धनबाद के सांसद पीएन सिंह ने हाल ही विधायक सरयू राय पर कहा था कि उनकी राजनीतिक तुलना उनसे नहीं की जा सकती है. अब उनके इस बयान पर सरयू राय ने भी इस पर अपनी राय रखी है. उन्होंने कहा है कि मैं सांसद पी एन सिंह के इस बयान से शत प्रतिशत सहमत हूं कि उनसे मेरी राजनीतिक तुलना ग़लत है. राजनीति के अलावा वे किसी अन्य क्षेत्रों में तो उनकी सक्रियता कभी रही ही नहीं.
विधायक सरयू राय ने आगे कहा कि मेरे बारे में अपनी भड़ास निकालते समय उन्होंने जो कहा उस पर मैं संक्षिप्त टिप्पणी दे रहा हूं. पर इसी वक्तव्य में पी एन सिंह जी ने भाजपा पर जो एहसान जता दिया है कि “उन्होंने भाजपा की झोली में वह सीट पहली बार डाल दिया था” जिसपर आज़ादी के बाद भाजपा कभी जीत नहीं पायी थी. यह पार्टी के ऊपर इनके निजी अहंकार को दर्शाता है. उनके इस वक्तव्य को भाजपा किस कदर लेती है वह मैं भाजपा के धनबाद, रांची और दिल्ली के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर छोड़ता हूं. लेकिन इस बात का उल्लेख मैं अवश्य करना चाहता हूं कि भाजपा पर यह एहसान थोपने के ठीक पहले भी पीएन सिंह पड़ोस की सीट पर चुनाव लड़े थे और केवल 5400 वोट लाकर जमानत जब्त करवा बैठे थे.
पीएन सिंह के इस चुनाव में उनके खड़ा होने का नतीजा यह निकला कि धनबाद के जो धाकड़ व्यक्ति इन्हें पार्षद का चुनाव जिताने के लिए अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर दिन भर उस क्षेत्र में बैठे रहा और उन्हें जीत दिलाया. कुछ ही दिन बाद हुए विधानसभा चुनाव में पीएन सिंह जी उन्हीं के खिलाफ खड़ा हो गए और अपनी जमानत गंवा बैठे. तब अपने पुरुषार्थ की बदौलत वह सीट भाजपा की झोली में क्यों नहीं डाल पाये. उस पर भी तो उन्हें अपनी ज़ुबान खोलनी चाहिए थी. धनबाद की धरती पीएन सिंह जी के संबंध मे ऐसे कई उदाहरण हैं जिसका उल्लेख कभी बाद में होगा. जिस समय बच्चा बाबू के अग्रज स्व॰ सूर्यदेव सिंह जी ने पीएन सिंह को धनबाद ज़िला जनता पार्टी का अध्यक्ष बनाया था, उस वक्त मैं उसी पार्टी से अविभाजित बिहार का प्रदेश महासचिव था. उस समय की बातें याद करें तो पीएन सिंह जी के साथ मेरी राजनीतिक तुलना कैसे की जा सकती है?
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सरयू राय यहीं नहीं रूके. उन्होंने कहा कि जब पीएन सिंह कहते हैं कि बाबूलाल मरांडी की सरकार में वे उद्योग मंत्री थे तो उन्होंने मुझे विभाग की एक समिति मे स्थान दिलवाया था. यानी उनके अनुसार मुझे पहचान और प्रतिष्ठा उन्होंने ही दिलायी. उन्हें जरूर यह बात याद होगी कि वह समिति क्या थी और मुझे ही उसका अध्यक्ष कैसे और क्यों बनाया गया था.
उन्होंने कहा कि इसमें तत्कालीन राज्यपाल प्रभात कुमार और तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल मरांडी की क्या सोच थी. उस सरकार में पीएन सिंह जी मंत्री कैसे बने यह तथ्य भी आज नहीं तो कल सामने आ ही जाएगा. उन्हें याद नहीं हो तो बाबूलाल जी से पूछ लें कि उस मंत्रिपरिषद में मेरे लिए क्या स्थान रखा गया था और मैंने उसे क्यों स्वीकार नहीं किया. इसकी जानकारी भी वे प्राप्त कर लें. ऐसी स्थिति में उनका कथन गलत नहीं है कि मुझसे उनकी राजनीतिक तुलना नहीं की जानी चाहिए.
सरयू राय ने कहा कि मुझमें उन्हें बरसाती मेंढक नजर आता है. दामोदर नदी धनबाद के बीचों बीच प्रवाहित होता है. मैं और मेरे सहयोगी दामोदर को प्रदूषण मुक्त करने के लिए दामोदर बचाओ आंदोलन के बैनर तले 2004 से अभियान चला रहे हैं. जिसका संज्ञान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन ऊर्जा एवं कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने लिया. और कई बैठकें बुलायी.
इस अभियान के सिलसिले में मेरा धनबाद आना-जाना साल में दो-चार बार लगा रहता है. पर इसका संज्ञान पीएन सिंह चुनाव के समय ही लेते हैं. एक बार रांची में सीसीएल मुख्यालय पर इस बारे में हुए महाधरना में कुछ क्षण के लिए शामिल होने के सिवाय पीएन सिंह कभी भी कार्यक्रमों में भाग नहीं लिया. बल्कि धनबाद में तो वे और उनके समर्थक इसके विरोध में ही रहे. कौन चुनाव के समय टर-टराने वाला मेंढक है यह समय बता देगा.