राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को लेकर तृणमूल कांग्रेस (TMC) दुविधा में है. पार्टी को डर है कि द्रौपदी मुर्मू का विरोध करने की सूरत में पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव (West Bengal Panchayat Election) और वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) से पहले राज्य के आदिवासी मतदाता उससे नाराज हो सकते हैं. पश्चिम बंगाल की आबादी में आदिवासियों की हिस्सेदारी 7 से 8 प्रतिशत के बीच है.
राज्य की 47 विधानसभा और 7 लोकसभा सीट पर आदिवासी निर्णायक भूमिका निभाते हैं, जो जंगलमहल क्षेत्र (पुरुलिया, पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा और झाड़ग्राम तथा जलपाईगुड़ी व अलीपुरद्वार) में फैली हुई है. तृणमूल कांग्रेस (All India Trinamool Congress) ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) के नाम पर सहमति बनवाने में अहम भूमिका निभायी थी.
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हालांकि, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस बयान से पार्टी की यह दुविधा उजागर हो गयी है कि एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू को चुनाव मैदान में उतारने से पहले अगर विपक्षी दलों से चर्चा की होती, तो वह आम सहमति की उम्मीदवार हो सकती थीं. ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद एनडीए के संख्या बल में इजाफा होने से द्रौपदी मुर्मू के चुनाव जीतने की संभावनाएं भी बढ़ गयी हैं. टीएमसी प्रमुख के बयान ने विपक्षी खेमे के कई नेताओं को स्तब्ध कर दिया है.
हालांकि, पार्टी सूत्रों का मानना है कि आदिवासी बहुल जंगलमहल क्षेत्र का चुनावी गणित ममता के इस बयान के पीछे की वजह हो सकता है. वरिष्ठ टीएमसी नेता सौगत राय ने कहा, ‘एक राजनीतिक दल जमीनी हकीकत के आधार पर फैसले लेता है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हमें अपने उम्मीदवार के बारे में पहले सूचित नहीं किया. हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि मुर्मू का समर्थन या विरोध आदिवासी मतों के मिलने या छिटकने की वजह बनेगा. आदिवासी मतदाताओं का समर्थन इस बात पर निर्भर करता है कि संबंधित क्षेत्रों में पार्टी कितनी मजबूत है.’
तृणमूल कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुखेंदु शेखर राय ने कहा, ‘अतीत में राष्ट्रपति चुनाव के लिए आम सहमति के उम्मीदवारों के कई उदाहरण हैं. द्रौपदी मुर्मू हम सभी के लिए एक अप्रत्याशित नाम था. भाजपा ने पहले अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं की, क्योंकि वह आम सहमति का उम्मीदवार नहीं चाहती थी. विपक्ष ने आपस में चर्चा करने के बाद यशवंत सिन्हा का नाम तय किया था.’
कुछ अन्य तृणमूल नेताओं ने कहा कि राज्य में बड़ी आदिवासी आबादी को देखते हुए पार्टी द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी को लेकर ‘कैच-22’ स्थिति में है. ‘कैच-22’ का अर्थ ऐसी मुश्किल परिस्थिति या दुविधा होता है, जिसमें परस्पर विरोधी या आश्रित परिस्थितियों के कारण बच निकलना मुश्किल होता है.
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ‘द्रौपदी मुर्मू आदिवासी होने के साथ-साथ महिला भी हैं. तृणमूल कांग्रेस एक बड़ी पार्टी है, जिसमें समाज के विभिन्न तबके के नेता शामिल हैं. ऐसे में हम यह नहीं कह सकते कि हम असमंजस में नहीं हैं.’
हालांकि, राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले सिन्हा को भरोसा है कि उन्हें पार्टी के सभी सांसदों और विधायकों के वोट मिलेंगे. यशवंत सिन्हा ने कहा, ‘मुझे यकीन है कि तृणमूल के सभी सांसद और विधायक मेरे पक्ष में मतदान करेंगे.’
हालांकि, उन्होंने ममता के बयान पर टिप्पणी करने से इंकार किया. यशवंत सिन्हा के करीबी सूत्रों के मुताबिक, राष्ट्रपति चुनाव में कुछ ही दिन बचे हैं. ऐसे में उनके समर्थन जुटाने के लिए पश्चिम बंगाल आने की संभावना बेहद कम है. राष्ट्रपति चुनाव 18 जुलाई को होना है.