Ramlala Pran Pratishtha: आज का दिन प्रभु श्री राम भक्तों के लिए बेदह खास है. अयोध्या में भगवान श्री राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा का शुभ समय पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि 22 जनवरी 2024 दिन सोमवार को दिन में 12 बजकर 29 मिनट से लेकर 12 बजकर 30 मिनट के मध्य का समय निर्धारित किया गया है. प्राण प्रतिष्ठा के समय अभिजीत मुहूर्त विद्यमान होगा. धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्री राम का जन्म भी अभिजीत मुहूर्त एवं मध्यान्ह काल में हुआ था. ऐसी स्थिति में प्राण प्रतिष्ठा के समय भी ग्रहों का बेहद खास संयोग का निर्माण हो रहा है, जो लगभग भगवान श्री राम की जन्म की समय में विद्यमान ग्रहीय योगों से मिलता जुलता है.
प्रभु श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समय मृगशिरा नक्षत्र तथा इंद्र योग बन रहा है. आनंद नमक औदायिक योग भी व्याप्त होगा. संपूर्ण दिन सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग प्राप्त रहेगा. सूर्य अभिजित नक्षत्र में व्याप्त रहेंगे. प्राण प्रतिष्ठा के समय मेष लग्न का उदय हो रहा है. ज्योतिष के अनुसार लग्न में देवगुरु बृहस्पति पंचम भाव, सप्तम भाव तथा नवम भाव पर दृष्टिपात करते हुए विद्यमान रहेंगे. चंद्रमा अपनी उच्च राशि विश्व में विद्यमान रहेंगे. शनि देव अपनी राशि कुंभ में विद्यमान रहेंगे तथा मंगल जो लग्न के कारक होंगे. उच्चाभिलाषी स्थिति में विद्यमान होंगे. वहीं बुद्ध और शुक्र ग्रह का दुर्लभ संयोग बना है. आज मकर राशि में सूर्य देव विद्यमान रहकर अपने उत्तरायण की यात्रा में है. शनि देव अपनी राशि मकर में विद्यमान होंगे. देवगुरु बृहस्पति अपनी उच्च राशि कर्क में विद्यमान होंगे. शुक्र अपनी राशि वृष में विद्यमान होंगे. सूर्य उच्चाभिलासी स्थिति में विद्यमान होंगे तथा मंगल एवं चंद्रमा महालक्ष्मी योग का निर्माण करके विद्यमान होंगे. बुध भी उच्चाभिलाषी स्थिति में विद्यमान रहकर इस मुहूर्त के शुभ फलों में वृद्धि करने वाले होंगे.
किसी भी प्रकार की मूर्ति तब तक पत्थर की प्रतिमा है, जब तक उसकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो जाती है. प्राण प्रतिष्ठा का शाब्दिक अर्थ होता है किसी मूर्ति में प्राणों को स्थापित करना अर्थात उसे जीवंत करना. प्राण प्रतिष्ठा दो प्रकार की होती है. पहली चल प्राण प्रतिष्ठा होती है, दूसरी अचल प्राण प्रतिष्ठा. प्राण प्रतिष्ठा की विधियों के लिए सबसे पहले मूर्ति का अधिवास किया जाता है, इसके लिए मूर्ति को एक रात के लिए जल में डूबा कर रखा जाता है. जिसे जलाधिवास कहा जाता हैं. फिर अनाज में दबा कर रखा जाता है, इस प्रक्रिया को धन्याधिवास कहते हैं. इसके बाद मूर्ति का जलाभिषेक किया जाता है. फिर पंचामृताभिषेक किया जाता है, इस संस्कार में कल 108 प्रकार की दूध, दही, घी, शहद, चंदन, सुगंधित द्रव्य, विभिन्न प्रकार के पुष्प एवं पत्तियों के रस से अभिषेक किया जाता है, इसके बाद मूर्ति को अंत में जलाभिषेक करके संपूर्ण मूर्तियों को साफ तथा मुलायम कपड़े से पूछ लिया जाता है. प्रतिमा को सुंदर वस्त्र आभूषण पहनाकर स्वच्छ एवं पवित्र जगह पर विराजित किया जाता है. धूप दीप प्रज्वलित करते हुए नैवेद्य अर्पित किया जाता है.
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प्रतिमा का पट खुलने के क्रम में विभिन्न प्रकार के वैदिक मंत्रों के माध्यम से मूर्ति के विभिन्न हिस्सों को चेतन किया जाता है, इस प्रक्रिया में सूर्य देव से नेत्र, वायु देव से कान, चंद्र देव से मन को जागृत करने का आह्वान किया जाता है. अंतिम चरण में मूर्ति की आंखों पर बधाई पट्टी को खोला जाता है. पट खोलते समय मूर्ति के समक्ष आईना रखा जाता है, इसके बाद मूर्ति सर्वप्रथम आईने में ही देखती हैं. पूर्ण विधि विधान के साथ षोडशोपचार पूजन भोग आदि लगाकर आरती करते हुए विधि विधान को पूर्ण करते हैं. इस प्रकार देखा जाए तो भगवान विष्णु के साथ में अवतार भगवान श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा एक पवित्र एवं अत्यंत शुभ मुहूर्त में किया जा रहा है, जो जगत के कल्याण के लिए कल्याण कारक होगा.