके लिए आपने 17 वर्षों का लंबा इंतजार किया है. यह संघर्ष कितना मुश्किल रहा?
मुंबई 2006 में आया और देखते-देखते 17 साल हो गये हैं. नो डाउट कि संघर्ष का दौर लंबा रहा है. लेकिन मैंने उसको भी पॉजिटिव तरीके से ही लिया. मैं इसे ऐसे सोचता हूं कि प्रेशर को डील कैसे करना है. मेरी कई फिल्में शूटिंग फ्लोर पर जाकर रुक गयीं. कभी पैसे की दिक्कत हो गयी, तो कभी निर्माता ने शूटिंग से ठीक पहले कह दिया कि वह फिल्म नहीं कर पायेंगे. मेरे पिता आइएएस ऑफिसर थे और मेरी पढ़ाई मिलिट्री स्कूल में हुई है, इसलिए कभी हताशा या अवसाद ने मुझे नहीं घेरा. इसका श्रेय मेरे माता-पिता, बहन और पत्नी को ही जाता है. अगर आपके पास पॉजिटिव लोग हैं, जो सहयोग करते हैं, तो आपका संघर्ष, संघर्ष नहीं लगता है.
निर्माता रॉनी स्क्रूवाला के साथ क्या आपकी तीन फिल्मों की डील है?
दो फिल्मों की हमारी डील है. अगली फिल्म कौन-सी होगी, यह अभी तय नहीं है. अपने संघर्ष के दिनों में मैंने कई सारी फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी है. उनमें से कोई एक हो सकती है या फिर रॉनी सर का ही कोई आइडिया हो सकता है, जैसा उन्होंने ‘तेजस’ के लिए दिया.