भारत में टीबी (क्षय रोग) की रोकथाम के प्रयासों के सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि 2015 से 2022 के बीच भारत में टीबी के मामलों में 16 प्रतिशत की कमी आयी है. यह संक्रमण के घटने की वैश्विक दर 8.7 प्रतिशत से लगभग दोगुनी है. रिपोर्ट ने यह भी रेखांकित किया है कि टीबी से होनेवाली मौतों में भी इस अवधि में 18 प्रतिशत की कमी आयी है. लेकिन अभी भी हमारे देश में संक्रमितों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है. पिछले साल वैश्विक स्तर पर 75 लाख टीबी के मामले सामने आये थे, जिनमें अकेले भारत में 28 लाख रोगी थे. बीते वर्ष हमारे देश में इस बीमारी से लगभग 3.42 लाख लोगों की मृत्यु हुई थी. इनमें से अधिकतर रोगी एचआइवी वायरस से संक्रमित नहीं थे.
भारत में टीबी उपचार का दायरा बढ़ रहा है. रिपोर्ट ने रेखांकित किया है कि 80 फीसदी संक्रमितों को उपचार उपलब्ध हैं. इसमें 2021 की तुलना में पिछले साल 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. साल 2021 में टीबी से मरनेवाले रोगियों की संख्या 4.94 लाख थी, जो 2022 में 3.31 लाख रही. मृतकों की संख्या में 34 प्रतिशत की इस गिरावट से स्पष्ट है कि उपचार की कोशिशें कारगर हो रही हैं. भारत की आबादी के 40 फीसदी से अधिक हिस्से के शरीर में टीबी का बैक्टीरिया होता है, लेकिन 10 प्रतिशत लोगों को ही टीबी की बीमारी होती है. देश में टीबी प्रजनन क्षमता को प्रभावित करनेवाला प्रमुख कारण है. यह एक बेहद संक्रामक रोग है और अगर समय पर इसका उपचार न हो, तो यह जानलेवा हो सकता है.
भारत ने 2025 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा है. राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2017-2025) के तहत संकल्प लिया गया है कि 2025 तक हर एक लाख आबादी पर नये टीबी रोगियों की संख्या को 44 से अधिक नहीं होने दिया जायेगा. वैश्विक स्तर पर इस बीमारी के उन्मूलन के लिए 2030 तक का समय तय किया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि टीबी की जानकारी देने के मामले में भी वृद्धि हुई है. इसका अर्थ है, अधिक लोग जांच करा रहे हैं. चिकित्सक भी इस संक्रमण को लेकर सचेत हैं. सरकार ने देश में ही इस रोग की निगरानी की गणित-आधारित मॉडल तैयार किया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के नि-क्षय पोर्टल पर संक्रमितों की प्राथमिक जांच से लेकर उपचार प्रक्रिया के अंत का समूचा डाटा सहेजा जाता है. टीबी की चुनौती गंभीर है, पर आशा है कि इन सभी प्रयासों से हम 2025 तक टीबी को नियंत्रित करने में सफल होंगे.