फिल्म ‘शास्त्री वर्सेज शास्त्री’ बीते शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. पिता-पुत्र के रिश्तों की इस इमोशनल कहानी में अभिनेता शिव पंडित अहम भूमिका में नजर आ रहे हैं. शिव इस बात से खासा उत्साहित हैं कि उनकी कोई फिल्म एक अरसे बाद सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. शिव की पिछली फिल्में ‘खुदा हाफिज और ‘शेरशाह’ को दर्शकों ने काफी पसंद किया, लेकिन ये फिल्में ओटीटी पर रिलीज हुई थीं. उन्हें यकीन है कि अगर ये फिल्में थिएटर में रिलीज हुई होतीं, तो ये उनके करियर को और फायदा पहुंचा सकती थीं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
खबर है कि इस फिल्म से आप शूटिंग शुरू होने के कुछ दिनों पहले ही जुड़े थे. फिल्म में आपके लिए सबसे अपीलिंग क्या था?
मेरे लिए फिल्म की कहानी, मेरा किरदार, डायरेक्टर शिबू नंदिता का नाम, ये सब ‘हां’ कहने की वजह बना. मैं इस फिल्म के निर्माताओं में से एक रघुवेंद्र सिंह का नाम भी लेना चाहूंगा. मैं उन्हें अपनी पहली फिल्म ‘शैतान’ के दिनों से जानता हूं. मैंने उनकी वजह से भी ‘शास्त्री वर्सेज शास्त्री’ फिल्म की है. शूटिंग शुरू होने से ठीक चार दिन पहले मेरे पास इस फिल्म को लेकर वह आये थे. मैं स्तब्ध था, पर उनके चेहरे पर उत्साह था. सच कहूं, तो एक पिता के किरदार को करने के लिए मैं पूरी तरह तैयार नहीं था. उन्होंने मुझे कंन्विस किया. पूरी फिल्म के दौरान मुझे छोटी से छोटी जरूरत पड़ती, तो मैं उन्हें याद करता और वो चुटकी में उसे हल कर देते थे. कमाल का धैर्य और समर्पण है उनमें. उनके जैसे निर्माताओं की इंडस्ट्री को जरूरत है.
यह फिल्म बांग्ला फिल्म का हिंदी रीमेक है. क्या आपने वो फिल्म देखी है?
नहीं, मुझे ये मालूम था कि बांग्ला फिल्म में मेरा किरदार जीशू सेनगुप्ता ने निभाया है, पर मैं ये फिल्म नहीं देखना चाहता था, क्योंकि मैं किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होना चाहता था. मैं इसे अपने तरह से परफॉर्म करना चाहता था.
यह फिल्म पिता-पुत्र के रिश्तों की कहानी है. ऐसे में क्या आप अपनी निजी जिंदगी के अनुभवों को याद कर सीन को परफॉर्म करते हैं?
हां, मैं उन एक्टर्स में से हूं, जो अपने असल जिंदगी के अनुभवों को याद कर इमोशनल सीन पर्दे पर करते हैं. मगर इस दौरान मैंने ये भी अनुभव किया है कि निजी जिंदगी के किसी एक अनुभव को जब आप बार-बार ऑनस्क्रीन इमोशनल होने के लिए इस्तेमाल में लाते हैं, तो एक अरसे बाद आप उस अनुभव पर फिर इमोशनल नहीं हो पाते हैं, तो यह काफी मुश्किल भी होता है.
आपके अपने पिता संग रिश्ते कैसे रहे हैं?
बाप-बेटे के रिश्ते में मतभेद के साथ-साथ प्यार और सम्मान रहता ही है. मेरा भी रिश्ता अपने पिता के साथ इन तमाम इमोशन्स वाला है. मेरे पिता ब्यूरोकेट्स हैं. ऐसे में जब मैंने एक्टर बनने का फैसला किया, तो वह उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन बदलते समय के साथ उन्होंने मेरी मेहनत को देखा और अब वह मुझे सपोर्ट करने लगे हैं. मैंने तय किया है कि जब मेरे माता-पिता को बुढ़ापे में मेरी सबसे ज्यादा जरूरत होगी, तो मैं उनके पास ही रहूंगा.
परेश रावल के साथ एक्टिंग के अनुभव को किस तरह से परिभाषित करेंगे?
उनके साथ काम करने के बाद उनके लिए सम्मान और भी बढ़ जाता है. अब समझ में आया कि उन्हें सीनियर क्यों कहा जाता है. वह सेट पर पूरी तैयारी के साथ आते थे. उन्हें अपने सारे डायलॉग याद रहते थे. उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला.
इंडस्ट्री में 16 साल हो गये हैं. अपनी अबतक की जर्नी को कैसे देखते हैं?
सभी को पता है कि इंडस्ट्री में आउटसाइडर्स की जर्नी आसान नहीं होती है. एक्टर बनने का फैसला मैंने किया था, तो फिर संघर्ष से शिकायत कैसे हो सकती है. मैं इस बात को भी मानता हूं कि आप हालात को दोष दे सकते हैं या फिर उससे लड़ सकते हैं, तो मैं शिकायत करने की बजाय मैं अपने काम पर और फोकस करना चाहता हूं.
क्या काम के लिए अप्रोच करते हैं?
हां, एक एक्टर के तौर पर आप इतना तो कर ही सकते हैं. कई बार डायरेक्टर्स या प्रोड्यूसर के दिमाग में आप नहीं होते हैं. ऐसे में अगर आप उन्हें अप्रोच करते हैं, तो आप उनके जेहन में आ जाते हैं. वैसे मेरी भी कुछ खामियां हैं. मैं काफी लो प्रोफाइल रहता हूं. अपने काम के बारे में मुझे भी प्रमोट करने की जरूरत है, जो वह मैं नहीं करता हूं. अब आगे से मैं वह भी करूंगा.
आपके आनेवाले प्रोजेक्ट्स के बारे में बताएं ?
अभी मेरी दो फिल्में पाइपलाइन में हैं. वो थिएटर में रिलीज होंगी या ओटीटी पर, यह उनके मेकर्स ही बता पायेंगे. फिलहाल, इससे ज्यादा कुछ नहीं बता पाऊंगा.