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कोल्हान के चुम्बुरु का देखिए जुनून, पड़ोसी ने पानी लेने के लिए किया मना, तो अकेले ही खोद डाला तालाब

झारखंड के दशरथ मांझी से मिलिए. कोल्हान के चुम्बुरु का जुनून ऐसा कि अकेले ही खोद डाले तालाब. पड़ोसी ने पानी लेने के लिए मना किया, तो अकेले ही तालाब खोद डाले. तालाब खोदने के जुनून से परेशान पत्नी चुम्बुरु को छोड़ कर दूसरे के साथ चली गयी. इसके बावजूद चुम्बुरु का तालाब खोदने का जुनून कम नहीं हुआ.

Jharkhand News: अगर इच्छा शक्ति प्रबल हो, तो मनुष्य के लिए कोई भी काम कठिन नहीं रह जाता है. इसका उदाहरण पेश किया है पश्चिमी सिंहभूम जिले के कुमारडुगी प्रखंड के कुमिरता गांव लोवासाईं टोली चुम्बरु तामसोय (70 वर्ष) ने. चुम्बरू तामसोय को गांव के तालाब से बागवानी के लिए पानी नहीं, तो उसने खुद का तालाब खोद डाला. करीब 40 वर्षों तक बिना किसी के सहयोग से अकेले तालाब खोद डाला.

पति के जुनून से परेशान पत्नी ने छोड़ा घर

जिले का यह पहला मामला है. बावजूद इसपर न तो समाज के लोगों की नजर पड़ी है और ना ही सरकारी पदाधिकारियों की. उस पर तालाब खोदने का जुनून इस कदर चढा कि वह पिछले 30 साल से रोजाना एक से दो घंटे तक खुदाई करता है. यह सिलसिला आज भी जारी है. अब तक करीब 100/100 फीट का तालाब खोद चुका है. हालांकि, तालाब खोदने को लेकर पत्नी के ताने भी सहने पड़े. इतना ही नहीं, पत्नी इससे नाराज होकर छोड़कर दूसरे के साथ घर बसा ली.

रात में भी ढिबरी लेकर तालाब खोदने निकल पड़ता था चुम्बरू

चुम्बरू तामसोय ने बताया कि तालाब खुदाई के दौरान ही उन्होंने शादी की थी. उन्हें लगा था कि पत्नी खुदाई करने में साथ देगी, लेकिन वह हाथ बंटाने की बजाए उल्टा मूर्ख कहकर बुलाती थी. कहा कि चूंकि शादी के बाद जब रात में उसकी नींद खुल जाती थी, तो वह ढिबरी लेकर तालाब खोदने चला जाता था. उसकी पत्नी को यह पसंद नहीं था. किसी तरह समय बीतता गया और इसी बीच पुत्र भी हुआ.

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पत्नी की याद भूलाने के लिए तालाब की खुदाई करने चला जाता

चुम्बरू बताता है कि जब बेटा करीब पांच साल का हुआ, तो उसे छोड़ कर पत्नी किसी दूसरे के साथ भाग गई. इससे वह वह टूट सा गया, लेकिन तालाब खोदने का काम आज तक नहीं छोडा. उसने बताया कि पत्नी के दूसरे के साथ जाने के बाद जब उसकी याद आती थी, तो गम भुलाने के लिए दिन हो या रात कभी भी तालाब की खुदाई करने जुट जाता था.

तालाब बनकर हुआ तैयार

चुम्बरू के जुनून और लगन से आखिरकार तालाब बन गया. अब वहां मछली पालन भी करता है. वहीं, गांव के लोग उसी तालाब में स्नान भी करते हैं. वह किसी को मना नहीं करता है. वह खुद इस उम्र में भी उसी तालाब के आड़ पर बागवानी करता है. बताता है कि आज भी वह रोजाना एक से दो घंटे तक तालाब की खुदाई करता है, ताकि इसे बड़ा बनाया जा सके.

इसलिए शुरू की थी तालाब की खुदाई

चुम्बरू ने बताया कि वर्ष 1975 में अकाल पड़ा था. उस समय उसे बागवानी के लिए पानी नहीं मिला था. उसका खुद का तालाब भी नहीं था. इस वजह से धान की फसल नहीं हो पायी थी. अनावृष्टि के कारण चारों ओर सूखा पड़ने के कारण लोगो के घरों में अनाज नहीं था. घर की स्थिति भी खराब हो गयी थी. इस वजह से गांव में रहने वाले सात दोस्तों के साथ उत्तरप्रदेश के रायबरेली जिला अंतर्गत वाचरावा नमक जगह पर मजदूरी करने चला गया था. वहां उसे और उसके दोस्तों से नहर खुदाई का काम कराया जा रहा था. इस क्रम में ठेकेदार ने उसे और उसके दोस्तों को बहुत सताया. इस वजह से उसका वह अपने दोस्तों के साथ किसी तरह भाग कर गांव वापस लौट गया. चुम्बरू ने बताया कि वे लोग उत्तरप्रदेश में 4 जनवरी से 31 मार्च तक रहे. वहीं, गांव लौटने के बाद वह बागवानी करने लगा. जब बागवानी के लिए पानी की जरूरत पड़ी, तो तालाब मालिक ने पानी देने से मना कर दिया. उसी समय उसने ठान लिया था कि वह भी अपना तालाब बनायेगा.

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प्रशिक्षण और सम्मानित कर भूल गया मत्स्य विभाग

चुम्बरु बताता है कि उसे सबसे ज्यादा तकलीफ अपने ही हो समाज से हुआ है. मैं अपने समाज के बीच रह रहा हूं. मेरे कार्यों को न तो देख पाये और ना ही किसी ने हौसला अफजायी की. अब उसका लक्ष्य उस तालाब को और अधिक बड़ा बनाकर समाज को एक संदेश देना रह गया है. चुम्बरू ने बताया कि मतस्य विभाग द्वारा आयोजित मतस्य कृषकों का राज्य स्तरीय प्रशिक्षण 9 दिसंबर से 13 दिसंबर, 2017 तक रांची में आयोजित हुआ था. इस प्रशिक्षण भाग लिया था. वहां विभाग के पदाधिकारी ने उसे अकेले तालाब खोदनेे के लिए सम्मानित किया था. लेकिन, वापस लौटने के बाद विभाग से न तो उसे किसी तरह का सहयोग मिला और ना ही विभाग ने कोई सुध ली. मौजूदा समय में वह बागवानी और वृद्धा पेंशन के पैसे से मछली पालन करता है.

रिपोर्ट : सुनील कमार सिन्हा, चाईबासा.

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