Pitru Paksha 2023: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा 29 सितंबर 2023 दिन शुक्रवार को है. इस दिन अगस्त्य मुनि को खीरा, सुपारी, कांस के फूल से सनातन धर्मावलंबी तर्पण करेंगे. फिर आश्विन कृष्ण प्रतिपदा 30 सितंबर यानी शनिवार को पितरों को तिल, जौ से तर्पण किया जायेगा. कुंडली से पितृ दोष की शांति, पुरखों के आशीर्वाद, पितरों की तृप्ति के लिए पितृपक्ष में तर्पण, पिंडदान कर ब्राह्मणों को भोजन कराए जाने का विधान है. इस बार पितृपक्ष में सभी तिथियां पूर्ण होने से पितरों की कृपा पाने के लिए पूरे 15 दिन मिलेंगे.
मान्यता है कि पितरों को जब जल और तिल से पितृपक्ष में तर्पण किया जाता है, तब उनकी आत्मा तृप्त होती है और उनका आशीष कुटुंब को कल्याण के पथ पर ले जाता है. तीन पुरखों का होगा तर्पण : झा ने वैदिक कर्मकांड पद्धति के हवाले से बताया कि पितृपक्ष में पिता, पितामह, प्रपितामह और मातृ पक्ष में माता, पितामही, प्रपितामही इसके अलावा नाना पक्ष में मातामह, प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह. वहीं नानी पक्ष में मातामही प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही के साथ-साथ अन्य सभी स्वर्गवासी सगे-संबंधियों का गोत्र व नाम लेकर तर्पण किया जायेगा.
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गयाजी में वर्तमान में 54 वेदी स्थलों पर तीर्थयात्री अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष की प्राप्ति की कामना को लेकर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड करते हैं. इन वेदी स्थलों में आठ ऐसे सरोवर हैं, जिनका पौराणिक व धार्मिक महत्व है. इसके साथ ही इनका रिश्ता शहर से युगों पुराना है. ज्योतिषाचार्य के अनुसार ब्रह्मा सरोवर, वैतरणी, उत्तर मानस सरोवर, सूर्यकुंड, रुक्मिणी सरोवर, ब्रह्माकुंड, रामकुंड व गोदावरी सरोवर ब्रह्माजी के द्वारा निर्मित हैं. इन सरोवरों पर पितृपक्ष मेले में पिंडदान व तर्पण के कर्मकांड का विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है. अश्विन मास में अनंत चतुर्दशी से 17 दिनों तक आयोजित होनेवाले पितृपक्ष मेले में अलग-अलग तिथियां में इन सरोवरों में पिंडदान व तर्पण का कर्मकांड किया जाता है.
ब्रह्माजी ने सृष्टि रचते समय गयासुर को उत्पन्न किया. गयासुर का हृदय भगवान विष्णु के प्रेम में ओतप्रोत रहता था. उसने भगवान विष्णु से वरदान की प्राप्ति के लिए कठोर तप किया था. विष्णु के प्रसन्न होने पर गयासुर ने वरदान मांगा कि श्रीहरि स्वयं उसके शरीर में वास करें और उसे कोई भी देखे तो उसके सभी पाप नष्ट हो जाएं और उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो. भगवान विष्णु ने गयासुर की यह इच्छा पूरी की थी.
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इसके बाद गयासुर के शरीर के ऊपर यह हर महातीर्थ स्थापित हुआ. इसी कारण इस पुण्यभूमि का नाम गयाधाम पड़ा. पौराणिक कथा के अनुसार, गयासुर ने कोलाहल पर्वत पर सहस्रों वर्ष तक कुंभक-समाधियोग से तपस्या कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया था. इससे भगवान इंद्र का सिंहासन हिलने लगा. इसके बाद विष्णु के कहने पर ब्रह्मा ने यज्ञ के लिए गयासुर से उसकी देह की याचना की.
उन्होंने कहा पृथ्वी के सब तीर्थों का भ्रमण कर देख लिया, विष्णु के वर के फलस्वरूप तुम्हारी देह सबसे पवित्र है. मेरे यज्ञ को पूर्ण करने के लिए अपनी देह मुझे दो. तब गयासुर ने समग्र जगत के कल्याण के लिए अपनी देह को दान कर दिया. उसने कहा, ब्रह्म मैं धन्य हुआ. सबके उपकार के लिए देह यज्ञ के काम आयेगी. उसके मस्तक के ऊपर एक शिलाखंड स्थापित कर यज्ञ संपन्न हुआ.
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असुर की देह को हिलता देख विष्णु ने अपनी गदा के आघात से देह को स्थिर कर दिया और उसके मस्तक पर अपने “पादपदा” स्थापित किये. साथ ही उसे वर दिया कि जब तक यह पृथ्वी, चंद्र व सूर्य रहेंगे, तब तक इस शिला पर ब्रह्मा, विष्णु व महेश रहेंगे. पांच कोस गयाक्षेत्र, एक कोस गदासिर गदाधर की पूजा द्वारा सबके पापों का नाश होगा. यहां जिनका पिंडदान किया जायेगा, वे सीधे ब्रह्मलोक जायेंगे.