गोरखपुर : सहारा श्री यानि सुब्रत राय रिश्ते निभाने में भी करिश्माई थें. सुब्रत राय ने उत्तर प्रदेश गोरखपुर के राजकीय पॉलिटेक्निक से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के दौरान ही खास अंदाज के चलते युवाओं में वह खासे लोकप्रिय हो गए थे.करियर की शुरुआत में सुब्रत राय की कही हुई बात की इंपलाई नहीं इंपलायर बनना है.समय के साथ उन्होंने यह करके भी दिखाया.साल 1978 में गोरखपुर में सिर्फ 2000 रुपए और तीन साथियों के साथ व्यवसाय की शुरुआत करके सुब्रत राय ने पूरी दुनिया में अपना कारोबार फैलाया.सुब्रत राय ने महज 2000 रुपए एक कुर्सी व मेज के साथ सहारा इंडिया की नींव रखने वाले फर्श से अर्श पर पहुंचने के बाद भी पुराने साथियों को नहीं भूले.बिहार के अररिया में जन्मे सुब्रत राय ने शुरुआती पढ़ाई कोलकाता में करने के बाद परिवार के साथ गोरखपुर आ गए थे.उन्होंने राजकीय पॉलिटेक्निक से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा की पढ़ाई की. सुब्रत राय का परिवार गोरखपुर के तुर्कमानपुर में गांधी आश्रम के पास किराए के मकान में रहता था.पिता के गोरखपुर से लौटने के बाद भी सुब्रत राय ने शहर नहीं छोड़ा और बेतियाहाता में किराए पर कमरा लेकर रहने लगे.
पढ़ाई के दौरान सुब्रत राय यचदी मोटरसाइकिल से चलते थे. वह उस दौर में भी युवाओं की अगुवाई करते थे. बेतियाहाता में रहने के दौरान ही उन्होंने चिट फंड का कारोबार शुरू किया था.सुब्रत राय के संघर्ष को करीब से देखने वाले स्वर्गीय पी के लाहड़ी बताया करते थे कि सुब्रत को कभी सरकारी नौकरी करनी ही नहीं थी. वह हमेशा बिजनेस के बारे में ही सोचते रहते थे. पढ़ाई लिखाई में कमजोर सुब्रत शुरू में मुंबई की एक फाइनेंस कंपनी में एजेंट बने.उसके बाद तीन दोस्तों के साथ सहारा इंडिया की नींव डाली. सुब्रत राय ने गोरखपुर के साथ ही देश के अन्य जगहों के हजारों युवाओं को सहारा समूह से जोड़ा. उन्हें योग्यता के अनुसार काम करने का प्लेटफार्म दिया. गोरखपुर की पूर्व मेयरअंजू चौधरी और सहारा श्री सुब्रत राय के बीच पारिवारिक संबंध थे.अंजू चौधरी को सुब्रत राय भाबी बुलाते थे.जिस पर अंजू चौधरी उन्हें टोका करती थी कि भाबी नहीं भाभी होता है. सुब्रत राय और अंजू चौधरी के घर से आना-जाना 1972 से ही है.सहारा श्री को अंजू चौधरी के हाथों की मिठाई बहुत पसंद थी.अंजू चौधरी ने बताया कि सुब्रत राय इंटरनेशनल लेवल का आदमी होने के बावजूद पूरी तरह से ग्राउंड टू अर्थ थे.वह हमेशा लोगों की मदद के लिए तैयार रहते थे. गोरखपुर से जुड़ाव कुछ ऐसा रहा की रिक्शे वाले को भी उनके नाम से जाना करते थे.
अंजू चौधरी ने बताया कि उनका संबंध तब से है जब वह अपनी नीली स्कूटर पर नमकीन बेचा करते थे. अंजू चौधरी ने बताया कि उनकी छोटी बहन लखनऊ में रहती हैं.सुब्रत राय जब भी लखनऊ जाते थे तो वह अपने बहन के यहां जो भी भिजवाना होता था सुब्रत राय के हाथों भिजवा देती थी.गोरखपुर के बेतियाहाता में रहने के दौरान ही सुब्रत राय ने चित फंड का कारोबार शुरू किया था.कॉलेज और यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स को पहले 1रूप बचत की आदत डलवाई.यह स्कीम सफल हुई तो दिहाड़ी कमाने वाले लोगों में पैठ बनाई सपने बेचने के महारथी सुब्रत का अंदाज इतना जबरदस्त था कि रोजाना 100 रुपए कमाने वालों को भी उन्होंने 20 रुपए बचत करने को प्रेरित किया. ऐसा करने वालों का उन्होंने खाता खुलवाया और एक रुपए जमा करा कर सहारा के लिए पूंजी तैयार की. इसके बाद उन्होंने सिनेमा रोड पर यूनाइटेड टॉकीज के पास छोटी सी दुकान में कार्यालय खोला.शहर का वह कार्यालय आज भी पंजीकृत है.सुब्रत राय के सहपाठी रहे राजेंद्र दुबे को रात में जैसे ही सहारा श्री के निधन की खबर मिली वह भावुक ही गए. उन्होंने बताया कि सुब्रत ने कभी भी सरकारी नौकरी की कोशिश नहीं कि वह कहते थे कि उन्हें नौकरी नहीं बिजनेस करना है.
रिपोर्ट : कुमार प्रदीप