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पश्चिमी सिंहभूम : अस्पताल के मुख्य द्वार पर रखे जाते हैं शव, लोग हो जाते हैं परेशान

11 साल पूर्व काफी विवाद के बाद करीब 35 लाख रुपये से चक्रधरपुर अनुमंडल अस्पताल में पोस्टमार्टम हाउस बनाया गया. हालांकि, आजतक मोर्चरी हाउस (मुर्दा घर) नहीं बन सका.

चक्रधरपुर-पोड़ाहाट अनुमंडल आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. 11 साल पूर्व काफी विवाद के बाद करीब 35 लाख रुपये से चक्रधरपुर अनुमंडल अस्पताल में पोस्टमार्टम हाउस बनाया गया. हालांकि, आजतक मोर्चरी हाउस (मुर्दा घर) नहीं बन सका. इसके कारण पोस्टमार्टम के लिए आने वाले शवों को अस्पताल के मुख्य गेट पर रखा जाता है. सबसे अधिक परेशानी सड़े-गले व पुराने शवों को रखने में होती है. जानकारी के अनुसार, चक्रधरपुर अनुमंडल के सातों प्रखंडों से बीते 13 साल में 560 से अधिक शवों का अंत्यपरीक्षण (पोस्टमार्टम) किया गया.

मरीज व परिजन होते हैं परेशान

अनुमंडल अस्पताल में रात को पहुंचने वाले शव को मुख्य द्वार पर लावारिस हालत में छोड़ दिया जाता है. इससे मरीजों व परिजनों को परेशानी होती है. लोग मोर्चरी हाउस की व्यवस्था करने की मांग कर रहे हैं.

जिला स्वास्थ्य विभाग को लिखेंगे पत्र : डॉक्टर अंशुमन

अनुमंडल अस्पताल के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉक्टर अंशुमन शर्मा ने कहा कि पोस्टमार्टम हाउस में मोर्चरी की व्यवस्था अतिआवश्यक है. पोस्टमार्टम हाउस में गार्ड, एसी, मोर्चरी की व्यवस्था को लेकर जिला स्वास्थ्य विभाग को पत्राचार किया जाएगा.

रेलवे अस्पताल में रखना पड़ता है शव

  • अनुमंडल अस्पताल में पोस्टमार्टम की व्यवस्था से गरीबों को सहूलियत हुई है. मोर्चरी की व्यवस्था नहीं होने से रेलवे अस्पताल का सहारा लेना पड़ता है. इसमें अधिक राशि खर्च हो रही है. – रविन्द्र गिलुवा, पोटका

  • मोर्चरी नहीं होने से शव लेकर पहुंचने वालों को काफी परेशानी होती है. रेलवे अस्पताल के तर्ज पर मोर्चरी हाउस का निर्माण यथाशीघ्र जिला स्वास्थ्य विभाग को करना चाहिए. – सुनीता पुरती, नकटी

  • अनुमंडल अस्पताल में मोर्चरी की व्यवस्था की मांग कई बार उठी, लेकिन सरकार का ध्यान नहीं है. इसका खमियाजा मरीज व परिजनों को उठानी पड़ती है. मोर्चरी की व्यवस्था हो. – नील अभिमन्यु, जारकी

  • चक्रधरपुर में पोस्टमार्टम हाउस खुलने से लोगों को काफी लाभ पहुंचा है. रात को पहुंचने वाले शवों को अस्पताल के मुख्य द्वार पर लावारिस हालत में छोड़ दिया जाता है. – प्रियंका महतो, दूधकुंडी

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