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श्रावणी मेला : जानें भगवान शिव के 19 अवतार और उनकी महिमा के बारे में

महादेव का पहला अवतार वीरभद्र है, जो उनका ही एक गण माना गया है. वीरभद्र महादेव की जटा से उत्पन्न हुए थे. मान्यता है कि एक बार महादेव के ससुर दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, पर उन्होंने शिव व सती को नहीं बुलाया.

सावन का पावन महीना चल रहा है. ये महीना भगवान शिव को समर्पित होता है. इस महीने में जो कोई भगवान शिव की पूजा-अर्चना करता है, उसे फल अवश्य मिलता है. उनके मात्र आशीर्वाद से ही सबके दुख दूर हो जाते हैं. जिस प्रकार भगवान विष्णु के 10 अवतार हैं, उसी प्रकार देवों के देव महादेव ने भी धरती पर अवतार लिए हैं. शिव महापुराण में शिव के अनेक अवतारों का वर्णन है. इस धर्मग्रंथ के अनुसार भगवान शिव ने 19 अवतार लिए थे. इन सभी रूपों की अपनी अलग अहमियत और आस्था है. आज दूसरी सोमवारी है. इस खास अवसर पर पढ़ें भगवान शिव ने 19 अवतारों से जुड़ीं प्रचलित कथाएं और मान्यताएं.

वीरभद्र अवतार

महादेव का पहला अवतार वीरभद्र है, जो उनका ही एक गण माना गया है. वीरभद्र महादेव की जटा से उत्पन्न हुए थे. मान्यता है कि एक बार महादेव के ससुर दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, पर उन्होंने शिव व सती को नहीं बुलाया. भगवान शिव के मना करने के बाद भी सती इस यज्ञ में जा पहुंचीं और जब उन्होंने यज्ञ में अपने पति शिव का अपमान होते देखा, तो यज्ञवेदी में कूदकर उन्होंने अपनी देह का त्याग कर दिया. जब भगवान शिव को यह मालूम हुआ तो उन्होंने अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे क्रोध में आकर पर्वत के ऊपर पटक दिया. उस जटा से महाभंयकर वीरभद्र प्रकट हुए. शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया. बाद में देवताओं के अनुरोध करने पर भगवान शिव ने दक्ष के सिर पर बकरे का मुंह लगाकर उसे पुनर्जीवित कर दिया.

पिप्पलाद अवतार

भोलेनाथ ने अपने परम तपस्वी महर्षि दधीचि के बेटे के रूप में अपना पिप्पलाद अवतार लिया था. ऐसा माना जाता है कि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा था कि ऐसा क्या कारण था जो मेरे पिता ने मेरे जन्म से पहले ही मुझे छोड़कर चले गये, जिस पर देवताओं ने उन्हें बताया कि शनि दृष्टि के कारण ऐसा कुयोग बना कि उनके जन्म से पहले ही उनके पिता उन्हें छोड़ कर चले गये. इसके बाद पिप्पलाद को यह बात सुनकर काफी क्रोध आया और उन्होंने शनि देव को नक्षत्र मंडल से गिरने का ही श्राप दे दिया. पिप्पलाद द्वारा दिये गये श्राप के कारण शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे. देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे. तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है. शिवपुराण के अनुसार, स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था.

नंदी अवतार

भगवान शिव का एक अवतार नंदी भी है. ऐसा कहा जाता है कि शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे. वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा. शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की. तब भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया. कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला. शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा. भगवान शंकर ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया. इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गये. मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ.

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भैरव अवतार

शिवपुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है. एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे. तभी वहां तेजपुंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखायी पड़ी. उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो. अत: मेरी शरण में आओ. ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया. उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं. भीषण होने से भैरव हैं. भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया. ब्रह्मा का पांचवां सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गये. काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली.

अश्वत्थामा अवतार

भगवान शंकर का पांचवा अवतार अश्वत्थामा माना जाता है. महाभारत के अनुसार, पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे अश्वत्थामा. वह भगवान शंकर, यम, काल, क्रोध के अंशावतार थे. गुरु द्रोणाचार्य ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की. उनकी तपस्या के फल स्वरुप समय आने पर स्वन्तिक रुद्र ने अपने अंश से गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया. गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काफी बलशाली माने जाते हैं. मान्यताओं के अनुसार, आज भी अश्वत्थामा अमर हैं और धरती पर वास करते हैं.

शरभ अवतार

भगवान शंकर का एक अन्य अवतार है शरभ. इस अवतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी का था. इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था. लिंग पुराण में शिव के शरभावतार की कथा है, उसके अनुसार, हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया था. हिरण्यकश्यप के वध के बाद भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ, तो देवता शिवजी के पास पहुंचे. तब भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनकी स्तुति की, लेकिन नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ. यह देख शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े. तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई.

गृहपति अवतार

गृहपति अवतार भगवान शंकर का सातवां अवतार माना जाता है. इसको लेकर एक कथा प्रचलित है, जिसमें बताया गया है कि नर्मदा के तट पर एक धर्मपुर नाम का गांव था, जहां एक मुनि विश्वनार अपनी पत्नी शुचिष्मती के साथ रहते थे. एक दिन ऋषि की पत्नी ने उनसे शिव की तरह पुत्र को प्राप्त करने की इच्छा जतायी, जिसके बाद पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए मुनि विश्वनार काशी आ पहुंचे, जहां उन्होंने घोर तपस्या की और भोलेनाथ के वीरेश लिंग की पूजा-अर्चना की. एक दिन पूजा-अर्चना करने के दौरान ही मुनि को वीरेश लिंग के बीच में एक बालक दिखायी पड़ा, जिसको देख मुनि विश्वनार ने उस बाल रूप धारी शिव की पूजा-अर्चना की. ऋषि विश्वनार की पूजा से भोलेनाथ इतने प्रसन्न हो गये कि उन्होंने ऋषि को शुचिष्मती के गर्भ से अवतार लेने का वरदान दिया और वह कुछ समय बाद शुचिष्मती के कोख से महादेव पुत्र रूप में प्रकट हुए.

ऋषि दुर्वासा अवतार

महादेव का वैसे तो हर अवतार ही पूजनीय है, पर इनमें से ऋषि दुर्वासा का अवतार प्रमुख माना गया है. धर्म ग्रंथ बताते हैं कि महर्षि अत्रि ने अपनी पत्नी अनुसूइया के साथ ब्रह्मा जी की आज्ञा पाकर त्रिकूट पर्वत पर पुत्र की इच्छा कड़ी तपस्या की. ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूइया के तप से त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश उनके आश्रम पहुंचे. आश्रम पहुंचकर त्रिदेव ने उन्हें कहा कि हमारे अंश से आपके यहां 3 पुत्रों का जन्म होगा, जो माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे और त्रिलोक में विख्यात होंगे. कुछ समय बाद ब्रह्मा जी के अंश से चंद्रमा उत्पन्न हुए, वहीं विष्णु भगवान के अंश से संसार में संन्यास की पद्धति को आगे प्रचलित करने के लिए दत्तात्रेय का जन्म हुआ. जबकि महादेव के अंश से मुनि दुर्वासा ने सती अनसूया के कोख से जन्म लिया.

हनुमान अवतार

महादेव के हनुमान अवतार को सभी अवतारों में सबसे ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है. ज्यादातर लोग जानते हैं कि हनुमान जी किसी और का नहीं, बल्कि भगवान शंकर के ही अवतार हैं, जिन्होंने एक वानर के रूप में अयोध्या नंदन श्री राम का साथ दिया और सीता माता को रावण से आजाद कराने में श्री राम की सहायता की. हनुमान जी माता अंजनी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे, जोकि सप्त ऋषियों के संकल्प का ही फल स्वरूप था. अपने आराध्य श्री राम की सहायता और सेवा के उद्देश्य से ही महादेव ने माता अंजनी के गर्भ से अवतार लिया था. पूरी रामायण बिना हनुमान जी के अधूरी है. हनुमान जी से बड़े श्री राम भक्त आज तक इस धरती पर प्रकट नहीं हुए.

वृषभ अवतार

भगवान शिव ने वृषभ अवतार विशेष परिस्थितियों के चलते लिया था. कुछ ग्रंथों के अनुसार, एक कथा प्रचलित है, जिसमें बताया गया कि सभी के पालनकर्ता भगवान विष्णु दैत्यों को मारने के लिए पाताल लोक पहुंचे थे और उन्हें वहां देख कई महिलाएं मोहित हो गयी थीं. भगवान विष्णु के पुत्रों को इन स्त्रियों ने जन्म दिया था, जिन्होंने पाताल से पृथ्वी तक बढ़ा उपद्रव मचा के रखा था. पाताल से पृथ्वी लोक तक मचे उपद्रव को देखते हुए ब्रह्मा जी घबरा कर ऋषि-मुनियों और अन्य देवताओं के साथ महादेव के पास पहुंचे थे और उनसे रक्षा करने की प्रार्थना की थी, जिस प्रार्थना को स्वीकार करते हुए महादेव ने वृषभ रूप धारण किया था और भगवान विष्णु के पुत्रों का संहार किया था.

यतिनाथ अवतार

भगवान शंकर का 11 अवतार यतिनाथ अवतार को माना जाता है. यह अवतार भोलेनाथ ने भील दंपत्ति की परीक्षा लेने के लिए लिया था, जिसमें वह अतिथि बनकर भील दंपत्ति के पास पहुंचे थे. ग्रंथों में बताया गया है कि अर्बुदांचल पर्वत के पास एक शिव भक्त भील दंपती आहूक और आहूका रहते थे. एक दिन यतिनाथ का वेश धारण करके भगवान शंकर भील दंपती के घर पहुंचे. आहूक अपना धनुष बाण लेकर बाहर चले गये. सुबह यतिनाथ और आहूका ने देखा कि आहूक को वन प्राणियों द्वारा मार दिया गया है, जिस पर यतिनाथ बहुत दुखी हुए. साथ ही आहूका अपने पति आहूक की चिताग्नि में जलने लगी, जिसे देख महादेव ने आहूका को साक्षात दर्शन दिये. साथ ही उन्हें वरदान दिया कि वह अपने अगले जन्म में फिर से अपने पति से मिल पायेंगी.

कृष्णदर्शन अवतार

इस अवतार में भगवान शिव ने यज्ञ और धार्मिक कार्यों के महत्व को बताने के लिए लिया था, जिसके चलते यह अवतार पूरी तरह से धर्म का प्रतीक ही माना जाता है. ग्रंथों में एक कथा बताई जाती है जिसके अनुसार इक्ष्वाकुवंशीय श्राद्धदेव की नवमी पीढ़ी में राजा नभग ने जन्म लिया था. नभग ने एक बार यज्ञ भूमि में पहुंचकर वैश्य देव सूक्त के साथ स्पष्ट उच्चारण के जरिये यज्ञ संपन्न कराया था, जिसके बाद आंगरिक ब्राह्मण ने नभग को यज्ञ का अवशिष्ट धन देकर स्वर्ग चले गये थे, जिसके बाद वहां महादेव कृष्ण दर्शन के रूप में प्रकट हुए और बोले कि यज्ञ का अभीष्ट धन पर हक उनका है. इसके बाद कृष्ण दर्शन और राजा नभग के बीच विवाद हुआ.विवाद के दौरान महादेव के अवतार कृष्ण दर्शन ने राजा नभग से अपने पिता से ही निर्णय लेने को कहा, जिस पर नभग के पूछने पर श्राद्ध देव ने कहा कि वह पुरुष कोई और नहीं देवों के देव महादेव है. यज्ञ में अवश्य वस्तु उन्हीं की ही है. इसके बाद पिता की बात सुनकर नभग ने शिवजी की स्तुति की और वह अवशिष्ट धन महादेव को सौंप दिया.

अवधूत अवतार

इंद्र के घमंड को चूर करने के लिए महादेव ने अवधूत का अवतार लिया था. बताया जाता है कि एक समय जब भगवान इंद्र, बृहस्पति और अन्य देवताओं को लेकर महादेव के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पर जा रहे थे, तब इंद्र देव की परीक्षा लेने के लिए भोलेनाथ ने अवधूत का रूप धारण किया था और उनके मार्ग को रोका था. इसके बाद इंद्र ने बार-बार अवधूत से उसका परिचय पूछा. कई बार परिचय पूछने पर अवधूत तब भी मौन रहा, जिस पर क्रोधित होकर इंद्र ने अवधूत पर अपना वज्र जैसे ही छोड़ना चाहा वैसे ही उनका हाथ स्तंभित हो गया. बृहस्पति ने अवधूत अवतार में महादेव को पहचान लिया और उनकी विधि पूर्वक स्तुति करने लगे, जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने इंद्र को माफ कर दिया.

भिक्षुवर्य अवतार

भिक्षुवर्य अवतार महादेव का वह अवतार है, जिसने यह संदेश दिया है कि भगवान शिव संसार में जन्म लेने वाले हर इंसान के जीवन की रक्षा भी करते हैं. ग्रंथों के अनुसार, विदर्भ नरेश सत्यरथ को शत्रु ने मौत के घाट उतार दिया था, जैसे-तैसे कर नरेश सत्यरथ की गर्भवती पत्नी ने अपने आप को शत्रुओं से बचाया और कुछ समय बाद विदर्भ नरेश की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया. कुछ दिनों बाद जब पानी पीने के लिए रानी सरोवर गयीं, तो घड़ियाल ने उन्हें अपना भोजन बना लिया और वह बालक वहां भूख-प्यास से तड़पता रहा. तभी महादेव द्वारा भेजी गयी एक भिखारिन वहां पहुंची. शिव जी ने भिक्षुक के रूप में भिखारिन को उस बालक के बारे में बताया और उससे उसका पालन-पोषण करने का निर्देश दिया. साथ ही यह भी बताया कि वह बालक कोई और नहीं, बल्कि विदर्भ नरेश सत्यरथ का पुत्र है. फिर महादेव ने उस भिखारिन को अपना वास्तविक रूप भी दिखाया, जिसके बाद शिव की आज्ञा अनुसार भिखारिन ने बालक का पालन पोषण किया और जब बालक बड़ा हो गया, तो उसने महादेव जी की कृपा से दुश्मनों पर विजय प्राप्त की और अपना राज्य प्राप्त कर लिया.

सुरेश्वर अवतार

भगवान शंकर का सुरेश्वर (इंद्र) अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेम भावना को प्रदर्शित करता है. इस अवतार में महादेव ने एक छोटे से बालक की भक्ति से खुश होकर उसे अपने परम भक्त और अमर पद का वरदान दिया.धर्म ग्रंथों के अनुसार, व्याघ्रपाद का पुत्र उपमन्यु अपने मामा के घर पलता था. वह सदा दूध की इच्छा से व्याकुल रहता था. उसकी मां ने उसे अपनी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए शिवजी की शरण में जाने को कहा. इस पर उपमन्यु वन में जाकर ऊं नम: शिवाय का जाप करने लगा. शिवजी ने सुरेश्वर (इंद्र) का रूप धारण कर उसे दर्शन दिये और शिवजी की अनेक प्रकार से निंदा करने लगे. इस पर उपमन्यु क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए खड़ा हुआ. उपमन्यु की भक्ति और अटल विश्वास देखकर शिवजी ने उसे अपने वास्तविक रूप के दर्शन कराये तथा क्षीरसागर के समान एक अनश्वर सागर उसे प्रदान किया. उसकी प्रार्थना पर कृपालु शिवजी ने उसे परम भक्ति का पद भी दिया.

किरात अवतार

किरात अवतार महादेव का वह अवतार है, जिसमें उन्होंने पांडुपुत्र अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी. महाभारत की कथा के अनुसार, जब अर्जुन वनवास गये हुए थे. इसी दौरान भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए अर्जुन ने घोर तपस्या की. वहीं, दुर्योधन ने अर्जुन को मारने के लिए मूड नामक दैत्य भेजा गया था, जिसने सूअर का रूप धारण किया हुआ था. सूअर को देख अर्जुन ने उस पर बाण से प्रहार कर दिया, वही महादेव ने भी किरात का वेश धारण कर उसे सूअर पर बाण चला दिया. अर्जुन महादेव की माया को नहीं समझ पाये और कहने लगे कि सूअर का वध उनके बाण से हुआ है, जिस पर दोनों के बीच विवाद हो गया. इसके बाद किरात के साथ अर्जुन ने युद्ध किया. अर्जुन की वीरता देख महादेव काफी प्रसन्न हुए और उनको महादेव ने अपने वास्तविक रूप का दर्शन कराया, इसके साथ ही महादेव ने अर्जुन को कौरवों पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद भी दिया.

ब्रह्मचारी अवतार

दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालय के घर जन्म लिया, तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया. पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे. पार्वती ने ब्रह्मचारी को देख उनकी विधिवत पूजा की. जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उसके तप का उद्देश्य पूछा और जानने पर शिव की निंदा करने लगे तथा उन्हें श्मशान वासी व कापालिक भी कहा. यह सुन पार्वती को बहुत क्रोध हुआ. पार्वती की भक्ति व प्रेम को देखकर शिव ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया. यह देख पार्वती अति प्रसन्न हुईं.

सुनटनर्तक अवतार

पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मांगने के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था. हाथ में डमरू लेकर शिवजी नट के रूप में हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे. नटराज शिवजी ने इतना सुंदर और मनोहर नृत्य किया कि सभी प्रसन्न हो गये. जब हिमाचल ने नटराज को भिक्षा मांगने को कहा, तो नटराज शिव ने भिक्षा में पार्वती को मांग लिया. इस पर हिमाचलराज अति क्रोधित हुए. कुछ देर बाद नटराज वेषधारी शिवजी पार्वती को अपना रूप दिखाकर स्वयं चले गये. उनके जाने पर मैना और हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ और उन्होंने पार्वती को शिवजी को देने का निश्चय किया.

यक्ष अवतार

देवताओं के झूठे अभिमान को दूर करने के उद्देश्य से भगवान शिव ने यक्ष अवतार लिया था. दरअसल, समुद्र मंथन के दौरान जब विष निकला, तो संसार को बचाने के लिए भगवान शंकर ने विष अपने कंठ में रोक लिया. वहीं, जब अमृत कलश निकला, तो देवताओं ने अमृत पान किया और वह अमर हो गये और इसी बात का उन्हें अभिमान हो गया कि संसार में सबसे ज्यादा बलशाली वही हैं. देवताओं के अभिमान को तोड़ने के लिए महादेव ने यक्ष का रूप धारण किया और देवताओं के समक्ष एक तिनका रख दिया और कहा कि वह इसे या तो कांटे दें या जला दें, या डूबा दे या फिर उड़ा दें, लेकिन अपनी पूरी शक्ति लगाने के बावजूद भी देवता उस तिनके को हिला भी नहीं सकें. इसी दौरान आकाशवाणी हुई कि यक्ष अवतार कोई और नहीं, बल्कि महादेव का अवतार है, जिसके बाद देवताओं ने महादेव की स्तुति की और अपने अपराध और अभिमान के लिए भोलेनाथ से माफी मांगी.

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