शिवजी के जन्म से संबंधित अनेक लोककथाएं प्रचलित हैं. फिर भी ब्रह्मा, विष्णु और शिव का जन्म एक रहस्य है. तीनों के जन्म की कथाएं वेद व पुराणों में अलग-अलग हैं. उनके अलग-अलग होने के कारण यह है कि जो शिव को मानते हैं, वे शिव को ही केंद्र में रखकर अपना दर्शन गढ़ते हैं. जो विष्णु को मानते हैं, वे विष्णु को केंद्र में रखते हैं, पर सभी पुराण इस पर सहमत हैं कि विष्णु ने ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की पुत्री सती और विष्णु ने ब्रह्मा के पुत्र भृगु की पुत्री लक्ष्मी से विवाह किया था. ऐसे में जानें शिव के जन्म से जुड़ीं कुछ चुनिंदा कथाओं के बारे में.
विष्णु पुराण के अनुसार, ब्रह्मा विष्णु की नाभि-कमल से पैदा हुए, जबकि शिव विष्णु जी के माथे के तेज से उत्पन्न हुए हैं.
पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में महादेव शिव और विष्णु के जन्म के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं. शिव पुराण के अनुसार, शिवजी को स्वयंभू माना गया है, जबकि विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु स्वयंभू हैं. शिव पुराण के अनुसार, एक बार जब देवाधि देव महादेव अपने टखने पर अमृत मल रहे थे, तब उससे भगवान विष्णु पैदा हुए. जबकि, विष्णु पुराण का मत है कि ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि-कमल से पैदा हुए, जबकि शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए हैं. ऐसी मान्यता है कि माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिवशंकर हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं. श्रीमद् भागवत के अनुसार, एक बार जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा अहंकार से अभिभूत हो स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए लड़ रहे थे, तब एक जलते हुए खंभे से देवों के देव महादेव प्रकट हुए.
विष्णु पुराण में शिवजी के बालरूप का वर्णन मिलता है. ब्रह्मा को एक बच्चे की जरूरत थी. घोर तपस्या के बाद शिवजी ने जन्म लिया.
विष्णु पुराण में भगवान भोलेशंकर के बालरूप का वर्णन मिलता है. विष्णु पुराण के अनुसार, ब्रह्मा को एक बच्चे की आवश्यकता थी. उन्होंने इसके लिए कठिन तपस्या की. तब अचानक उनकी गोद में रोते हुए बालक शिव प्रकट हुए. ब्रह्मा ने बच्चे से रोने का कारण पूछा, तो उसने जवाब दिया कि उसका नाम ‘ब्रह्मा’ नहीं है, इसलिए वह रो रहा है. तब ब्रह्मा जी ने शिव का नाम ‘रुद्र’ रख दिया, जिसका अर्थ है-रोने वाला. शिव जी इसके बाद भी चुप नहीं हुए, तो ब्रह्मा ने दूसरा नाम दिया, लेकिन शिव फिर भी शांत नहीं हुए. इस तरह शिवजी को शांत कराने के लिए ब्रह्मा ने आठ नाम दिये. इस तरह शिव आठ नामों- रुद्र, शर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव से जाने गये. इनके हर नाम का विशेष महत्व है.
शंकरजी के इस अवतार को शिव का गण माना जाता है, जो कि उनकी जटा से उत्पन्न हुआ था. इसे शिव का अंशावतार माना गया है.
ऐसी मान्यता है कि शिवजी का विवाह ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की पुत्री सती से हुआ था. एक बार दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने शिव और सती को निमंत्रित नहीं किया. महादेव शिव के मना करने के बाद भी सती इस यज्ञ में पहुंच गयीं. जब उन्होंने यज्ञ में अपने पति शिवशंकर का अपमान होते देखा, तो यज्ञवेदी में कूदकर उन्होंने अपनी देह त्याग कर दिया. जब शिव को पता चला, तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे पर्वत के ऊपर पटक दिया. उस जटा से ही महाभयंकर वीरभद्र प्रकट हुए. शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उन्हें मृत्युदंड दिया. बाद में देवताओं के अनुरोध पर शिवजी ने दक्ष के सिर पर बकरे का मुंह लगाकर उसे पुन: जीवित किया.